Bhubaneswar : भारत के CJI एनवी रमना ने एक बार फिर न्याय व्यवस्था को लेकर सवाल उठाये हैं. कहा कि विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार करने और लोगों की जरूरतों के अनुरूप उनमें सुधार करने की जरूरत है ताकि वे व्यावहारिक वास्तविकताओं से मेल खा सकें. बता दें कि सीजेआई ने शनिवार को ओडिशा के कटक में राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के नये भवन के उद्घाटन के क्रम में यह बात कही. यह भी कहा कि संवैधानिक आकांक्षाओं को साकार करने के लिए कार्यपालिका और विधायिका को एक साथ काम करने की आवश्यकता है. कहा कि कार्यपालिका को संबंधित नियमों को सरल बनाकर इन प्रयासों का मिलान करना चाहिए.
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कानून में बदलाव करने की आवश्यकता पर बल दिया
CJI एनवी रमना ओडिशा के दो दिवसीय दौरे पर आये हुए हैं. उन्होंने कटक में ओडिशा राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (OSLSA) के नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर एक सभा को भी संबोधित किया. यहीं पर कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए आम लोगों के हिसाब से कानून में बदलाव करने की आवश्यकता पर बल दिया. कहा कि हमारी संवैधानिक आकांक्षाओं को तब तक पाया नहीं जा सकता, जब तक कि सबसे कमजोर वर्ग अपने अधिकारों को लागू नहीं कर सकते. साथ ही CJI ने उन भूमिकाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया जो कार्यपालिका और विधायिका न्याय प्रणाली को अधिक लोगों के अनुकूल बनाने की प्रक्रिया में निभा सकती हैं.
CJI एनवी रमना का मानना था कि आम तौर पर, न्यायपालिका को एक कानून निर्माता के रूप में कदम रखने के लिए विवश नहीं किया जायेगा और केवल इसे लागू करने और व्याख्या करने के कर्तव्य के साथ छोड़ दिया जायेगा. माना कि यह राज्य के तीन अंगों का सामंजस्यपूर्ण कामकाज है जो न्याय के लिए प्रक्रियात्मक बाधाओं को दूर कर सकता है.
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सब कुछ आम जन को पराया लगता है
एनवी रमना ने भारतीय न्यायिक प्रणाली के सामने आने वाली दोहरी चुनौतियों को लेकर कहा, स्वतंत्रता के 74 वर्षों के बाद भी हम पारंपरिक और कृषि समाज, जो जीवन के पारंपरिक तरीकों का पालन कर रहे हैं, अभी भी अदालतों का दरवाजा खटखटाने से हिचकिचाते हैं. उन्होंने कहा कि अदालत की प्रथाएं, प्रक्रियाएं, भाषा और सब कुछ उन्हें पराया लगता है. आम आदमी आज भी न्याय के लिए अदालत जाने से कतराता है.
श्री रमना ने कहा कि अक्सर कानूनी व्यवस्था सामाजिक वास्तविकताओं को जानने में विफल रहती है. दुख की बात है कि हमारी प्रणाली को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि जब तक कानून की अदालत में सभी तथ्यों और कानून का मंथन किया जाता है, तब तक प्रक्रिया में बहुत कुछ खो जाता है. कहा कि भारत में न्याय तक पहुंच की अवधारणा केवल वकीलों को अदालत में पेश करने की तुलना में बहुत व्यापक है.