Amit Singh
Ranchi : झारखंड पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के इंजीनियरों ने अवैध कमाई के लिए इंजीनियरिंग का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है. विभाग के इंजीनियरों ने 2009-10 में शहरी जलापूर्ति योजना का एस्टीमेट तैयार किया था. उसी समय अपने फायदे के लिए रांची का भूकंप जोन बदल दिया. कागज में हुए इस बदलाव पर किसी की नजर नहीं गयी, मगर इस बदलाव का असर दूरगामी पड़ा.
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184 करोड़ बढ़ गयी लागत, काम 8 साल पीछे
जेएनएनयूआरएम रांची शहरी पेयजलापूर्ति योजना की लागत 288 करोड़ से बढ़कर 472 करोड़ तक पहुंच गयी है. यानी योजना लागत में करीब 184 करोड़ की बढ़ोत्तरी हो गयी. 2013 में पूरी होनेवाली जलापूर्ति योजना का काम अभी भी बाकी है. लगातार न्यूज की पड़ताल में पता चला कि जब शहर का भूकंप जोन बदला जाता है, तो नक्शे से लेकर निर्माण तक लागत में 5 फीसदी का इजाफा होता है.
नगर विकास के तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी जेपी लकड़ा ने पेयजल विभाग को पत्र भेजा था. इसमें लिखा था कि लागत करीब 100 करोड़ रु. बढ़ी है. इसका विस्तृत उल्लेख नहीं है कि यह राशि किस मद में कितनी बढ़ी और क्यों. मगर पेयजल के इंजीनियरों ने नगर विकास विभाग को किसी भी प्रकार की जानकारी उपलब्ध नहीं करायी.
जानिये कैसे डीपीआर में भूकंप जोन बदलकर एस्टीमेट में कर दी बढ़ोत्तरी
जेएनएनयूआरएम के तहत शहरी पेयजलापूर्ति योजना के तहत रांची में काम चल रहा है. इस योजना को वर्ष 2009-10 में तकनीकी स्वीकृति मिली थी. योजना के डीपीआर में रांची को भूकंप जोन-3 में दिखाकर एस्टीमेट 288.39 करोड़ बनाया गया. जबकि भारतीय भूगर्भ विभाग के अनुसार, राजधानी भूकंप जोन-2 में आता है. रांची भूकंप के मामले में सुरक्षित जोन में आता है. मगर पेयजल विभाग के इंजीनियरों ने एस्टीमेटेड कॉस्ट में बढोत्तरी के लिए भूकंप जोन में बदलाव कर दिया.
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पीडब्ल्यूडी कोड के अनुसार भूकंप जोन- 3 का रेट भूकंप जोन-2 से 5 प्रतिशत ज्यादा
भूकंप जोन -3 की वजह से डीपीआर बनाते समय एस्टीमेट कॉस्ट में तत्काल 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी. क्योंकि पीडब्ल्यूडी कोड के अनुसार, जोन-3 का रेट, जोन-2 के रेट से 5 प्रतिशत अधिक है. जोन-2 के रेट पर योजना कॉस्ट डिसाइड होता, तो एस्टीमेट कॉस्ट स्वत: 5 प्रतिशत कम हो जाता.
मगर पेयजल विभाग के इंजीनियरों ने रांची को भूकंप जोन-3 में दिखाकर एस्टीमेट 288.39 करोड़ का बना दिया. डीपीआर में जोन-2 दिखाते, तो एस्टीमेट 273.97 करोड़ रु. होता. यानी 14.42 करोड़ रु. डीपीआर बनाते समय ही इंजीनियरों ने अपनी तकनीक से कमा लिये. वर्तमान में योजना लागत बढ़कर 472 करोड़ हो गयी है. यानी जोन-2 के एस्टीमेट से करीब 180 करोड़ रुपये ज्यादा. अगर भूकंप जोन-2 के रेट से काम होता, तो योजना की लागत अभी बढ़ने के बाद भी 325 करोड़ तक ही पहुंचती.
क्या है भूकंप जोन?
लगातार न्यूज ने रांची विवि भूगर्भ विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर उदय कुमार और मौसम विभाग रांची के वैज्ञानिक अभिषेक आनंद से बातचीत की. विशेषज्ञों से जाना कि क्या है भूकंप जोन. उन्होंने बताया कि भूकंप को देखते हुए देश को 5 जोन में बाटा गया है. जोन के हिसाब से निर्माण कार्य सरकारी एजेंसी कराती है. जैसे-जैसे जोन में बढ़ोत्तरी होती है, वैसे-वैसे निर्माण की लागत में भी बढ़ोत्तरी का प्रावधान है.
-पूरा देश भूकंप क्षेत्र के आधार पर 5 हिस्सों (जोन-1 जोन-2, जोन-3, जोन-4 और जोन-5) में बांटा गया है. जोन-5 सबसे खतरनाक माना गया है.
जोन- 2 : सबसे कम खतरे वाला जोन. कंपन महसूस होता है. लेकिन नुकसान की संभावना न के बराबर होती है. यहां तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 1 से 4 के बीच होती है.
सिर्फ धनबाद के आसपास इलाका ही जोन-3 से सटा हुआ है
जोन- 3 : 5 से 7 की तीव्रता वाला भूकंप महसूस होता है. संरचनाओं और इमारतों में हल्की क्षति की आशंका ज्यादा होती है. झारखंड में सिर्फ धनबाद के आसपास का इलाका ही इस जोन से सटा हुआ है.
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