Ranchi: कड़ी मेहनत, समर्पण और सपनों को पूरा करने की इच्छा से कुछ भी हासिल किया जा सकता है. मजदूर की बेटी और सब्जी विक्रेता का बेटा होने के बावजूद, दो छात्रों ने कॉलेज में कड़ी मेहनत की और अंततः गोल्ड मेडलिस्ट बन गए. यह उनकी उपलब्धि का बड़ा उदाहरण है और यह हमें यह सिखाता है कि परिस्थितियां जैसी भी हों, लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.शुक्रवार को डॉ. रामदयाल मुंडा फुटबॉल मैदान में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का दूसरा दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया. इस समारोह में एक रेजा काम करने वाली मजदूर की बेटी भी मेडल लेने पहुंची थी.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के नागपुरी भाषा विभाग की छात्रा सुषमा मुंडा ने बताया कि उनकी मां रेजा का काम करती हैं. वह सिर पर सीमेंट और ईंटें ढोती हैं और तीन या चार मंजिला इमारतों में काम करने वाले मिस्त्रियों को यह सामान थमाती हैं, इसके बदले में उन्हें दो सौ या तीन सौ रुपये मिलते हैं.
सुषमा के पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था. मां को कभी-कभी ही काम मिलता है, सप्ताह में लगभग एक हजार रुपये कमाती हैं, जिससे घर के लिए चावल, दाल और रोटी का इंतजाम करना पड़ता है. जो पैसा बचता है, उसका उपयोग कॉलेज आने के लिए ऑटो किराए और पढ़ाई में किया जाता है. ठेकेदार से मजदूरी का भुगतान देर से मिलता है, जिसके कारण कभी-कभी कॉलेज की क्लास भी छूट जाती है. लेकिन जो समय मिलता है, वह पढ़ाई में लगा देती हैं. आज गोल्ड मेडल लेकर वह बहुत खुश हैं और उनका सपना प्रोफेसर बनने का है.
वहीं सब्जी बेचने वाले माता-पिता, बंसती देवी और पिता विनोद कुमार, बेटे अभिषेक कुमार को राज्यपाल के हाथों से गोल्ड मेडल लेते हुए देख रहे थे. मां-बाप कोने में बैठे थे और बेटा गोल्ड मेडल लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा था. जैसे ही मंच से अभिषेक का नाम पुकारा गया.
वैसे ही मां-बाप दोनों अपनी कुर्सियों से खड़े हो गए और खुशी से अपने बेटे के लिए ताली बजाने लगे. अभिषेक ने बताया कि उनके माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं और खुले आसमान के नीचे साग-सब्जी हाट बाजारों में बेचने जाते हैं. माता-पिता की मेहनत के कारण ही वह आज पढ़-लिख पा रहे हैं. फिलहाल वह विप्रो कंपनी में काम के साथ पढ़ाई भी कर रहे हैं.
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