Bokaro : झारखंड की पहचान जल,जंगल व जमीन से है. यह महज पहचान ही नहीं बल्कि कई लोगों के रोजगार सृजन का साधन भी है. जरीडीह प्रखंड के सुदूरवर्ती गांवों की महिला जंगल से चुने महुआ से प्रतिदिन 300 रुपये कमा रही है. ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश महिलाओं के लिए इन दिनों महुआ जीविका का स्रोत बना हुआ है.
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ग्रामीण जीविका के लिए पूर्ण रूप से जंगल पर आश्रित हैं.
ग्रामीण महिलाएं सुबह-शाम जंगल जाती है और वहां से महुआ चुनकर उसे बाजार में बेच रही है. जिसे महिलाओं के दो वक्त के भोजन का जुगाड़ हो जा रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि महिलाएं रोजाना जंगल जाकर महुआ चुन कर 200 से 300 रूपये की आमदनी कर रही है. वहीं गांव के अधिकांश ग्रामीण जीविका के लिए पूर्ण रूप से जंगल पर आश्रित हैं.
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पर्यावरण संरक्षण को लेकर ग्रामीण सतर्क
लोगों ने बताया कि महुआ का सीजन खत्म होते ही केन्दुपत्ता और भेलवा तोड़कर बाजार में बेचकर परिवार का भरण पोषण करते हैं. इसी कारण पर्यावरण संरक्षण को लेकर ग्रामीण सतर्क हैं. गोमिया ,बेरमो,कसमार के जंगलों में प्रकृति ने कई ऐसे चीजों को अपने आंचल में समेटे हुए हैं जो झारखंडियों का सहारा बने हुए हैं.
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