Lagatar Desk : किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को भारी पड़ सकता है. दरअसल राज्य में इसी साल पंचायत चुनाव होने हैं. अगले साल विधानसभा के भी चुनाव हैं. पश्चिमी उत्तरप्रदेश का जाटलैंड उबाल पर है. 26 जनवरी को दिल्ली की सड़कों पर हुए उपद्रव और लालकिले पर निशान साहिब फहराये जाने के बाद मुरझाते किसान आंदोलन को भाकियू नेता राकेश टिकैत के आंसुओं ने सींच दिया है.
जाटों का संख्या उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का करीब 4 प्रतिशत है
मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में किसानों और समर्थनों का हुजूम उमड़ा और मंद पड़ती आंदोलन की फसल और लहलहा उठी. उत्तरप्रदेश की सियासी नब्ज पहचाननेवालों का मानना है कि राकेश टिकैत के आंसुओं के बाद पश्चिमी यूपी के जाट समुदाय में भारी गुस्सा है. यह गुस्सा आगामी चुनावों में भाजपा को महंगा पड़ सकता है.
जाटों का संख्या उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का करीब 4 प्रतिशत है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट कुल आबादी का 17 फीसदी हिस्सा हैं. सहारनपुर, मेरठ और अलीगढ़ मंडल के जिलों की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर जाट मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं. इनके अलावा करीब दो दर्जन सीटों पर जाट मतदाता
किसी उम्मीदवार को जिताने की ताकत रखते हैं. इससे समझा जा सकता है कि जाटों की नाराजगी भाजपा को कितनी महंगी पड़ सकती है.
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पिछले चुनावों में मिला था जाट बिरादरी का समर्थन
वेस्ट यूपी में 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत में जाट बिरादरी का समर्थन एक बड़ा कारण रहा है. अगर जाट बिदक गये, तो आनेवाले पंचायत और विधानसभा चुनाव में उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
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और यूं जिंदा हो गया किसान आंदोलन
गुरुवार शाम तक दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन दम तोड़ता दिख रहा था. दो किसान यूनियनों ने आंदोलन से हटने की घोषणा कर दी थी. योगी सरकार भी आंदोलन को खत्म कराने पर आमादा थी. दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर यूपी प्रशासन ने किसानों को अपना बोरिया बिस्तर समेटने की चेतावनी भी दे दी थी.
इससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी सरगर्मी बढ़ गयी. किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत ने घोषणा कर दी कि जान दे देंगे मगर आंदोलन खत्म नहीं करेंगे. सरकार को कोसते हुए उन्होंने भाजपा पर सीधा हमला बोला. कहा कि भाजपा समर्थक हमारे बुजुर्गों पर लाठियां चला रहे हैं. मगर हम इंसाफ लिए वापस नहीं लौटने वाले.
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टिकैत के एलान पर वेस्ट यूपी में तीखी प्रतिक्रिया
टिकैत के इस एलान की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तीखी प्रतिक्रिया हुई. मुजफ्फरनगर के सिसौली में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. किसान आंदोलन के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए हर घर से लोग महापंचायत में पहुंचे. सपा, रालोद, आप औऱ कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने भी आंदोलन को समर्थन देकर किसानों की मांगों के प्रति एकजुटता दिखाई.
भाजपा को भारी पड़ सकती है किसानों की नाराजगी
किसानों में जाटों की तादाद भले ही ज्यादा हो, लेकिन इनमें अन्य जातियां भी शामिल हैं. पंचायत में शामिल होनेवालों में अन्य जातियों के लोग भी शामिल थे. इन लोगों की नाराजगी भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है. विश्लेषकों का कहना है कि नुकसान की आशंका से ही योगी सरकार ने पैर वापस खींचे और गुरुवार की रात किसानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.
अब देखना है कि इसी साल होनेवाले पंचायत चुनावों में ग्रामीण मतदाताओं का क्या रुख रहता है. किसान आंदोलन की आंच इसी साल हो रहे पंचायत चुनाव और अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को झुलसायेगी या फिर बुझ कर ठंडी हो जायेगी, यह तो वक्त ही बतायेगा.