Ranchi: केंद्र सरकार की ओर से अल्पसंख्क बच्चों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति की राशि में झारखंड में घोटाला का मामला सामने आ रहा है. ऐसा घोटाला किसी एक जिले में नहीं बल्कि कई जिलों से सामने आ रहा है. दरअसल जो छात्रवृत्ति की राशि अल्पसंख्यक गरीब बच्चों के खाते में जानी थी वह बिचौलियों के जरिए व्यस्क, वृद्ध और दूसरे लोगों के खाते में जा रही है. गिरिडीह जिले के 28 साल के राजमिस्त्री, रांची में रहने वाले 30 साल के दंपति और लोहरदगा में 47 साल की एक टेलर की पत्नी के खाते में यह राशि जमा होने के प्रमाण मिले हैं.
बता दे कि झारखंड के छह जिलों के कई जरूरतमंद छात्रों से आधार कार्ड और फिंगर प्रिंट लिया गया था. ऐसा करने से पीछे छात्रवृत्ति की राशि सीधा उनके खाते में जाने की बात कही गयी थी. जिसे डीबीटी (डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर) कहते हैं. लेकिन इनमें से कइयों के खाते में पैसे आए ही नहीं. आए भी तो इतने कम जो किसी काम के नहीं.
स्कूल में सिर्फ 80 बच्चे और छात्रवृत्ति दे दी 323 को
घोटाले का आकलन धनबाद के एक स्कूल से लगाया जा सकता है. धनबाद जिले के इंदिरा गांधी मेमोरियल हाईस्कूल में सिर्फ तीन कमरे हैं. यहां बच्चों के रहने के लिए किसी हॉस्टल की कोई सुविधा नहीं है. स्कूल प्रबंधन का कहना है कि स्कूल में कुल मिला कर 80 बच्चे ही हैं. लेकिन 2019-20 के आंकड़ों की माने तो केंद्र सरकार की तरफ से दी जाने वाली छात्रवृत्ति की राशि यहां 323 बच्चों को दी गयी है. ये बच्चे वह हैं, जो यहां के हॉस्टल में रहते हैं. जबकि इस स्कूल में बच्चों के रहने के लिए कोई हॉस्टल है ही नहीं.
कहा- सउदी से आएगा पैसा, आधा तुम रखना आधा मुझे देना
लोहरदगा की रजिया खातून की उम्र करीब 47 साल है. उनके पति दर्जी का काम करते हैं. कुछ लोग इनके पास आए और कहा कि आप हमें अपना आधार और बैंक डीटेल दें. कारण पूछे जाने पर लोगों ने कहा कि खाते में सउदी अरब से 10,700 रुपए आएंगे. पैसे आने के बाद आधा रजिया रख लेगी और आधा हमलोगों को दे देना. पैसे आए भी. लेकिन बैंक रिकॉर्ड की जांच-पड़ताल करने पर पता चला कि यह पैसे सउदी से नहीं बल्कि लोहरदगा से 100 किमी दूर रांची के स्कूल में पढ़ने वाले अल्पसंख्यक गरीब बच्चों के हैं. जिसे केंद्र सरकार की तरफ से भेजा गया था.
क्या है छात्रवृत्ति की योजना
2008 में केंद्र की यूपीए सरकार ने एक योजना शुरू की थी. इसके तहत ऐसे अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे जो पढ़ाई करना चाहते हैं, उन्हें छात्रवृत्ति देकर पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करना था. इसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म मानने वाले शामिल थे. इस योजना के लिए 2019-20 में केंद्र के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने 1400 करोड़ रुपये भुगतान किया था.
झारखंड के हिस्से में 61 करोड़ रुपये आया था. केंद्र सरकार के गाइडलाइन के मुताबिक यह राशि दसवीं तक पढ़ने वाले अल्पसंख्यक बच्चों को दी जानी है. बच्चे ऐसे परिवार से होने चाहिए जिनकी सालाना आमदनी एक लाख से कम हो. ध्यान यह रखा जाना चाहिए कि छात्रवृत्ति ऐसे बच्चे को मिले जो परीक्षा में कम से कम पचास फीसदी अंक ला सके.
कक्षा एक से पांच तक पढ़ने वाले बच्चे को सालाना एक हजार रुपए और कक्षा छह से दसवीं तक पढ़ाई करने वाले बच्चों को 5700 रुपये दिए जाने का प्रावधान है. अगर बच्चा हॉस्टल में रह कर पढ़ाई कर रहा है तो उसे 10,700 रुपए मिलेंगे. लेकिन झारखंड में यह राशि जरूरतमंद बच्चों के खाते में जाने के बजाय किसी और के खाते में जा रहे हैं. ज्यादातर गड़बड़ियां सीनियर बच्चों को दी जानी वाली छात्रवृत्ति में की गयी है.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक रांची के अलिया आराबिया मदरसा के जिन 102 छात्रों का नाम छात्रवृत्ति की लिस्ट में है, वो बच्चे वहां पढ़ाई कर ही नहीं रहे हैं. इन सारे बच्चों का नाम हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करने वालों में हैं. इस हिसाब में करीब 11 लाख रुपए का घोटाला बैंक और कल्याण विभाग के कर्मियों की ओर से की गयी है. इस तरह के और भी मामले सामने आ रहे हैं.