Girish Malviya
क्या आप यकीन कर सकते हैं कि पिछले तीन साल और 9 महीनों में मोदी सरकार ने उद्योगपतियों का लगभग साढ़े सात लाख करोड़ रुपये राइट ऑफ कर दिया है ! जबकि मनमोहन सरकार के पूरे 10 सालों में राइट ऑफ की जाने वाली रकम कुल मिलाकर मात्र 2 लाख 20 हजार करोड़ ही थी. कहां लगभग साढ़े तीन साल और कहां 10 साल. दस साल की तुलना में तीन गुनी से भी कहीं ज्यादा रकम मोदी सरकार ने राइट ऑफ की है.
जी हां ! 9 मार्च तो यह जानकारी वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में दी है. उन्होंने देश को बताया है कि इस वित्त वर्ष के पिछले 9 महीने में कॉमर्शियल बैंकों ने 1.15 लाख करोड़ के बैंक लोन को राइट ऑफ किया है.
इसे भी पढ़ें- बस निर्माता कंपनी स्कैनिया ने सात राज्यों में ठेके के लिए दी घूस, रिपोर्ट में ‘एक मंत्री’ का भी जिक्र
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक कॉमर्शियल बैंकों ने वर्ष 2017-18 में 1.68 लाख करोड़, वर्ष 2018-19 में 2.36 लाख करोड़ रुपए, वर्ष 2019-20 में 2.34 लाख करोड़ रुपए और वर्ष 2020-21 के पहले 9 महीनों में 1.15 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है. कुल मिलाकर यह रकम लगभग साढ़े सात लाख करोड़ रुपये होता है.
आपको याद होगा कि राहुल गांधी ने पिछले साल इसी मार्च के मध्य में सदन में नरेंद्र मोदी के मित्र उद्योगपतियों के लोन माफ कर देने का सवाल उठाया था. उस वक्त उनका मजाक उड़ाया गया. लेकिन बाद में आरटीआई में हकीकत सामने आई कि मेहुल चोकसी और विजय माल्या की कंपनियों सहित जानबूझकर बैंकों का कर्ज नहीं चुकाने वाली शीर्ष 50 कंपनियों का 68,607 करोड़ रुपये का बकाया कर्ज तकनीकी तौर पर 30 सितंबर 2019 तक बट्टे खाते में डाला जा चुका है.
इसे भी पढ़ें- HC ने रांची-टाटा NH निर्माण में तेजी लाने का दिया निर्देश, मांगी स्टेटस रिपोर्ट
अब आप यह भी जान लीजिए कि यह सब सिर्फ कोरे फिगर नहीं हैं. आपके और हमारे ऊपर इन फिगर्स का सीधा असर होता है. राइट ऑफ की गई रकम की भरपाई के लिए बैंक अपने बाकी कमाई के जरियों पर निर्भर रहता है. जैसे कि बाकी लोन्स पर आ रहा ब्याज, सेविंग वगैरह पर दिया जा रहा ब्याज कम करना आदि. इसलिए ही आप देखेंगे कि बैंकों द्वारा लगातार सेविंग्स की ब्याज दरों को कम किया जा रहा है. ताकि पैसा बचे और इस घाटे की पूर्ति की जा सके. मिनिमम बेलेंस चार्ज ओर अन्य बैंकिंग चार्ज बढ़ा कर इस रकम की पूर्ति की जाती है.
इसके अलावा भी सरकार, आरबीआई या सरकारी वित्तीय संस्थाएं सरकारी बैंकों को मदद के लिए जो रकम देती हैं, वह भी दरअसल आपकी जेब से ही जाता है.
यानी आप सोचिए कि आपका पैसा लेकर विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल भाई’ जैसे लोग भाग जाएं. बैंक और सरकार उस नुकसान की पूर्ति के लिए आपसे ही इस रकम की वसूली करें. क्योंकि तेल तो तिल से ही निकलता है. और वो तिल हम और आप ही हैं. सरकार हमारा ही तेल निकाल रही है.
Disclaimer- यह लेखक के निजी विचार हैं.