Faisal Anurag
चुनाव परिणामों के बाद बंगाल की राजनैतिक हिंसा पर पूरे देश की मीडिया और खास कर भारतीय जनता पार्टी ने शोर मचाया, लेकिन पिछले चार सालों से जारी त्रिपुरा की हिंसा पर रहस्यमयी चुप्पी है. ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने त्रिपुरा की हिंसा के सवाल को उठा कर भारतीय जनता पार्टी को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. बंगाली फिल्मों की नायिका सायानी घोष की गिरफ्तारी ने विवाद को गंभीर बना दिया है. त्रिपुरा में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही सीपीएम के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हमले तेज हो गए. तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच हिंसक टकराव के बाद त्रिपुरा के कानून और व्यवस्था को लेकर अनेक लोगों ने सवाल उठाए हैं. बांग्लादेश में दशहरा के समय हुए सांप्रदायिक हिंसा की प्रतिक्रिया में त्रिपुरा की सांप्रदायिक घटनाओं के बाद जिस तरह 102 लोगों पर यूएपीए लगाया गया, उसे लेकर भी नागरिक समाज के लोगों ने गंभीर चिंता व्यक्त की है. सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में एक पत्रकार को पुलिस कार्रवाई से संरक्षण भी दिया है. त्रिपुरा की राजनैतिक हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई भी कर रही है.
2018 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने 1977 से जारी वामफ्रंट को चुनावों में हरा कर सत्ता से बेदखल किया था. लेकिन भाजपा ने जिस परिवर्तन का नारा देकर सत्ता हासिल किया था, वह दूर का सपना ही साबित हुआ है. राजनैतिक हिंसाओं के बहे लहू ने त्रिपुरा को एक उसे राज्य में बदल दिया है, जिसकी देश के स्तर पर चर्चा तो कम होती है. लेकिन विपक्ष के लिए राजनैतिक काम करने के अवसर बाधित किए गए हैं. इसी साल बंगाल में जबरदस्त जीत के बाद ममता बनर्जी ने पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में राजनैतिक दखल देने का फैसला किया. त्रिपुरा में 2023 में विधानसभा चुनाव होंगे. अभी निकाय चुनाव होने वाले हैं. निकाय चुनावों में ताकत दिखाने की कोशिश हर दल कर रहा है. लेकिन जमीनी हालत बता रही है कि चुनाव प्रचार के लिए सभी दलों के लिए एक समान माहौल नहीं है. पहले टीएमसी त्रिुपरा में अपने आधार को मजबूत बनाना चाहती है. अभिषेक बनर्जी स्वयं इस प्रक्रिया का नेतृत्व कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर ममता बनर्जी की स्वीकृति के लिए जरूरी है कि बंगाल के बाहर भी टीएमसी एक महत्वूपर्ण राजनैतिक पार्टी के बतौर पहचान बनाए. त्रिपुरा सहित पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी टीएमसी इसी मकसद के साथ सक्रियता दिखा रही है. यही नहीं उसने गोवा,जहां अगले साल ही चुनाव हैं, जिस तरह सक्रिय है उसका भी यही सकेत है.
राहुल गांधी की करीबी सुष्मिता देब को जिस तत्परता से पार्टी में शामिल करा उन्हें असम और त्रिपुरा के टंर्फकार्ड के बतौर पेश किया है, उसके बाद से ही भाजपा टीमएमसी के बीच टकराव बढ़े हैं. सयानी घोष के खिलाफ पहले कहा गया कि उन्होंने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में बाधा पहुंचायी है, बाद में उनके खिलाफ हत्या की धारा लगा दिया गया. टीमएमसी ने इसके बाद त्रिपुरा के मामले को न केवल राज्य के भीतर बल्कि दिल्ली में भी राजनैतिक लड़ाई बनाने और विपक्ष के अन्य दलों को लेकर भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय गठबंधन जल्द से जल्द बनाने का प्रयास तेज कर दिया है. टीमएसी के 16 सासंदों ने दिल्ली पहुंच कर गृहमंत्री से मिलने का समय मांगा. जब तत्काल समय नहीं दिया गया तो गृह मंत्रालय के समक्ष वे लोग धरना पर बैठ गए. ममता बनर्जी अब त्रिपुरा हिंसा के सवाल से प्रधानमंत्री से शिकायत करने और हिंसा के माहौल को खत्म करने का दबाव बनाने की कोशिश में हैं. दूसरी ओर इस सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर किया गया है.
बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा को भाजपा ने जिस तरह देशभर में प्रचारित किया, ठीक उसी तरह अब टीएमसी भी भाजपा के खिलाफ प्रचार अभियान चला रही है. अशांत त्रिपुरा को लंबे समय बाद माणिक सरकार के शासन काल में शांति वापस आयी थी. लेकिन 2018 के बाद से त्रिपुरा एक बार फिर हिंसक वारदातों के लिए ही जब तब चर्चा में आ जाता है. ज्यादा दिन नहीं हुए जब सीपीएम के राज्य कार्यकाल पर हिंसक आक्रमण कर आग के हवाले का दिया गया था. लेकिन बंगाल हिंसा पर शोर मचाने वाली राष्ट्रीय मीडिया ने त्रिपुरा को लेकर चुप्पी साध रखी है. टीएमसी ने पूरी राजनैतिक आक्रामकता के साथ त्रिपुरा हिंसा के खिलाफ राजनैतितिक संघर्ष का एलान किया है.
गेंद अब दिल्ली के पाले में हैं. केंद्र इस हिंसा पर लंबे समय तक खामेश नहीं रह सकता. ममता बनर्जी और टीएमसी सांसदों के दिल्ली कूच ने केंद्र पर दबाव बढ़ा दिया है. देर सबेर अन्य विपक्षी दल भी इस सवाल पर खामोशी तोड़ेंगे ही. ममता बनर्जी सोनिया गांधी,शरद पवार, लालू प्रसाद सहित अन्य विपक्षी नेताओं से भी मिलने वाली हैं.