Apurv bhardwaj
आज बनारस में प्रियंका की किसान न्याय रैली को जिस-जिस पत्रकार मित्र ने कवर किया, उनसे मुझे यह फीडबैक मिल रहा है कि पूर्वांचल की हवा बदल रही है. मुझे 1989 के बाद कांग्रेस की ऐसी कोई रैली याद नहीं है कि जिसमें इतने शार्ट नोटिस पर 1 लाख से ज्यादा लोग आए हो और कार्यकर्त्ताओं में इतना जोश और उत्साह हो.
जब सर पर चंदन का लेप लगाएं माता रानी की स्तुति करती हुई प्रियंका जय मातादी के नारे के साथ अपनी स्पीच शुरू करती है, तो मुझे वह कुछ कुछ इंदिरा गांधी की शैली की याद दिलाती है. पिछले एक महीने में प्रियंका ने जो जबरदस्त एक्टिविज्म दिखाया है, उससे कई राजनीतिक पंडितों की नीदं उड़ गयी है. मैं आज कुछ दावे से नही कह सकता है. लेकिन यूपी में कांग्रेस के लिए बहुत कुछ बदल रहा है.
बहुत से लोग सोचते हैं कि यूपी में कांग्रेस अगर अच्छा करेगी तो वह सपा को नुकसान पहुंचायेगी. लेकिन यह बिल्कुल गलत विश्लेषण है. एक समय यूपी में कांग्रेस ब्राह्मण, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग की पसंदीदा पार्टी रही है. 80 फीसदी ब्राह्मण आज बीजेपी को वोट देते हैं. गैर जाट व दलित का 90 फीसदी बीजेपी, बसपा और दूसरी छोटी पार्टियों में विभाजित है. सपा को दलित बहुत कम संख्या में वोट देते हैं. अल्पसंख्यक हमेशा उसको वोट देंगे जो बीजेपी को हराते हुए दिखेगा. इसलिए यह सपा को नुकसान पहुंचने की थ्योरी बकवास है.
अगर प्रियंका की सक्रियता से कांग्रेस का पुराना वोट बैंक उसकी तरफ लौटेगा तो वह केवल बीजेपी और बीएसपी का ही नुकसान करेगा. मुझे जो इनपुटस मिल रहे हैं उसके आधार पर कह सकता हूं कि अगर प्रियंका ने इसी तरह मिशन यूपी पर काम करना जारी रखा तो कांग्रेस 16-17 फीसदी वोट लेकर यूपी में तीसरी पार्टी बन जाएगी और यह 1989 के बाद यूपी विधानसभा चुनाव की सबसे बड़ी घटना होगी.
मेरे हिसाब से 2022 का चुनाव सपा और कांग्रेस को अलग अलग ही लड़ना चाहिए. यह एक अच्छी रणनीति होगी. सपा कांग्रेस और रालोद चुनाव के बाद साथ में सरकार बना सकते हैं. अगर वो सियासी बिसात पर अपने मोहरे सही समय पर चले. फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि बनारस में प्रियंका की झांकी है. 2022 की चुनाव की असली पिक्चर बाकी है.