Vinit Abha Upadhyay
Ranchi : झारखंड हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि जब कोई प्रत्यक्षदर्शी हो, जिसने हत्या होते देखी हो और उसका साक्ष्य विश्वसनीय हो तो अभियोजन पक्ष के लिए अपराध के पीछे की मंशा साबित करना जरूरी नहीं है. दरअसल रांची सिविल कोर्ट ने अजित बारला को जेम्स केरकेट्टा की हत्या के जुर्म में दोषी करार देते हुए 27 नवंबर 2017 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. साथ ही 10 हजार का जुर्माना भी लगाया था. रांची सिविल कोर्ट के इस फैसले को अजित बारला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. अजित की याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस सुभाष चांद की खंडपीठ में सुनवाई हुई. इस दौरान अजित की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष अपराध के पीछे के मकसद को साबित करने में विफल रहा. कहा कि जिसने घटना को देखने का दावा किया था, उसके को विश्वसनीय प्रत्यक्षदर्शी नहीं माना जा सकता. क्योंकि उसने अपीलकर्ता को हथियार के साथ देखने के बाद अपनी आंखें बंद कर ली थी. वहीं राज्य सरकार के अधिवक्ता ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि गवाह वास्तव में प्रत्यक्षदर्शी है और उसने घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखा था. दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने रांची सिविल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए अजित कुमार की याचिका खारिज कर दी.
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