Ranchi : दीवाली हिन्दुओं का सबसे प्रमुख और बड़े त्यौहारो में से एक माना जाता है. यह समृद्धि, शांति, खुशहाली और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. दीवाली को रोशनी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान राम रावण पर विजय पा कर 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या वापस आ रहे थे तो उनके आने की खुशी में अयोध्या को दीपको से रोशन किया गया था. और पूरा अयोध्या दीयों की रोशनी से रोशन हो गया था.
यह भी माना जाता है कि दीवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु ने शादी की थी जिसकी खुशी में सारे देवताओं ने दीप प्रजवल्लित किया था. इस दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि दीवाली के दिन विधि-विधान से पूजा करने पर घर से दरिद्रता दूर होती है और घर में सुख-समृद्धि तथा बुद्धि का आगमन होता है. हिन्दुओं के अलावा सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोग भी दीवाली धूमधाम से मनाते हैं.
इसे भी पढ़े – 15 नवंबर को झारखंड आंदोलनकारियों का पूरे राज्य में उपवास कार्यक्रम
कब मनायी जाती है दीवाली ?
दीवाली हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन मनायी जाती है ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार दीवाली प्रत्येक साल अक्टूबर या नवंबर महीने में आती है, 2020 को दीवाली 14 नवंबर दिन शनिवार को मनायी जा रही है.
इसे भी पढ़े – किसी काम के नहीं कोविड, दिवाली और पूजा के लिए दिये गये सरकारी आदेश, सिर्फ कागजों की बढ़ रही है शोभा
पूजा में उपयोग होने वाले सामाग्री
लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, लक्ष्मी जी को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, लाल कपड़ा, सप्तधान्य, गुलाल, लौंग, अगरबत्ती, हल्दी, अर्घ्य पात्र, फूलों की माला और खुले फूल, सुपारी, सिंदूर, इत्र, इलायची, कपूर, केसर, सीताफल, कमलगट्टे, कुशा, कुंकु, साबुत धनिया (जिसे धनतेरस पर खरीदा हो), खील-बताशे, गंगाजल, देसी घी, चंदन, चांदी का सिक्का, अक्षत, दही, दीपक, दूध, लौंग लगा पान, दूब घास, गेहूं, धूप बत्ती, मिठाई, पंचमेवा, पंच पल्लव (गूलर, गांव, आम, पाकर और बड़ के पत्ते), तेल, मौली, रूई, पांच यज्ञोपवीत (धागा), रोली, लाल कपड़ा, चीनी, शहद, नारियल और हल्दी की गांठ.
दीवाली पूजा की विधि
धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्ति खरीदी जाती हैं और दीवाली की रात उस मूर्ति की पूजा विधि- विधान के साथ की जाती है.मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्ति को चौकरी पर लाल वस्त्र बिछाकर कर ही रखना चाहिए. मां लक्ष्मी की प्रतिमा को जल से स्नान कराये. फिर दूध, दही, घी, शहद और चीनी के मिश्रण यानी कि पंचामृत से स्नान कराएं. आखिर में शुद्ध जल से स्नान कराये. उसके बाद मां लक्ष्मी को मोली के रूप में वस्त्र अर्पित करने चाहिए. अब मां लक्ष्मी को धूप, दीपक और नैवेद्य (मिष्ठान) समपर्ति करें. फिर उन्हें पानी देकर आचमन कराये. फिर अब मां लक्ष्मी की बाएं से दाएं प्रदक्षिणा करें. मां लक्ष्मी को साष्टांग प्रणाम कर उनसे पूजा के दौरान हुई ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए माफी मांगे. इसके बाद मां लक्ष्मी की आरती उतारें.
इसे भी पढ़े –ट्विटर ने हटायी गृहमंत्री अमित शाह की डीपी, फिर दी सफाई