Manish Singh
जो कल बहसों में किसानों को दोषी बता रहे थे. ट्वीट कर रहे थे. अब जान चुके है कि ये आक्षेप गढ़ा हुआ है. प्लांटेड है. ये पुराना और जाना पहचाना पैटर्न है. फॉल्स अटैक और सशक्त प्रोपगैंडा का. जो जेनएयू, जामिया और पुलवामा में कारगर रहा है. दिस इज एन अटैक.. टू बी वॉन लाइक क्रेजी ! (This is an Attack… To be won like crazy).
इस वक्त अगर किसान जरा भी ठिठकते हैं, तो उनकी गति टूटती है. उस वक्त जब किसान, ऐतिहासिक विजय के करीब हो, बस ऐसा कोई पैंतरा ही काम कर सकता था. यही किया गया है. एक कुटिल सरकार की साम- दाम- दण्ड- भेद की नीति ने भरपूर चोट की है. और हमेशा की तरह ये चोट, बिलो द बेल्ट है.
आंदोलन के लिए ये वक्त नदी की बीच धारा है. यहीं सबसे ज्यादा गहराई है. डूबने के खतरे है. पार उतरने के संघर्ष में यह क्षण आना ही था. अभी तो बस पैर जमीन पर टिकाए रखना है. सधे कदमों से आगे बढ़ना है. एक-दूसरे का हाथ पकड़ना है. बस, कुछ कदम और. हर कदम के साथ गहराई घटती जाएगी. पानी घटता जाएगा. किनारा पास है, यह नदी तो पार होनी ही है.
मगर देख रहा हूं. किसान आंदोलन के कई समर्थक शर्मिंदा होकर घूम रहे हैं. डिफेंसिव है. एक्सप्लेन कर रहे हैं. वे हिंसा के साथ और झंडे के खिलाफ खड़े नहीं देखे जाना चाहते. खाद्य सुरक्षा, भोजन के अधिकार और कृषि क्षेत्र से सरकार के पल्ला झाड़ने से शुरू हुआ किस्सा. लाल किले के झंडे में जाकर अटक गया है. हमारी सदाशयता को ललकारा गया है. हम ठिठक गए हैं.
बस हमारा ठिठकना. सरकारी शिविर में अट्टहास ऊंचा कर रहा हैं. ठिठकना नहीं है. झिझकना नहीं है. किसान सिर्फ आपके विश्वास की ताकत पर लड़ा है. वो किसान कल सुबह पवित्र था, आज की शाम भी है. मुद्दा कल भी वही था, आज भी है. लड़ाई अब भी जमाखोरी के खिलाफ है. आम आदमी का पेट काटने के खिलाफ है, उसे पूंजी की तलवार पर परोसने के खिलाफ है.
कुछ नही बदला है. जो साथ थे, वो साथ हैं. जो खिलाफ थे, वो खिलाफ है. अखबारों की हेडलाइन. एंकरों की चीख में तल्खी कल भी थी, आज भी है. पर आम हिंदुस्तानी इस वक्त भी किसान के साथ है. दूर गांवों में बैठा, हर किसान, दिल्ली में जमे साथियोँ की जीत की दुआएं कर रहा है.
तो आप अपनी सदाशयता के शिकार न बनिये. किसानों को आपके भरोसे की जरूरत है. उतने ही तेज शोर से चीयर की जरूरत है. इसमे जरा सा भी धीमापन, किसान से धोखा है. देश के भविष्य से धोखा है. कुटिलता के समक्ष पूर्ण समर्पण है. टोटल डीफिट है.
अगर ऐसा कर गए है, लौटिये. जूम कीजिये. किसान की पीठ पर जो चोट के निशान हैं, वो पुलिस ने नहीं दिए. ध्यान से देखिये, हर चोट में आपको अपना ट्वीट दिखेगा, कमेंट दिखेंगे. कुटिल सलाहें और कल से दी जा रही गालियां दिखेंगी.
जी हां. ये घाव पुलिस ने नही दिए, हमने दिए हैं.
डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.