Nishikant Thakur
वर्ष 2025 में दो राज्यों के विधान सभा चुनाव होने वाले हैं. पहले 5 फरवरी को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में, फिर अक्टूबर या नवंबर में बिहार में चुनाव होंगे. चूंकि दिल्ली विधान सभा चुनाव निकट है और प्रचार के अपने चरम पर है, इसलिए फिलहाल इसे ही जानने-समझने का प्रयास करते हैं. दिल्ली विधान सभा की जो स्थिति बन रही है, उसमें आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच जोरदार टक्कर होने वाली दिख रही है. इसका कारण यह भी बताया जा रहा है कि लंबे समय तक मुख्यमंत्री और सत्तासीन होने के कारण आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचा है.
ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि सत्ता में रहते हुए आबकारी घोटाले के आरोप में उनका जेल जाना. इसके सच या झूठ का पता तो आज नहीं तो कल चलेगा ही, लेकिन इस मामले में उनके जेल जाने से चरित्र को दाग अवश्य लगा है. दूसरी तरफ यह पक्ष भी उनके साथ खड़ा है कि उन्हें जानबूझकर केंद्रीय सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने नीचे दिखाया है, जबकि वह अपने कर्तव्य को पूरी ताकत और ईमानदारी से निभा रहे हैं. भाजपा उनके स्वच्छ चरित्र को दागदार बनाने के लिए तथाकथित आबकारी घोटाले का आरोप लगाने तथा दिल्ली की सत्ता हथियाने के लिए बदनाम कर उन्हें जेल भिजवाया.
दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल ने अपने वोट बैंक में झुग्गी बस्तियों में रहने वालों को जोड़ा है, इसलिए उनका वोट बैंक सुरक्षित माना जाता है; क्योंकि उनके प्रति आकर्षित मतदाता मतदान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और उनकी पार्टी के प्रति अपना समर्पण दिखाते हैं. लेकिन, भाजपा के समर्थक मतदाता मतदान केंद्र पर अपना वोट डालने किसी-न-किसी कारण से नहीं जाते, जिसका परिणाम होता है कि उसका प्रतिशत अधिक होता है और उसकी ही जीत होती है. सच तो यह है कि 1951-52 के पहले चुनाव में नियम यह बनाया गया था कि सरकारी महकमें से जुड़े किसी को यह अधिकार नहीं दिया गया था कि वह मतदान करने के प्रति अपना समर्पण किसी भी पार्टी के पक्ष या विपक्ष में नहीं करेगा, लेकिन यह भी होता है?
हाल के दिनों में हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों द्वारा कहा जाता था कि इस बार सत्तारूढ़ भाजपा की स्थिति कमजोर है और वह सरकार नहीं बना सकेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भारी बहुमत से केंद्रीय सत्तारूढ़ भाजपा ने फिर से अपनी सरकार बनाई और विपक्ष के सारे अरमानों को चारों खाने चित कर दिया. उदाहरण के लिए हरियाणा और महाराष्ट्र को देखा जा सकता है. महाराष्ट्र में भी यही कहा जा रहा था कि इस बार सत्तारूढ़ दल खत्म हो जाएगा और नई सरकार बनेगी.
इसी कारण सत्तारूढ़ दल पर कांग्रेस हावी रही कि उनकी सरकार बन रही है, लेकिन सारे के सारे दावे धरे रह गए और सरकार केंद्रीय सत्तारूढ़ दल की ही बनी. इसी प्रकार प्रकार दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी का दावा है कि फिर से उसे दिल्ली की जनता सरकार बनाने का मौका देने के लिए तैयार है. लेकिन, इस प्रकार की भविष्यवाणी भी सही साबित होगी, फिलहाल कुछ कहना मुश्किल है. जनता के मन में क्या है, इसका केवल कयास लगाया जा सकता है, लेकिन गारंटी कोई दे नहीं सकता.
सच तो यह है कि भाजपा द्वारा कोई भी आरोप नहीं लगाया जा रहा है, बल्कि वह आरोपों का उत्तर देने में ही अपना समय जाया कर रही है. होता तो यह है कि अपनी स्थानीय सरकार के प्रति यदि किसी मुद्दे को उठाया जाता है, तो सरकार के पास दावा यह होता है कि उनकी सरकार को कुछ करने नहीं दिया जाता, बार-बार केंदीय सरकार द्वारा उनपर अंकुश लगाने के लिए योजना को रोक देती है. सच तो यह भी है कि दिल्ली कुछ हद तक केंद्र सरकार के अधीन है, तो कुछ हद तक राज्य सरकार के अधीन.
यदि केंद्र सरकार द्वारा जनहित का कोई कार्य किया जाता है, तो उसका सारा श्रेय स्थानीय सरकार अपने ऊपर लेकर अपनी वाहवाही लूटने लगती है; क्योंकि दिल्ली की शत-प्रतिशत जनता को कहां मालूम होता है कि यह विभाग केंद्र सरकार के अधीन है या राज्य सरकार के. दिल्ली की जनता यह समझने का प्रयास उतना नहीं कर पाती कि दिल्ली स्थित यह विभाग किसके अधीन कार्य करता है. यदि केंद्र सरकार द्वारा जनहित में कोई कार्य किया जाता है, तो ऐसी भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दी जाती है कि स्थानीय सरकार ऐसा कह रही है, तो हो सकता है यह कार्य उसके द्वारा ही कराया गया हो.
स्थानीय सरकार द्वारा इस भ्रम को उत्पन्न करने के कारण जनता भ्रमित होती है और भाजपा को इस बात को झूठ प्रमाणित करने में अपनी पूरी ताकत लगानी पड़ जाती है.
दिल्ली की वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी एक साक्षात्कार में कहती हैं कि भाजपा सत्ता में आने के लिए सपना देख रही है. वह कहती हैं कि हर चुनाव महत्वपूर्ण होता है और हमारी मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा है. वहीं, कांग्रेस को चुनाव से बाहर करते हुए वह कहती हैं कि वह केवल आम आदमी पार्टी का वोट काट सकती है, लेकिन चुनाव जीतकर दिल्ली की सत्ता हासिल नहीं कर सकती. उनका यह भी कहना है कि भाजपा के पास संसाधन है, सीबीआई है, दिल्ली पुलिस, आयकर विभाग सहित चुनाव आयोग भी है. आम आदमी पार्टी के पास कुछ भी ऐसा नहीं है.
भाजपा पैसे लुटा रही है और हमारे पास टीवी पर विज्ञापन चलाने तक के लिए पैसे नहीं हैं. भाजपा के पास मुख्यमंत्री का चुनावी चेहरा नहीं है, लेकिन जनता हमारे साथ है और इसलिए आम आदमी पार्टी की सरकार फिर से सत्ता में आएगी. वहीं, अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में यह स्वीकार किया है कि वह मुफ्त की शिक्षा और इलाज बंद करेगी. वहीं, केंद्रीय राज्यमंत्री हर्ष मल्होत्रा कहते हैं कि आम आदमी पार्टी ने कबाड़ बेचने में भी दिल्ली की इज्जत का कचरा किया है. उन्होंने मांग की कि कबाड़ बिक्री की जांच की जाए. वहीं, हरियाणा के मुख्यमंत्री नवाब सिंह सैनी ने एक जनसभा में कहा कि केजरीवाल ने दिल्ली को नहीं, घर को पेरिस बना लिया. वहीं, भाजपा का संकल्प पत्र दो जारी करते हुए युवा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार के भ्रष्टाचार की जांच के लिए एसआईटी गठित होगी.
वैसे, चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप तो लगते ही रहते हैं, लेकिन वोट तो वही मतदाता करते हैं जिन्होंने अपने मन में कुछ ठान लिया होता है. कोई कितना ही कयास लगा ले, लेकिन जीतेगा तो वही, जिसने जनता का हित किया होगा. लेकिन, इतने बड़े चुनाव में कांग्रेस की भागीदारी अपेक्षाकृत कम दिख रही है. यद्यपि कांग्रेस ने बहुत ही योग्य व्यक्तियों को अपना उम्मीदवार बनाया है, लेकिन प्रचार कम होने के कारण उनके समर्थक अपने को पीछे रखकर समाज के हर तबके तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं. चूंकि चुनाव में अब अधिक समय नहीं रह गया है, इसलिए उनके नेता अभी भी निराश नहीं हैं और पूरे उत्साह से प्रचार कार्य में जुटे हैं.
रही बात भाजपा की, तो उसके पीछे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ होने के कारण उसका प्रचार संगठित ढंग से चल रहा है और घर-घर जाकर यह सुनिश्चित करने में उनके कार्यकर्ता लगे हैं कि मतदान में हिस्सा लेने के लिए मतदाता बूथों पर अवश्य पहुंचें. जो भी हो सारे अनुमान, सारी गणना और संभावना एक कयास ही होते हैं. अंत में होता वही है, जिसे मतदाताओं ने अपने मन में पहले से ही ठान लिया होता है. जनता की मर्जी के दम पर ही किसी की जीत होती है और वही सत्ता पर आसीन भी होता है. रही बिहार चुनाव की बात तो, उसपर फिर कभी बात करेंगे.
डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं,ये इनके निजी विचार हैं.
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