Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय द्वारा धैया के सिम्फ़र सभागार में आयोजित “भारतीय शिक्षण परंपरा एवं संस्कृत” विषय पर आधारित राष्ट्रीय सेमिनार में 13 अगस्त को मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल रमेश बैस पहुंचे. सेमिनार में विचार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत आर्यों एवं वेद की भाषा है. यह कई विधाओं एवं कई भाषाओं की जननी है और दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा है. इसका रिश्ता भारत की अनूठी परंपरा से रहा है. उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षण परंपरा का मूलाधार वसुधैव कुटुंबकम है, जो आज विश्व स्तर पर फैली अशांति के बीच सबसे ज्यादा प्रासंगिक है.
जर्मनी में विश्व का पहला संस्कृत विश्वविद्यालय
राज्यपाल ने कहा कि जर्मन वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत विश्व की सबसे सटीक, सर्वाधिक शुद्ध और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में प्रयोग के लिए उपयुक्त भाषा है. विश्व का पहला संस्कृत विश्वविद्यालय जर्मनी में खोला गया था. परंतु उद्गम स्थल भारत में यह भाषा समाप्ति की ओर है. एक समय था जब भारत विश्व गुरु था. विदेशों से लोग समृद्ध व संस्कारित भाषा को सीखने के लिए नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय में आते थे. उन्होंने कहा कि संस्कृत का वैभव विराट है. समसामयिक विषयों से जोड़कर उपलब्ध पुस्तकों के आधार पर इसका वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक है. प्रधानमंत्री ने भी “संस्कृत का सूरज चढ़ने” की बात कही है. उन्होंने सभागार में मौजूद शिक्षकों से अपील की कि संस्कृत के पुनरुत्थान के लिए प्रयास करें.
ध्यान केंद्रित करने वाली भाषा
राज्यपाल ने कहा कि रिसर्च से पता चला है कि संस्कृत के अध्ययन से मस्तिष्क उत्कृष्ट बनता है. संस्कृत शब्दों के उच्चारण से तंत्रिका तंत्र झंकृत होते हैं, जिससे उसका विकास होता है. संस्कृत ज्ञान केंद्रित भाषा है, लेकिन आर्थिक युग में यह पिछड़ता जा रहा है. इसलिए इसे वर्तमान दैनिक जीवन में व्यवस्थित रूप से शामिल करने का प्रयास करना चाहिए.
बच्चे को केजी में भर्ती कराने के लिए भी अंग्रेजी जरूरी
राज्यपाल ने वर्तमान परिस्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि लार्ड मैकाले ने कहा था कि भारतीय स्वतंत्र तो हो जाएंगे लेकिन मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम रहेंगे. यह आज केजी में नामांकन के दौरान भी दिख जाता है, जब बच्चे के परिजनों को अंग्रेजी में इंटरव्यू देना होता है. चिंता इस बात की भी है कि हिंदी भाषी देश होने के बावजूद 75 वर्षों में हम अंग्रेजी के करीब आते चले गए और हिंदी से दूर होते चले गए. आज जिसे अंग्रेजी नहीं आती, वह शर्मसार होता है और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले को ज्ञानी कहा जाता है.
ऐसे सर हिला रहे, जैसे सब समझ में आ रहा है
सेमिनार के दौरान कुलपति प्रो डॉ सुखदेव भोई द्वारा संस्कृत में भाषण दिए जाने के बाद चुटकी लेते हुए राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि जिस तरह अंग्रेजी का कम ज्ञान होने के बावजूद कई सभाओं में मौजूद लोग अंग्रेजी भाषण के दौरान समय-समय पर अपना सर हिलाकर बताने की कोशिश करते हैं कि उन्हें भाषण की सभी बातें समझ आ रही हैं. उसी तरह आज डॉ सुखदेव भोई के संस्कृत ए भाषण में भी सभी लोग अपना सिर हिला रहे थे, जैसे वे बताना चाह रहे हों कि उन्हें सब कुछ समझ में आ रहा है. उनकी चुटकी पर सभागार में मौजूद सभी लोग हंस पड़े.
संस्कृत भाषा में किया गया स्वागत
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इसके पूर्व सेमिनार स्थल पर राज्यपाल का स्वागत वैदिक मंत्रोच्चार के साथ तिलक लगाकर किया गया. राज्यपाल का स्वागत करते हुए कुलपति डॉ सुखदेव भोई ने भी संस्कृत भाषा में भाषण दिया. उन्होंने कहा कि संस्कृत ही भारतीय शिक्षण परंपरा का आधार रही है. यह विश्व की सभी भाषाओं की जननी है. कहा कि बीबीएमकेयू राज्य का एकमात्र विश्वविद्यालय है, जिसने भारतीय शिक्षण परंपरा को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है. उन्होंने कहा कि बीबीएमकेयू के कुलपति बनने के साथ तो उन्होंने प्रतिज्ञा ली है कि इस विश्वविद्यालय को दिल्ली यूनिवर्सिटी एवं ऑक्सफोर्ड समकक्ष खड़ा करने का प्रयत्न करेंगे.
कुलपति की संपादित पुस्तक व स्मारिका का विमोचन
सेमिनार में कुलपति डॉ सुखदेव भोई द्वारा संपादित “शिशुपाल वध महाकाव्य अनुशीलनम” पुस्तक एवं स्मारिका का विमोचन किया गया. उत्कल विश्वविद्यालय भुवनेश्वर के प्रो बृज सुंदर मिश्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो बोलाराम पानी, दिल्ली यूनिवर्सिटी के डॉ एसएस खानका, प्रो बीसी त्रिपाठी, उत्कल विश्वविद्यालय उत्कल के प्रो गोपाल कृष्णा दास, रांची यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो अजीत कुमार सिन्हा और की नोट स्पीकर रहे प्रो एचके सत्पति को राज्यपाल ने सम्मानित किया.
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