Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) आईआईटी-आईएसएम के अनुसंधान में यह बात सामने आई है कि वाटर ट्रीटमेंट के दौरान क्लोरीन का उपयोग कर पानी के क्लोरीनीकरण से पानी में ट्राईहेलोमेथेन का निर्माण होता है, जिसका कैंसर कारक (कार्सिनोजेनिक) प्रभाव मनुष्यों पर पड़ता है. यदि इस प्रक्रिया से उपचार किये गए पानी का इस्तेमाल लंबे समय तक किया जाए तो कैंसर की संभावना बढ़ जाती है.
आईआईटी आइएसएम के पर्यावरण विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के दो सदस्यीय दल ने कई वर्षों तक अपने रिसर्च के बाद यह दावा किया है. रिसर्च टीम में प्रो एसके गुप्ता और मीना श्री कुमारी शामिल थी. रिसर्च टीम ने झारखंड के तीन वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और पश्चिम बंगाल के दो वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के पानी का नमूना लेकर यह रिसर्च किया था. डॉ गुप्ता ने दावा किया कि इसका प्रतिकूल प्रभाव शिशुओं के जन्म के समय कम वजन, समय से पहले जन्म और गर्भपात पर भी पड़ता है.
विश्व भर के 78 शोधों में भी किया गया है दावा
प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि विश्व के विभिन्न देशों में 78 शोध कार्यों का विश्लेषण करने के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं. बताया कि उन्होंने रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्पेन, तुर्की, हांगकांग, कोरिया, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, कनाडा और मिस्र में किए गए शोध पत्रों का भी अध्ययन किया. उन्होंने बताया कि यह समस्या विकासशील देशों में अधिक है, क्योंकि वहां उचित (मानिकीकृत) कीटाणु शोधक प्रक्रिया को नहीं अपनाते हैं और ट्रीटमेंट किए गए पानी की उचित जांच का भी कोई पैमाना नहीं है.
क्लोरीन से अच्छा विकल्प है मोनो क्लोरामाइन
प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि पानी में ट्राईहेलोमेथेन के निर्माण को रोकने के लिए क्लोरीन के स्थान पर मोनो क्लोरामाइन अच्छा विकल्प है इससे पानी को ट्रीटमेंट करने पर ट्राईहेलोमेथेन का कंसंट्रेशन 30% तक घट जाता है. लेकिन इसके साथ हाइब्रिड सिस्टम को अपनाकर तथा पानी के ट्रीटमेंट के बाद नेचुरल ऑर्गेनिक कार्बन के लेवल का रेगुलर मॉनिटरिंग करके इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है. क्योंकि पानी के ट्रीटमेंट के बाद ट्राईहेलोमिथेन का निर्माण पानी में मौजूद नेचुरल ऑर्गेनिक मैटर (एनओएम) पर भी निर्भर करता है.
यह भी पढ़ें: धनबाद: सड़क दुर्घटना में युवक घायल, ग्रामीणों ने किया रोड जाम
Leave a Reply