Krishna Kant
देश तेजी से कंगाल हो रहा है. तीन लोगों की संपत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है. यह कोई पूर्वग्रह या धारणा नहीं है. यह तथ्य है. हम तक जितनी सूचनाएं आ रही हैं, उनके मुताबिक, पिछले सात सालों में अंबानी, अडानी और बीजेपी की संपत्तियां दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही हैं. लेकिन देश की जनता लगातार.. गरीब हो रही है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने अपनी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया है कि 2019 में पचास प्रतिशत से ज्यादा कृषि परिवार कर्ज में डूबे थे. प्रत्येक कृषि परिवार पर औसतन 74,121 रुपये का कर्ज था. रिपोर्ट के मुताबिक, छह साल पहले यानी 2013 में कर्ज में डूबे हर परिवार पर 47,000 रुपये बकाया था. 2019 में कर्ज की यह राशि 57 प्रतिशत बढ़ गई. यानी जो कर्ज में डूबे थे, उनपर 57 फीसदी कर्ज और बढ़ गया. इस दौरान लोगों की आय में मामूली बढ़ोत्तरी तो हुई है, लेकिन कर्ज और बढ़ गया है.
ये हाल वर्ष 2019 का है, जब देश नोटबंदी का दूरगामी असर एंजॉय कर रहा था. उसके बाद क्या हुआ, आपको मालूम ही है. बेरोजगारी ने 45 सालों का रिकॉर्ड तोड़ा. भारतीय बाजार के सभी कोर सेक्टर ध्वस्त हुए. उसके बाद कोरोना आया. कोरोना आने के बाद विकास का करैला नीम चढ़ गया.
महंगाई और बेरोजगारी तो बढ़ी ही. जो लोग पहले से काम कर रहे थे, उनके भी रोजगार छिन गए. अनुमानत: 15 से 20 करोड़ लोगों का काम छिन गया. अर्थव्यवस्था माइनस में चली गई. एक साल में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए.
अब हालात ये हैं कि जिस देश में कुछ 30-35 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, वहां पर 80 करोड़ लोग सरकारी मुफ्त राशन पर जिंदा हैं. जब वे कह रहे थे कि हम तुम्हारा विकास करेंगे, तब इसका अर्थ ये था कि हम तुम्हारे हाथ में कटोरा थमा देंगे. जिनको लग रहा है कि विकास हो रहा है, वे भी जल्दी ही दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए घोड़ा खोल देंगे. सनीमा में सिर्फ त्रिवेदी को बचना था. यहां किसी का बचना आसान नहीं है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.