Akshay Kumar Jha
Ranchi: 22 मार्च 2019 को कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राज्यभाषा विभाग में सूचना का अधिकार के तहत एक जानकारी मांगी जाती है. पूछा जाता है कि कितने समय तक एक नॉन आईएएस कैडर के पदाधिकारी का आईएएस कैडर के पद पर बने रहना वैधानिक है. जवाब मिला कि इसकी जानकारी The Indian Administrative Service (Cadre) Rules 1954 में है. वेबसाइट से इस बाबत जानकारी ली जा सकती है. लगातार… ने जब वेबसाइट को खंगाला और जो जानकारी मिली वो चौंकाने वाले हैं.
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चौंकाने वाले इसलिए क्योंकि नियम के मुताबिक कोई भी नॉन आईएएस कैडर आईएएस की पद पर सिर्फ तीन महीने ही रह सकता है. अगर राज्य सरकार उस नॉन आईएएस कैडर की अवधि विस्तार करना चाहती है, तो उसे भारत सरकार से इसकी अनुमति लेनी होगी. वो भी सिर्फ छह महीने के लिए. इसके बाद भी राज्य सरकार नॉन आईएएस कैडर का अवधि विस्तार करती है, तो केंद्र सरकार को इसके लिए यूपीएससी को लिखना होगा. वहां से अनुमति मिलने के बाद ही नॉन कैडर आईएएस की अवधि विस्तार हो सकती है. लेकिन झारखंड में जो रहा है, वो काफी चौंकाने वाला है. यहां पांच साल से ज्यादा होने को है और सारे नियम कायदों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं.
नियम कायदों को ताक पर रख 5 साल से मनरेगा आयुक्त के पद पर जमे हैं IFS सिद्धार्थ त्रिपाठी
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झारखंड में आईएएस अधिकारियों के लिए 117 पद चिन्हित हैं. इनमें से एक मनरेगा आयुक्त का भी है. 14 नवंबर 2015 को आईएफएस सिद्धार्थ त्रिपाठी को रघुवर सरकार ने मनरेगा आयुक्त बनाया. केंद्र सरकार की नियमों की बात करें तो सिद्धार्थ त्रिपाठी इस पद पर सिर्फ तीन महीने ही बने रह सकते थे. यानी वो 14 फरवरी 2016 तक इस पद पर बने रह सकते थे. इसके बाद और छह महीने तक इस पद पर बने रहने के लिए राज्य सरकार को केंद्र सरकार से अनुमति लेनी थी. जो कि नहीं ली गयी. छह महीने के बाद भी अगर सिद्धार्थ त्रिपाठी इस पद पर बने रहते हैं तो केंद्र सरकार को यूपीएससी से अनुमति लेनी थी. जो कि नहीं ली गयी.
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आखिर किसका वरदहस्थ प्राप्त है IFS सिद्धार्थ त्रिपाठी को
सिद्धार्थ त्रिपाठी जब से पद पर बने हुए हैं, उनपर कई तरह के गंभीर आरोप लगे हैं. रघुवर सरकार ने कभी भी इनपर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की. पुरानी सरकार में जब हेमंत सोरेन विपक्ष का नेता हुआ करते थे. तो विधानसभा में मनरेगा घोटालों को लेकर हेमंत सोरेन ने खुद आवाज उठायी. लेकिन रघुवर सरकार की तरफ से कोई जांच नहीं की गयी.
माना यह जा रहा था कि रघुवर सरकार में सिद्धार्थ त्रिपाठी की पकड़ काफी मजबूत थी. इसलिए वो लगातार गलत तरीके से पद पर बने हुए थे. लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि हेमंत सरकार में भी सिद्धार्थ त्रिपाठी सारे कायदों को ठेंगा दिखाते हुए आखिर कैसे मनरेगा आयुक्त के पद पर बने हुए हैं. आखिर सिद्धार्थ त्रिपाठी को किसका वरदहस्थ प्राप्त है. ब्यूरोक्रेसी में भी इस बात की चर्चा जोरों से हो रही है. लेकिन कार्रवाई नहीं.
कल पढ़ेः केंद्रीय मंत्रालय की चिट्ठी के बावजूद राज्य के मुख्य सचिव नहीं कर पा रहे IFS सिद्धार्थ त्रिपाठी पर कार्रवाई.
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