Shivendra
बीते 7 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने की घटना ने सबको चौंका कर रख दिया. फरवरी महीने में जबरदस्त ठंड में उस इलाके में हिमपात होते हैं. ऐसे में ग्लेशियर का फटना वाकई में हैरान करने वाली घटना थी. चमोली घटना को लेकर कई तरह की थ्योरी इंटरनेट पर तैर रही है. कोई इसे चीन की साजिश बता रहा है, तो कोई मोरारजी देसाई सरकार की लापरवाही.
वाडिया हिमालय भूगर्भीय संस्थान के निदेशक कला चंद साईं ने इस त्रासदी पर हैरानी जाहिर करते हैं. उनका कहना है कि आखिर फरवरी में कैसे ग्लेशियर फट सकता है? दूसरी तरफ केंद्रीय जल आयोग के निर्देशक शरद चंद्र ने भी इस हादसे पर आश्चर्य जताया है. प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दैनिक में प्रकाशित उनके एक लेख के मुताबिक अचानक ऐसा होना आश्चर्यजनक है. हर 24 घंटे सैटेलाइट इमेज की समीक्षा की जाती है. ऐसे में 1 दिन पहले ऐसे कोई संकेत नहीं दिखाई देते. न सिर्फ भारतीय बल्कि कनाडा के कॉलगिरी विश्वविद्यालय के जिओमारफोलॉजिस्ट डॉक्टर डेन शुगर भी घटना को एक मिस्ट्री मानते हैं.
इस पूरे हादसे को चीन की साजिश के तौर पर भी देखा जा रहा है. आशंका जताई जा रही है कि चीन ने भारत की “काली” जैसी किसी चीज का इस्तेमाल कर लेजर बीम से ग्लेशियर को काटा है. इस कारण ही चमोली हादसा हुआ है. आपकी जानकारी के लिए “काली” का मतलब किलो एंपियर लीनियर इंजेक्टर होता है. हिंदुस्तानियों के लिए काली शब्द नया नहीं है. मगर यहां काली का मतलब देवी काली नहीं बल्कि एक गुप्त हथियार है. काली बेहद बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा करने वाला एक यंत्र है. यह सेकंड के हजारों हिस्से में एक बहुत बड़ी ऊर्जा का तूफान पैदा करता है. माना जा रहा है कि यह हथियार जो सिर्फ भारत और अमेरिका के पास हुआ करता था, उसे चीन ने भी बना लिया है. और उसके इस्तेमाल से ग्लेशियर को काटकर उसने यह विध्वंस किया है.
लोग यह भी तर्क दे रहे हैं कि जहां ग्लेशियर टूटा, वह जगह चीन की सीमा के नजदीक है. चीन की इस हरकत के पीछे भारत को नुकसान पहुंचाने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की चार धाम सड़क परियोजना के ऊपर सवाल खड़ा करने का मंसूबा भी बताया जा रहा है.
दूसरी ओर तपोवन के कुछ लोगों का कहना है कि 1965 में भारत और अमेरिका के एक सीक्रेट मिशन में नंदा देवी में एक रेडियो एक्टिव डिवाइस खो गया था. इसी ड्वाइस की वजह से गर्मी पैदा हुई. उसने ही ग्लेशियर को नुकसान पहुंचाया और यह घटना हुई. आपको बता दें कि नंदा देवी भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है. 1965 से आज तक यहां एक राज दफन है.
दरअसल शीतयुद्ध के दौर में भारत और अमेरिका ने 1965 में एक सीक्रेट मिशन यहां चलाया था. इसका उद्देश्य चीन की परमाणु गतिविधियों पर नजर रखना था. चीन की निगहबानी के इस मिशन में 200 लोगों की एक टीम शामिल हुई थी. नंदा देवी पर्वत पर 56 किलोग्राम का यंत्र स्थापित किया जाना था. अक्टूबर 1965 में मौसम बिगड़ने की वजह से टीम के सामने करो या मरो की स्थिति थी. ऐसे में मिशन को अबॉर्ट कर दिया गया. परमाणु सहायक शक्ति जेनरेटर मशीन और प्लूटोनियम कैप्सूल को वहीं छोड़ना पड़ा. हालांकि इसके बाद 1966 में भी अमेरिका की है एक्सपर्ट टीम ने मशीन को ढूंढने का प्रयास नंदा देवी पर्वत पर किया. मगर कुछ हाथ नहीं लगा.
एक्सपर्ट्स की मानें तो ये प्लूटोनियम कैप्सूल 100 साल तक एक्टिव रह सकते हैं. इस कैप्सूल का जिक्र करते हुए गांव के लोग यह मान रहे हैं कि उसकी वजह से जो गर्मी उत्पन्न हुई उससे यह घटना हुई है. बहरहाल सच्चाई जो भी हो, मगर ये दोनों थ्योरीज लोगों के बीच कौतूहल का विषय बन गयी हैं.