Faisal Anurag
कांग्रेस के साथ बात नहीं बनने के बाद राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर बिहार लौटने,जनता के बीच जाने और जन सुराज के लिए अभियान चलाने का एलान किया है. प्रशांत किशोर पहले ही कह चुके हैं कि नीतीश कुमार के साथ उनका मोहभंग हो चुका है. साथ ही नीतीश के बिहार मॉडल को लेकर भी पीके की अपनी धारणा है. पीके उसे एक नाकामयाब प्रयोग के बतौर बताने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. तो क्या प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में किसी बड़े बदलाव या राजनैतिक गठबंधन का सूत्रधार बनने वाले हैं. प्रशांत किशोर के ट्वीट की भाषा बता रही है कि उनके दिमाग में खाका तैयार है, लेकिन कुछ दुविधा अब भी मौजूद है.
पिछले तीन दिनों से देश के कई बड़े मीडिया चैनलों को प्रशांत किशोर ने इंटरव्यू दिया. इसमें बीबीसी हिंदी भी शामिल है. इन साक्षात्कारों में भारत के भविष्य की राजनीति को लेकर प्रशांत किशोर ने कई संकेत दिए हैं. कांग्रेस के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद भी उनकी मीडिया बातचीत से स्पष्ट है कि अब भी वे कांग्रेस की मजबूती को लोकतंत्र के लिए जरूरी मानते हैं. यानी कांग्रेस से मायूस जरूर हैं लेकिन उम्मीद अब भी बाकी है. 2024 की राजनीति में किसी भी विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस की भागीदारी को भी जरूरी मानते हैं. उनके ट्वीट को मीडिया ने महत्व दिया है. लेकिन इस सवाल का जबाव नहीं मिल रहा है कि आखिर पीके बिहार की राजनीति के लिए कितने संजीदा हैं.
2020 में जनता दल यू से अलग होने के बाद उन्होंने बिहार के युवाओं को जोड़ने का एक अभियान चला था. लेकिन जल्द ही उनका अभियान धीमा पड़ गया और दम तोड़ गया. पीके बंगाल में सक्रिय हो गए और बिहार उनकी प्राथमिकता की सूची से बाहर हो गया. पीके की संस्था ने हाल ही में तेलंगना के मुख्यमंत्री तेलगंना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष चंद्रशेखर राव के साथ एक एमओयू किया है. अगले साल के विधानसभा चुनावों में पीके की संस्था टीआरएस के लिए काम करेगी.
प्रशांत किशोर ने बंगाल चुनाव के बाद एलान किया था कि वे भविष्य में अब रणनीतिकार के बतौर सक्रिय नहीं रहेंगे. लेकिन क्या बगैर पीके के संस्था आइ-पैक किसी दल के लिए उपयोगी हो पाएगी. क्या जिन नेताओं ने भी आई-पैक के साथ एमओयू किया है या करने का इरादा रखते हैं वे बगैर प्रशांत किशोर उस संस्था का चयन करेंगे. चुनावी रणनीति के क्षेत्र में पीके का नाम है, लेकिन अनेक ऐसे भी रणनीतिकार हैं जो विभिन्न दलों के लिए कार्य कर रहे हैं.
बिहार की राजनीति में इस समय खलबली है. बिहार के मुख्यमंत्री के राष्ट्रीय जनता पार्टी की नजदीकी के खबरों की चर्चा सरेआम हैं. इफ्तार पार्टी राजनीति में जिस तरह नीतीश कुमार और तेजस्वी की नजदीकी दिखी है उसके कई अर्थ लगाए जा रहे हैं. मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी की भाजपा से नाराजगी सर्वविदित है. चिराग पासवान ने भी संकेत दिया है कि जल्द ही बिहार में कोई बड़ा राजनैतिक उलटफेर देखने को मिल सकता है.
नीतीश कुमार बिहार में सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते हैं. उनकी राजनीति की धुरी सुशासन पर ही केंद्रित रही है. इसके साथ नीतीश कुमार न्याय के साथ विकास की बात भी करते रहे हैं.2015 के चुनाव में प्रशांत किशोर ने ही नीतीश कुमार के लिए नारा गढ़ा था ”बिहार में बहार हो नतीशे कुमार हो”. जदयू और राजद के गठबंधन के बावजूद राजद ने प्रशांत किशोर को ज्यादा महत्व नहीं दिया था.2020 के चुनाव में राजद सबसे बड़े दल के में उभरा है. बिहार की राजनीति में राजद के बगैर किसी भाजपा विरोधी गठबंधन की संभावना नहीं है.
ऐसे में प्रशांत किशोर ने ट्वीट किया है कि शुरूआत बिहार से तो फिर क्या वे अकेले दम पर बिहार की राजनीति में कोई प्रभाव डालने में सक्षम हो सकेंगे. ट्वीट में ही अंतरनिहित है कि शुरूआत तो वे बिहार से करने जा रहे हैं लेकिन उनकी नजर राष्ट्रीय राजनीति पर है. कांग्रेस के साथ बातचीत भले ही बेनतीजा रही हो, लेकिन अब भी पीके की निगाह कांग्रेस पर ही है. बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की भूमिका के निर्णायक या प्रभावी होने को लेकर अभी से ही संदेह किया जा रहा है. सियासी महत्वकांक्षा अपनी जगह है लेकिन राजनीति की जमीन का खुरदरापन का सामना करने का हौसला,रणनीति और कार्ययोजना अलग है.