Anand Kumar
कांग्रेस की बात निराली है. देश की सबसे पुरानी पार्टी है. आंतरिक दलीय लोकतंत्र भी सबसे ज्यादा इसी पार्टी में है. बाकी दलों में कोई नेतृत्व को ललकार दे, तो उसकी छुट्टी तय मानी जाती है. लेकिन कांग्रेस में कुर्ता फाड़ देने पर भी कोई बुरा नहीं मानता. ये एक ऐसी पार्टी है, जिसमें हर कोई खुद को राष्ट्रीय नेता समझता है और सोनिया-राहुल से नीचे बात नहीं करता. नतीजा जिसे जो मन करता है, बोल देता है, फिर चाहे वह पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष ही क्यों न हो.
झारखंड कांग्रेस में भी इन दिनों ऐसा ही कुछ नजारा चल रहा है. कांग्रेस के पास ऐसे 16 विधायक हैं, जो उसके टिकट पर चुनाव जीतकर आये और 2 ऐसे हैं, जो झारखंड विकास मोर्चा बिखरने के बाद कांग्रेस में पहुंचे. इन 16 में 4 लोग मंत्री हैं. इनमें प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव और विधायक दल के नेता आलमगीर आलम भी शामिल हैं. बाकी 12 विधायक रह-रह कर कभी दुख, कभी दर्द और कभी अपना आक्रोश जताने से नहीं चूकते. अभी कुछ ही दिन बीते हैं कि जब कुछ कांग्रेसी विधायक अपना दुखड़ा लेकर दिल्ली पहुंच गये थे. संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी से प्रदेश अध्यक्ष की जमकर बुराई भी की थी. कहा था कि हमारी कोई सुनता नहीं है. चार मंत्री मलाई काट रहे हैं. उनको बाकी विधायकों के मान-सम्मान और दुख-दर्द से कोई लेनादेना नहीं है. क्षेत्र की जनता को जवाब देना भारी पड़ रहा है.
दिल्ली से वापसी पर जब प्रदेश नेतृत्व ने इन विधायकों से जवाब तलब किया, तो एक विधायक यह कहने से भी नहीं चूके कि दिल्ली किसी से पूछ कर जायेंगे क्या. दूसरे ने तो प्रदेश अध्यक्ष को ही “फेलियर” करार दे दिया. अभी कुछ दिनों से कांग्रेस में नारी शक्ति मुखर है. इनमें दीपिका पांडे सिंह कुछ ज्यादा ही तेवर में हैं. कई मौकों पर तो उन्होंने सरकार को ही घेरा है. पुलिस की कार्यशाली को लेकर वे मुख्यमंत्री तक से सवाल करने से नहीं चूकी हैं. अब कांग्रेस की ये महिला विधायक अपने दल को चुनाव घोषणापत्र में किये गये वादों की याद दिला रही हैं. तीन विधायकों में मंगलवार को विधायक दल के नेता आलमगीर आलम से मिलकर उन्हें घोषणापत्र और चुनावी वादों की याद दिलायी. दीपिका ने ग्रीन कार्ड, राशन न मिलने और हर जगह पैक्स नहीं होने की बात उठाकर अपने की दल के मंत्रियों पर उंगली उठा दी.
दरअसल प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव के पास ही खाद्य आपूर्ति विभाग है. ऐसे में हरे राशन कार्ड और गरीबों तक राशन नहीं पहुंचने की बात कहकर दीपिका ने सीधे-सीधे प्रदेश अध्यक्ष को घेरा है. यही नहीं, इन महिला विधायकों ने बेरोजगारी, स्कूल फीस में वृद्धि, चुनावों वायदों, युवा, महिला और किसानों की समस्याओं पर भी कोई सरकार की तरफ से कोई ठोस पहल नहीं होने की बात कही है. जबकि इन मुद्दों पर राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा भी इतनी मुखर नहीं रही है. दीपिका पांडे सिंह वैसे तो पहले से ही तेज-तर्रार नेता रही हैं, लेकिन एआइसीसी में पद मिलने के बाद कांग्रेस में उनका कद बढ़ा है और इस बढ़े कद के आत्मविश्वास के साथ वे पार्टी नेतृत्व से सवाल कर रही हैं. दीपिका कहती हैं कि लोगों ने कोरोना के नाम पर डेढ़ साल बर्दाश्त कर लिया. अब और सहने के मूड में नहीं हैं. हमें क्षेत्र में जनता और कार्यकर्ताओं के सवालों का सामना करना भारी पड़ रहा है.
मंत्री पद के आभामंडल में घिरे सीनियर नेताओं को वे बता रही हैं कि साझे की सरकार में एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम होना चाहिए. एक को-ऑर्डिनेशन कमेटी होनी चाहिए, जो पार्टियों के चुनावी वायदों के आधार पर सरकार के कामकाज की प्राथमिकता तय करे. उन्होंने जमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मान देने के लिए 20 सूत्री समितियों के गठन की मांग भी उठायी है. सीएमपी और को-ऑर्डिनेशन कमेटी का गठन गठबंधन में शामिल दलों के नेतृत्व के विचार का विषय है. अगर यह बात विधायकों की तरफ से उठने लगी है, तो इसका सीधा अर्थ है कि कांग्रेस विधायकों को अपने नेतृत्व पर भरोसा नहीं रहा. नेतृत्व की खुशफहमी और विधायकों के असंतोष ने इन विधायकों को एक तरह से विपक्ष बना दिया है, जो अपनी सरकार के चलते रहने की कामना तो करता है, साथ ही जनता के बीच उसकी बखिया उधेड़ने से भी गुरेज नहीं करता.