Mithilesh Kumar
Dhanbad: स्वतंत्रता सेनानी सह धनबाद जिला कांग्रेस के प्रथम महामंत्री स्वर्गीय घनश्याम ठाकुर गाँधीवादी नेता थे, जिन्होंने जेल में रहकर अंग्रेजों की यातनाएं सहना मंजूर किया, लेकिन उनके आगे कभी झुके नहीं. 1942 में जहाँ पूरे देश में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारतीय आजादी की जंग लड़ रहे थे, वहीं बिहार के बांका जिले के एक छोटे से गांव बेलहर का एक नौजवान भी अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए बेलहर थाना पहुंच गया. युवक की आवाज दबाने की अंग्रेजों ने भरपूर कोशिश की, लेकिन वे झुके नहीं. थाने का घेराव कर रहे युवक की गर्जना सुन अंग्रेज सिपाही डर गए और उन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया. तीन साल तक जेल में रहने के दौरान उन्हें यातनाएं दी गई. लेकिन, उनकी दीवानगी में कमी नहीं आई. जेल से निकलने के बाद वे हर आंदोलन में शामिल होते और अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आवाज आवाज बुलंद करते रहे .
धनबाद आए और यहीं के होकर रह गए
स्वतंत्रता सेनानी के छोटे पुत्र बैधनाथ ठाकुर ने बताया कि उनके पिता का जन्म 14 अप्रैल 1904 में बांका जिले के बेलहर गांव में हुआ था. देशभक्ति और राष्ट्र सेवा की भावना उनमें शुरू से थी. भागलपुर जेल से बाहर निकलने के बाद कांग्रेस नेता राम नारायण शर्मा के सम्पर्क में आए. फिर धनबाद आए. यहाँ आने के बाद कांग्रेस में शामिल हुए. 1945 में उनकी चरखा संघ में नियुक्ति हुई. उन्हें झरिया खादी ग्राम उधोग का संचालक बनाया गया. 1947 में झरिया कोल मजदूर संगठन से जुड़े, मजदूरों के शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की. 1956 से 1964 तक कांग्रेस के प्रथम महामंत्री रहे, उन्हीं के कार्यकाल में धनबाद जिला कांग्रेस कमेटी कार्यालय बना. ताउम्र धनबाद से उनका जुड़ाव रहा. 6 दिसम्बर 1999 को यहीं पर अंतिम सांस ली.
बिहार में अलग-अलग आंदोलन में रहे सक्रिय
भारत की आजादी की लड़ाई में शुरू से सक्रिय रहे. 1930 में बुद्धिनाथ झा कैरव के साथ मिलकर नमक सत्याग्रह आंदोलन में शामिल भाग लिया. इस आंदोलन के कारण उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके. 1931 में वे ग्राम सुधार आंदोलन से जुड़े. 1938 में बिहार चरखा संघ में शामिल हुए. 1942 में थाना का घेराव किया, जिसके कारण 1942 से 44 तक उन्हें जेल में रहना पड़ा. इसके बाद भी कांग्रेस के अलग-अलग आंदोलन के साथ जुड़कर आजादी की लड़ाई में योगदान दिया.
इंदिरा गांधी ने किया था सम्मानित
स्वतंत्रता सेनानी के छोटे पुत्र ने बताया कि कांग्रेसी नेता होने से पहले वे स्वतंत्रा सेनानी थे. पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र, पेंशन और ट्रेन पास के अलावा सरकारी सुविधाओं में छूट प्रदान की थी. उनकी पत्नी तारावती ठाकुर शिक्षिका थी. जामाडोबा, श्रमिक कल्याण केंद्र में पढ़ाती थी. पति से पहले 1995 में उनकी मौत हो गई.
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