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Chandil (Dilip Kumar) : झारखंड जनाधिकार महासभा ने कहा कि राज्य की जनता कोरोना महामारी से उत्पन्न बेरोजगारी और अवसरहीनता से अभी तक जूझ रही है. वहीं इस वर्ष पर्याप्त बारिश के अभाव में फसल का न होना इनके लिए अस्तित्व का संकट बन गया है. महासभा के सदस्य अंबिका यादव ने कहा कि केंद्र सरकार जनता द्वारा चुने राज्य सरकारों को तोड़ने और गिराने में ध्यान लगाने के बजाए जनता के प्रति अपनी मूल जिम्मेवारी निभाए. वहीं झारखंड सरकार भी सुखाड़ में राहत को अब प्राथमिकता दे. महासभा केंद्र व राज्य सरकार से युद्ध स्तर पर अनावृष्टि के प्रभावों का आकलन करते हुए नुकसान की भरपाई करने, किसानों को जल्द से जल्द आर्थिक सहयोग करने, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को कम से कम अगले 6 महीने तक बढ़ाने, लोगों को दोगुना राशन देने, राज्य सरकार द्वारा जन वितरण प्रणाली से जोड़े गए 20 लाख अतिरिक्त लोगों (हरा राशन कार्ड) को भी इस योजना से जोड़ने, जन वितरण प्रणाली में सस्ते दरों पर दाल और तेल देने, मनरेगा का आवंटन दोगुना करने, हर गांव में व्यापक पैमाने पर काम शुरू करने, आंगनवाड़ी व मध्याहन भोजन में सभी बच्चों को प्रति सप्ताह छह अंडा देने, खाद्यान व दैनिक इस्तेमाल के सामानों में बढ़ रही महंगाई पर लगाम लगाने और जन वितरण प्रणाली व मनरेगा में हो रहे भ्रष्टाचार पर पूर्ण रोक लगाने की मांग की है.
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पचास प्रतिशत कम हुई है धान की बुवाई
राज्य के लगभग सभी जिलों में मानसून के शुरूआती दिनों में सामान्य से बहुत कम बारिश हुई. इसलिए जिन जिलों में बाद में सामान्य बारिश हुई, वहां भी स्थिति गंभीर है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल धान की बुवाई लगभग पचाय प्रतिशत कम हुई है. मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस साल राज्य में सामान्य से 25 प्रतिशत कम बारिश हुई है. राज्य के 15 जिलों में सामान्य से काफी कम बारिश हुई है और दो जिलों (गढ़वा व पलामू) में तो भायावही स्थिति है. विदित हो कि झारखंड में मात्र लगभग 10 प्रतिशत खेती के क्षेत्र ही सिंचित हैं. इसका सीधा प्रभाव राज्य की प्रमुख खरीफ फसल धान पर पड़ा है. इस वर्ष दलहन की भी 30 प्रतिशत कम बुवाई हुई है. महासभा ने कहा कि दूसरी तरफ केंद्र सरकार की जन विरोधी आर्थिक नीतियों के कारण झारखंड समेत पूरे देश में आम जनता के लिए महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है. चाहे सरसों तेल हो, सब्जी हो या दैनिक इस्तेमाल के अन्य समान, महंगाई आसमान छू रही है. वहीं बेरोजगारी जस के तस है.
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