Ranchi : पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में 8 जून 2015 को हुई कथित पुलिस नक्सली मुठभेड़ की जांच करने सीबीआई की टीम पलामू पहुंच गयी है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सीबीआई की टीम पलामू में कैंप करेगी. इस दौरान सीबीआई की टीम मुठभेड की घटना में शामिल कई पुलिस अधिकारियों से भी पूछताछ कर सकती है. ज्ञात हो कि लॉकडाउन के पहले फरवरी महीने में भी सीबीआई की टीम इस मामले की जांच करने पलामू आयी थी. जिसके बाद एकबार फिर से मंगलवार की शाम टीम पलामू पंहुची है. जबकि दूसरी टीम अगले एक दो दिनों में पलामू पंहुचेगी. ऐसे में उम्मीद जतायी जा रही है कि इस कथित मुठभेड की जांच में तेजी आ सकती है.
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बिना जांच डीजीपी ने बांटी थी इनाम की राशि
बकोरिया में हुए कथित मुठभेड़ में 12 लोगों के मारे जाने की घटना के बाद अगले दिन नौ जून 2015 की सुबह तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय, तत्कालीन एडीजी अभियान एसएन प्रधान, स्पेशल ब्रांच के एडीजी अनुराग गुप्ता समेत अन्य सीनियर पुलिस अफसर हेलीकॉप्टर से बकोरिया पहुंचे थे. वहां मरे हुए लोगों को नक्सली घोषित कर दिया गया था. वहीं डीजीपी ने वहां मौजूद जवानों के बीच लाखों रुपये के नकद भी इनाम के तौर पर बांटे थे.
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बकोरिया कांड में एडीजी तक का तबादला
बकोरिया कांड को सही बताने में मदद नहीं करनेवाले अफसरों को उनके पद से चलता कर दिया गया. ऐसे अफसरों में थानेदार से लेकर एडीजी रैंक के अफसर शामिल थे. इससे पहले भी 8 जून 2015 की रात पलामू के सतबरवा में हुए कथित मुठभेड़ के बाद कई अफसरों के तबादले कर दिये गये थे.तब एडीजी रेजी डुंगडुंग सीआइडी (रिटायर्ड) के एडीजी थे. सरकार ने उनका भी तबादला कर दिया था. इसके बाद रांची जोन की आइजी सुमन गुप्ता का भी तबादला कर दिया गया था. क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर उस समय के पलामू सदर थाना के प्रभारी हरीश पाठक से मोबाइल पर बात की थी. बाद में हरीश पाठक को एक पुराने मामले में निलंबित कर दिया गया़ पलामू के तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो का भी तबादला कर दिया गया था. उनके बाद सीआइडी एडीजी पद पर पदस्थापित अजय भटनागर व अजय कुमार सिंह के कार्यकाल में मामले की जांच सुस्त तरीके से हुई.13 नवंबर 2017 को सीआइडी के एडीजी के रूप में एमवी राव को पदस्थापित किया गया था. हाइकोर्ट के निर्देश पर उन्होंने घटना की जांच तेज कर दी थी. इसके कारण पुलिस विभाग के सीनियर अफसरों में हड़कंप मच गया था. इसके बाद एमवी राव का तबादला करा दिया गया.
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पलामू एसपी को नहीं थी मुठभेड़ की सूचना
बकोरिया के कथित मुठभेड़ को लेकर लातेहार के तत्कालीन एसपी अजय लिंडा ने भी अपनी गवाही सीआइडी में दर्ज करायी थी. लिंडा ने अपने लिखित बयान में कहा था कि आठ जून की रात 2.30 बजे तक पलामू के तत्कालीन एसपी को इस बात की कोई सूचना नहीं थी कि वहां पर मुठभेड़ हुआ था. उल्लेखनीय है कि घटना को लेकर दर्ज प्राथमिकी में मुठभेड़ का वक्त रात 11.00 बजे बताया गया है. प्राथमिकी में इस बात का भी जिक्र है कि मुठभेड़ की सूचना तुरंत पलामू के एसपी कन्हैया मयूर पटेल को दी गयी थी. बता दें कि घटना के बाद अजय लिंडा का भी तबादला कर दिया गया था.
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हाइकोर्ट के कहने पर सीबीआइ ने दर्ज की थी प्राथमिकी
पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र बकोरिया में आठ जून 2015 को हुई कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ के मामले में सीबीआइ दिल्ली ने प्राथमिकी दर्ज की थी. यह प्राथमिकी झारखंड हाइकोर्ट के 22 अक्टूबर 2018 को दिए आदेश पर दर्ज की गयी थी. इस घटना में पुलिस ने 12 लोगों को मुठभेड़ में मारने का दावा किया था. मृतकों के परिजनों ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताते हुए हाइकोर्ट में सीआइडी की जांच पर सवाल उठाते हुए सीबीआइ जांच की मांग की थी. सीबीआइ ने पलामू के सदर थाना कांड संख्या 349/2015, दिनांक 09 जून 2015 के केस को टेकओवर करते हुए प्राथमिकी दर्ज की थी.इस केस के शिकायतकर्ता तत्कालीन सतबरवा ओपी प्रभारी मोहम्मद रुस्तम हैं. उन्होंने लातेहार के मनिका थाना क्षेत्र के उदय यादव, चतरा के प्रतापपुर थाना क्षेत्र के निमाकातू निवासी एजाज अहमद, चतरा के प्रतापपुर थाना क्षेत्र के मझिगांव निवासी योगेश यादव और 9 अज्ञात मृतक के साथ ही एक अज्ञात नक्सली के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करायी थी.
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5 वर्ष बाद भी पीड़ित परिवार को इंसाफ का इंतजार
बकोरिया कथित मुठभेड़ के पांच वर्ष से अधिक पूरे हो गये हैं. उस वक्त मुठभेड़ में मारे गये 12 लोगों को पुलिस ने माओवादी बताया और अपनी पीठ थपथपा ली थी. शर्मनाक यह रहा कि पुलिस ने इस मुठभेड़ के बदले इनाम भी बांटे थे. लेकिन कुछ ही दिनों में यह मुठभेड़ सवालों के घेरे में आ गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और डीजीपी डीके पांडेय पर फर्जी इंकाउंटर कराने का आरोप लगने लगा. काफी हो हंगामे के बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गयी. लेकिन पांच साल बीतने के बाद भी मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को इंसाफ नहीं मिल पाया है. पुलिसिया जांच में यह बात सामने आयी थी कि इन 12 लोगों में से सिर्फ डॉ आरके उर्फ अनुराग के अलावा किसी का कोई नक्सल रिकॉर्ड नहीं था.
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