NewDelhi : सामान्य वर्ग के 5.8 करोड़ लोग देश में गरीबी रेखा से नीचे हैं. इसके अलावा सामान्य वर्ग के 35 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो भूमिहीन हैं. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को मिलने वाले 10 फीसदी EWS कोटे को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने अपना पक्ष यह जानकारी देते हुए रखा. बता दें कि इस आरक्षण(EWS) को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया है कि यह व्यवस्था संविधान के ही खिलाफ है.
अपने जवाब में सरकार ने अदालत में कहा है कि संविधान में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता. इस संबंध में बुधवार को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि इस कोटे के लिए संविधान में किया गया 103वां संशोधन पूरी तरह से सही है.
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यह संशोधन संविधान के ही आर्टिकल 46 के तहत किया गया है
कहा कि यह संशोधन संविधान के ही आर्टिकल 46 के तहत किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि कमजोर वर्ग के लोगों के शैक्षणिक और आर्थिक हितों के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए. सरकार का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटे से एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए. इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि उनका कोटा जस का तस बना रहेगा. उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी का कोटा उस 50 पर्सेंट में से दिया गया है, जो अनारक्षित सीटों के लिए हैं.
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सामान्य वर्ग के बच्चों को खेतों और फैक्ट्रियों में काम करना पड़ता है
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान सरकार ने डेटा देते हुए कहा कि सामान्य वर्ग के 5.8 करोड़ लोग देश में गरीबी रेखा से नीचे हैं. इसके अलावा सामान्य वर्ग के 35 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो भूमिहीन हैं और यह कोटा उनके लिए ही है. उन्होंने कहा कि सामान्य वर्ग में आने वाले समुदायों के बहुत से बच्चों को खेतों और फैक्ट्रियों में काम करना पड़ता है. इसकी वजह यह है कि गरीबी के चलते वे स्कूल नहीं जा सकते हैं और सरकार उनकी मदद करने के लिए बाध्य है.