Surjit Singh
क्या आप कल्पना कर सकते हैं लोकतंत्र में वो कौन तबका है, जिसने कभी आंदोलन में भाग नहीं लिया हो. क्या आप ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हैं जो किसी ना किसी रुप से किसी ना किसी छोटे-बड़े आंदोलन में शामिल नहीं हुए हों. शायद नहीं. हममें से अधिकांश लोग कभी ना कभी किसी ना किसी रुप से किसी ना किसी आंदोलन से जुड़े जरुर हैं. तो क्या पूरा का पूरा देश आंदोलनजीवी यानी परजीवी हैं. किसान आंदोलन के बीच में प्रधानमंत्री ने आंदोलन में शामिल होने वाले नेताओं के बारे में यह उपनाम दिया है. तो क्या इस देश में हुए तमाम आंदोलनों में शामिल रहे लोग उसी श्रेणी में हैं. क्या प्रधानमंत्री ने खुद कभी किसी आंदोलन में भाग नहीं लिया.
वन रैंक वन पेंशन को लेकर सेना के पूर्व जवानों ने भी आंदोलन किया. राज्यों की पुलिस के जवान भी आंदोलन करते रहते हैं. क्या वो सब आंदोलनजीवी यानी परजीवी हैं. क्या सेना और पुलिस के जवानों को भी प्रधानमंत्री के इस आंदोलनजीवी-परजीवी वाले टैग से खुद को गौरवान्वित सकते हैं.
देश का ऐसा कौन सा हिस्सा होगा, जहां शिक्षकों का आंदोलन नहीं होता है. तो क्या प्रधानमंत्री के मुताबिक देश के सारे शिक्षक परजीवी हैं.
कॉलेज-यूनिवर्सिटी के छात्र भी आंदोलन करते हैं. कभी समय पर परीक्षा कराने के लिये, कभी फीस बढ़ोतरी के खिलाफ, कभी पुस्तकालय की मांग को लेकर. तो क्या वे सभी लोग परजीवी या आंदोलनजीवी थे और हैं.
फैक्टरी-कंपनी में काम करने वाले मजदूर भी वेतन बढ़ाने, सुविधा बहाल करने, नीजिकरण के खिलाफ आंदोलन करते रहते हैं. प्रधानमंत्री के अनुसार, वो सभी भी परजीवी ही है.
सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट से लेकर जिला स्तर से कोर्ट में भी आंदोलन होते हैं. वकील आंदोलन में शामिल होते हैं. कभी उनकी मांग मानी जाती है तो कभी आश्वासन पर आंदोलन खत्म हो जाता है. अब वो सभी आदोलनजीवी और परजीवी कहे जायेंगे.
अब बात नेताओं की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक नेता ही हैं. भूतकाल में उन्होंने भी कई आंदोलनों में भाग लिया था. तो तब वो परजीवी ही थे ना. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कवि गुरू रविंदनाथ टैगोर, सुभाष चंद्र बोस, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी आंदोलनों में भाग लेते थे. तो क्या वो सब आंदोलनजीवी यानी परजीवी थे.
देश में अभी शीर्ष के तमाम नेता लालकृष्ण आडवाणी, रविशंकर प्रसाद, नीतीश कुमार, रघुवर दास (सभी भाजपा के ही हैं), शिबू सोरेन, मुलायम सिंह यादव, ममता बनर्जी समेत जितने भी नाम याद आये, सभी आंदोलनों की ही उपज हैं. तो क्या सभी आंदोलनजीवी-परजीवी थे और हैं. भाजपा जहां भी विपक्ष में है, वहां पर उनके नेता आंदोलनों में भाग लेते ही हैं, तो क्या वे सभी भी परजीवी ही कहलायेंगे.
क्या इसे इस रुप में भी समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले मुसलमानों को, फिर विपक्ष के नेताओं को, फिर उनकी पार्टी ने सिख समुदाय के लोगों को, फिर ईसाइयों को अपमानित किया. और देश के किसान, सेना-पुलिस के जवान, शिक्षक, छात्र, मजदूर, नेता, वकील, पत्रकार समेत तमाम तबके के लोगों को एक साथ अपमानित किया. इसके बाद भी देश का बड़ा तबका चुप ही है.