Deepak Ambastha
बांग्लादेशी हों या फिर रोहिंग्या मुसलमान, भारत के विभिन्न भागों में दोनों की घुसपैठ गंभीर समस्या है. देश का शायद ही कोई राज्य हो, जहां बांग्लादेशी और रोहिंग्या लोग अवैध रूप से ना बसे हों.
राष्ट्रीय स्तर पर यह मामला उठता ही रहता है, झारखंड भी इससे अछूता नहीं है, राज्य का प्रायः हर जिला कमोबेश इससे प्रभावित है. झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने दुमका में बंग्लादेशी घुसपैठ और उन्हें भारत के वैध नागरिक के तौर पर आवश्यक प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने का आरोप लगा कर मामला गरमा दिया है.
बाबूलाल कहते हैं कि संताल परगना के जिलों और कस्बों में भारी संख्या में बंग्लादेशी घुसपैठिए आ गए हैं और उन्हें वैध नागरिकता प्रमाण पत्र उपलब्ध कराए जा रहे हैं, सरकार को चाहिए कि वह इसे रोकने के उपाय करें.
बाबूलाल मरांडी ने मामला तो सही उठाया है, लेकिन तरीका गलत है, क्योंकि यह घुसपैठ बांग्लादेश गठन के बाद से चली आ रही है और पिछले कुछ वर्षों में इसमें बहुत तेजी आई है, चूंकि संथाल परगना की सीमा बांग्लादेश से लगती है तो यहां घुसपैठ और बसने की सुविधा अधिक है, अविभाजित बिहार में ऐसी घुसपैठ की सुध नहीं ली गई फिर सन 2000 में झारखंड का गठन हुआ. इसके बाद से राज्य में अधिक समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार रही. घुसपैठ की गंभीर समस्या तब भी थी, लेकिन किसी सरकार ने इसे गंभीरता से लिया ही नहीं,अब जब राज्य में गैर-भाजपा सरकार है तब यह मुद्दा उठाना राजनीतिक हो सकता है, ईमानदारी भरा कतई नहीं. बात 2002 की है और घटना जमशेदपुर की, स्वर्णरेखा और खरकई नदी का जलस्तर भारी बारिश से काफी बढ़ गया था,इन नदियों के किनारे बसी अवैध बस्तियां डूबने लगीं. लोगों के घर-बार तबाह हो गए थे प्रशासन की नींद खुली तो पता चला कि यहां अधिकतर बांग्लादेशी घुसपैठिए बसे हुए थे. अखबार बाजी,बयानात और हल्ला-गुल्ला के बाद फिर सरकार और प्रशासन दोनों सो गए आज भी यही हो रहा है,तब राज्य में भाजपा की सरकार थी, पर हुआ क्या? रघुवर दास भाजपा से हैं बहुमत की सरकार के मुख्यमंत्री रहे, चाहते तो समस्या समाधान के लिए कोई कदम उठा सकते थे पर किया क्या इस मसले पर?
बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि घुसपैठिए नागरिकता प्रमाण पत्र हासिल कर रहे हैं और सरकार उन्हें संरक्षण दे रही है ,राज्य में जब भाजपा की सरकार आएगी तो ऐसे लोगों को चुन-चुन कर निकाला जाएगा या फिर उन्हें शरणार्थी शिविरों में भर दिया जाएगा, सवाल है कि अगर पूर्व की सरकारें ईमानदार होतीं तो उन्हें राज्य की चिंता होती. तो ऐसे बयान की जरूरत नहीं पड़ती, राजनीतिक ईमानदारी तो यही है कि बाबूलाल मरांडी अपनी सरकारों पर भी ऊंगली उठाते, तो उनकी बात असरदार मानी जाती राजनीतिक स्टंट नहीं.