Ranchi: 23 जनवरी यानी आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है. आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती है. देश को आजादी दिलाने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. उन्होंने आम जनता के मन में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश की ज्वाला प्रज्वलित की थी. इससे अंग्रेजों का गुरूर भस्म होना शुरू हो गया था. सुभाष चंद्र बोस का शुरुआती जीवन हौसलों की उड़ानों से भरपूर रहा और जीवन का आखिरी समय बिल्कुल रहस्यमयी रहा. उनके विचारों और आदर्शों ने देश की आजादी के रास्ते खोले थे. आज उन्हें देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में एक मार्गदर्शक, प्रेरक, राष्ट्रवादी और एक रियल हीरो के तौर पर याद किया जाता है.
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 125वें जयंती वर्ष के समारोहों के शुभारंभ के अवसर पर उनको सादर नमन। उनके अदम्य साहस और वीरता के सम्मान में पूरा राष्ट्र उनकी जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप में मना रहा है। नेताजी ने अपने अनगिनत अनुयायियों में राष्ट्रवाद की भावना का संचार किया।
— President of India (@rashtrapatibhvn) January 23, 2021
राष्ट्रपति ने भी दी श्रद्धांजलि
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा- नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 125वें जयंती वर्ष के समारोहों के शुभारंभ के अवसर पर उनको सादर नमन. उनके अदम्य साहस और वीरता के सम्मान में पूरा राष्ट्र उनकी जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप में मना रहा है. नेताजी ने अपने अनगिनत अनुयायियों में राष्ट्रवाद की भावना का संचार किया.
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पीएम नरेंद्र मोदी ने नेताजी के पराक्रम को याद करते हुए उन्हें नमन किया है. उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर ट्वीट करते हुए लिखा है- महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत माता के सच्चे सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनकी जन्म-जयंती पर शत-शत नमन. कृतज्ञ राष्ट्र देश की आजादी के लिए उनके त्याग और समर्पण को सदा याद रखेगा.
महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत माता के सच्चे सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनकी जन्म-जयंती पर शत-शत नमन। कृतज्ञ राष्ट्र देश की आजादी के लिए उनके त्याग और समर्पण को सदा याद रखेगा। #ParakramDivas
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2021
धनबाद में रहते थे नेताजी के रिश्तेदार
नेताजी का झारखंड के धनबाद जिले में पारिवारिक संबंध था. यहां उनके चाचा अशोक बोस केमिकल इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे. 16 जनवरी 1941 को जब नेताजी जियाउद्दीन पठान के भेष में धनबाद अपने चाचा के घर पहुंचे थे. वो अंग्रेजों की नजरबंदी से कोलकाता से भागकर झारखंड आये थे. वे बरारी में अपने चाचा अशोक बोस के यहां गये थे. चाचा के घर से छिपते-छिपाते नेताजी पचांची से गोमो स्टेशन पहुंचे थे. गोमो स्टेशन से ट्रेन लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुए थे. भारत की आजादी के बाद से आज तक धनबाद में उनकी यादों को संजो कर रखा गया है.