Ranchi : फीस व परेशानी हुई दोगुनी कहीं नहीं सुनवाई बढ़ती महंगाई का असर शिक्षा के क्षेत्र में भी देखा जा रहा है. प्राइवेट स्कूलों की फीस भी बढ़ती जा रही है. जो फीस पिछले साल होती है, वह इस साल बढ़ जाती है. इसके लिए स्कूल प्रबंधन अपनी दलील देती है. फीस के बढ़ने से अभिभावकों को काफी मुश्किल होती है. उनका बजट बिगड़ जाता है. इसे लेकर अभिभावक आवाज भी उठाते हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं होता है. लोग अच्छी शिक्षा की चाहत में प्राइवेट स्कूल पहुंचते हैं. वहीं फीस की मार उन्हें लाचार कर देती है. राज्य में प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती फीस से परेशान अभिभावकों को ध्यान में रखते हुए शुभम संदेश की टीम ने रिपोर्ट तैयार की. टीम ने स्कूल प्रबंधन के साथ ही अभिभावकों से बातचीत कर उनकी पीड़ा-परेशानी सामने लायी…
फीस बढ़ने से छूटती है बच्चों की पढ़ाई: तनुश्री सरकार
रांची की तनुश्री सरकार ने बताया कि बताया कि फीस बढ़ने से काफी समस्या होती है. हमलोग तो नौकरी करते हैं. इससे घर का खर्च पूरा होता है. एक बार घर का बजट बन जाने के बाद सालोंभर उसी के तहत काम करना होता है. वहीं स्कूल के फीस के हिसाब से सैलेरी नहीं बढ़ती है. कई बार ऐसा होता है कि आर्थिक तंगी में आकर बच्चों का पढ़ाई भी छुड़वा देते हैं. अक्सर देखा जाता है कि किसी बच्चे का नंबर कम आने पर घर वाले गुस्सा में आकर पढ़ाई छुड़वाने की बात करते हैं. कोरोना के बाद तो ऐसा भी हुआ कि कई परिवारों ने फीस की वजह से अपने बच्चों को स्कूल से हटा लिया.
फीस तो बढ़ता है साथ में बच्चे का अनुशासन और संस्कार नहीं बढ़ता: प्रभाकर
हरमू निवासी प्रभाकर ने बताया कि मेरे दो बच्चे हैं. डीएवी में पढ़ते हैं. स्कूलों में फीस बढ़ा दी जाती है, लेकिन उसके साथ अनुशासन और संस्कार नहीं बढ़ाया जाता है. वहीं जब फीस की बात होती है तो हमलोगों से पूछा भी नहीं जाता है और नोटिस के साथ फीस की सूची थमा दी जाती है. हम मिडिल क्लास लोगों को काफी दिक्कत होती है. स्कूल का रवैया ठीक नहीं होता है. कभी भी मनमानी ढंग से फीस बढ़ा दिया जाता है. यह एक गंभीर विषय है. जब पैसे बाधक बनेंगे तो परिवार ओर देश का सपना कैसे पूरा होगा. सरकारों को इस विषय पर विचार करना चाहिए. दिशा-निर्देश भी देना चाहिए.
फीस बढ़ने के कारण मैनेज करने में परेशानी होती है: जया विजावत
जया विजावत ने बताया कि पहले हम 3 से 4 हजार रुपए फीस भरते थे. वही काफी था. अब 6 हजार फीस भरते हैं. इससे परेशानी समझी जा सकती है. पूरा घर का खर्च बिगड़ जाता है. वहीं फीस तो बढ़ जाता है, लेकिन हमारी सैलेरी नहीं बढ़ती है. ऐसे में हमें मैनेज करने में काफी दिक्कत होती है. हमें उतने पैसे में सबकुछकरना होता है. बच्चों को अच्छे भविष्य के लिए पढ़ना जरुरी है. फी बढ़ जाने के बाद कई तरह की परेशानी होती है. इसका असर घर के बजट पर पड़ता है. बहुत सारी चीजों को मैनेज करना पड़ता है. घर परीवार में भी कई तरह के काम होते हैं. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.
सरिता दुबे- स्कूल में एडमिशन के नाम पर काफी पैसा वसूला जाता है
हटिया की रहने वाली सरिता दुबे भी स्कूल फीस से परेशान हैं. उन्होंने बताया कि उनके दो बच्चे हैं. दोनों जेवीएम श्यामली में पढ़ते हैं. स्कूलों में हर साल एडमिशन के नाम पर मनमाना पैसे वसूले जाते हैं. कभी नये ड्रेस के नाम पर लिये जाते हैं तो कभी किसी और नाम पर लिये जाते हैं. पेरेंट्स भी बच्चों के भविष्य के लिए बिना कुछ बोले पैसे दे देते हैं. उनके पास कोई विकल्प नहीं होता है. हर जगह यही स्थिति होती है. लेकिन स्कूल वाले कभी नहीं सोचते हैं कि पेरेंट्स कितने मुश्किल से पैसे जुटा रहे हैं. स्कूलो को हर-बार फीस बढ़ाने से पहले दो बार सोचना चाहिए कि इस महंगाई के दौर में कितना मुश्किल है पैसे जुटाना. स्कूल इस पर ध्यान दे तो समाधान हो सकता है.
संजू राय- रिश्तेदारों से पैसे कर्ज लेकर बच्चों की फीस भरनी पड़ती है.
बिरसा चौक की संजू राय से बात करने पर उन्होंने बताया कि उनका एक बच्चा है जो संत थॉमस स्कूल में पढ़ता है. फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि हमलोग मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं. स्कूल पूरे साल अलग-अलग कार्यक्रमों के नाम पर पैसे लेती है. नए साल पर एडमिशन और प्रमोशन चार्ज के नाम पर एक मोटी रकम की मांग की जाती है. यह हम मध्यमवर्गीय परिवार को एक साथ देने में काफी कठिनाई होती है. बहुत बार हमें अपने रिश्तेदारों से पैसे कर्ज लेकर बच्चों की फीस भरनी पड़ती है. क्योंकि रकम बहुत बड़ी हो जाती है. स्कूलों को पेरेंट्स के प्रति जिम्मेदारी समझते हुए फीस बढ़ाने के समय सोचना चाहिए. यह ठीक रहेगा.
सुनीता पांडे- स्कूल मनमाने तरीके हर साल फीस बढ़ा रहे हैं. हस्तक्षेप करना चाहिए
रातू रोड की रहने वाली सुनीता पांडे से बात करने पर उन्होंने बताया कि उनके दो बच्चे हैं. दोनों सेंट फ्रांसिस स्कूल हरमू में पढ़ाई करते हैं. कहा कि स्कूल मनमाने तरीके से हर साल फीस बढ़ा रहे हैं. पूछे जाने पर वह 10 कारण बताते हैं. लेकिन हम पेरेंट्स उनके एक भी कारण से संतुष्ट नहीं होते हैं. सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए. देखना चाहिए कि प्राइवेट स्कूल किस परिस्थिति में पैसे बढ़ा रहे हैं. क्या उनके पैसे पढ़ाना जायज हैं, क्योंकि हम सबको हर साल मोटी रकम देने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर सरकार इस पर ध्यान दे तो ऐसी समस्या जल्द ही दूर हो जाएगी. आखिर यह सभी कि जिम्मेदारी है. इससे किसी पर भार नहीं बढ़ेगा.
प्रियंका गुप्ता- अप्रैल महीने में मोटी रकम देनी होती है, जो काफी अधिक होता है
रांची के बरियातू की रहने वाली प्रियंका गुप्ता से बात करने पर उन्होंने बताया कि उनका बच्चा बिशप वेस्कॉट स्कूल में पढ़ता है. वह अभी क्लास 3 में है. शुरू में सबकुछ ठीक था. फीस भी ठीक था. बाद में बढ़ने लगा. अब तो स्कूल हर साल प्रमोशन और ट्यूशन फीस के नाम पर फीस बढ़ा देता है. खासकर अप्रैल महीने में मोटी रकम देनी होती है तो हमारा सिर चकराने लगता है. पूछे जाने पर स्कूल से बस जवाब आता है कि यह हर साल का नियम है. जो इस साल भी निभाया जा रहा है. हर साल फीस बढ़ाना यह नियम हमें आज तक समझ में नहीं आया. इस को स्कूल से कोई पूछनेवाला नहीं है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.
रजनी सिंह- बढ़ी फीस देखकर चिंता बढ़ जाती है
रांची के पिस्का मोड़ निवासी रजनी सिंह ने बताया कि उनका बच्चा ऑक्सफोर्ड स्कूल के क्लास में पढ़ता है. स्कूल कभी नहीं बताता है कि वह फीस बढ़ाने वाले हैं. हम जब नए साल का फीस बुक देखते हैं तो हमें पता चलता है कि फीस बढ़ा दी गई है. तब हमारी चिंता बढ़ जाती है. अचानक इतनी मोटी फीस देना हम जैसे मध्यम परिवारों के लिए काफी मुश्किल होता है. स्कूल से हमें ज्यादा समय भी नहीं मिलता है. बच्चे हमारी परेशानी देखकर हमसे जब सवाल पूछते हैं तो हमारे पास कोई जवाब नहीं होता है. सरकार से अनुरोध है की प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ाने पर जल्द से जल्द किसी तरह का कानून लेकर आए. इससे अभिभावकों को फायदा होगा. फीस की परेशानी नहीं होगी.
अभीका कुमारी- मनमाने तरीके से स्कूल फीस बढ़ाया जाता है
रांची के पीपी कंपाउंड के रहने वाली अभीका कुमारी से बात करने पर उन्होंने बताया कि उनकी बेटी डीएवी में पढ़ती है. फीस बढ़ोतरी पर कहा कि स्कूल पेरेंट्स की कभी नहीं सुनते है. पूछे जाने पर कई तरह के तर्क दे देते है. इस मामले में बहस करना मुश्किल होता है. अधिक कहने पर कहते है हम क्या करें. इस पर अभिभावकों को मानना पड़ता है. वह मनमाने तरीके से फीस बढ़ाते है.अब हम स्कूल से पूछता भी छोड़ दिये है. क्योंकि हमें पता है ना तो सरकार और ना तो स्कूल कोई इस मामले पर विचार करेगा. करेगा वहीं जो उसे अच्छा लगेगा. हमें अपने बच्चों के भविष्य के लिए अधिक फीस भरने रहना पड़ेगा.
अच्छे स्कूल में पढ़ाना बहुत मुश्किल हो गया हैः ममता सिंह
रांची के हिनू की रहने वाली ममता सिंह से बात करने पर उन्होंने बताया कि, उनके दो बच्चे हैं. बेटी अभी पांचवी कक्षा में है. बेटा छोटा है. डीपीएस हो या एसवीएम या फिर डीएवी का कोई ब्रांच हो स्कूल में फॉर्म के ही केवल हजार दो हजार लग जाते हैं. वैसे ही इतनी मेहंगाई बढ़ गई है. उस पर बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना बहुत मुश्किल हो गया है. उन्होंने बताया कि किसी भी मिडिल क्लास फैमिली के लिए एक महीने के खर्चे को मैनेज करना कितना कठिन है. सरकार हो या प्रिंसिपल या किसी सब्जेक्ट के टीचर, बच्चों की पढ़ाई के लिए थोड़ा सोचना बहुत जरूरी है.
पढ़ाई और स्कूल की फीस सबसे ज्यादा महंगीः शिप्रा तिवारी
रांची के हरमू रोड की रहनी वाली शिप्रा तिवारी ने बताया कि पढ़ाई और स्कूल की फीस सबसे ज्यादा महंगी है. कोई भी परिवार जिसमें सिर्फ एक आदमी पैसे कमाने वाला हो, उसका पूरा महीना यही सोच सोच कर बीत जाता है कि, बच्चों के स्कूल की फीस देनी है. उन्होंने बताया की सभी प्राइवेट स्कूल के यही हाल हैं. साल दर साल उनके स्कूल ड्रेस बदल जाते हैं. फिर किताबें बदल जाती हैं. अब पैरेंट्स को तो बच्चे की चीज को पूरा करना ही है. उन्होंने बताया कि हर तीन महीने में स्कूल के असाइनमेंट मिल जाते हैं. अलग-अलग तरह से फंक्शन होते हैं. जिसमें स्कूल से ही सामान खरीदना जरूरी है. ऐसे में महीने के खर्चे में भी दिक्कत आती है.
बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ना बहुत कठिनः श्वेता सिंह
रांची के कांके की रहने वाली श्वेता सिंह भी स्कूल के बढ़ने से परेशान हैं. उनसे बात करने पर उन्होंने कहा कि बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं. लेकिन हमारे देश में बच्चो की शिक्षा काफी महंगी हो गई है. स्कूल और ट्यूशन क्लास को बिजनेस बना दिया है लोगों ने. बच्चों से और अभिभावक से पैसे कैसे लेने हैं उनके पास सभी चीज़ का नॉलेज हैं. उन्होंने स्कूल का नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उनके बच्चे रांची के स्कूल में हैं. वहां हर तीसरे दिन कुछ-कुछ होता है. प्रोग्राम से रिलेटेड, जिससे बच्चों से पचास सौ रुपए लिए जाते हैं. पहले तो बच्चों की फीस देनी है. उसके बाद स्कूल के अलग खर्चे हैं. इसे भी पूरा करते हैं. किसी भी मिडिल क्लास फैमिली की लिए उसके बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ना बहुत कठिन है.
सरकारी आदेश का भी पालन नहीं करते प्राइवेट स्कूल : नरेंद्र त्रिवेदी
बेटा धनबाद पब्लिक स्कूल में पढ़ता है. स्कूल हर वर्ष पुस्तकें बदल देता है.हैं. निजी पब्लिकेशन की पुस्तकें महंगी होती हैं. एनसीईआरटी की पुस्तकें सिलेबस में जोड़नी चाहिए. सरकार ने स्कूलों से कोरोना काल के दौरान की फीस नहीं लेने का आदेश जारी किया था लेकिन स्कूलोंके द्वारा उसका भी पालन नहीं किया गया. फीस लेते रहे.
सरकारी आदेश के विरुद्ध एडमिशन शुल्क वसूल रहा स्कूल :नरेश कुमार महतो
राजकमल सरस्वती विद्या मंदिर में कक्षा सात में बेटा पढ़ता है. राज्य सरकार ने स्कूल से प्रति वर्ष लिए जाने वाला एडमिशन शुल्क नहीं लेने का आदेश दिया था. सीधे तौर पर स्कूलों ने इसे स्वीकार किया, लेकिन प्रत्येक महीने की फीस में राशि जोड़कर एडमिशन शुल्क जितनी राशि 6 महीने में वसूल कर ली गई. इसे देना पड़ा.
कोरोना का हवाला देकर बस का किराया तीन गुना बढ़ा दिया : मदन तिवारी
राजकमल सरस्वती विद्या मंदिर में कक्षा दस में बेटी और 11 वीं में बेटा पढ़ता है. वर्ष 2020 में कोरोना काल के पूर्व बस का किराया 500 रुपये था. लॉकडाउन के बाद स्कूल खुलने पर सोशल डिस्टेंसिंग का हवाला देते हुए बस का किराया तीन गुना बढ़ाकर 1500 रुपया कर दिया गया. लेकिन स्थिति सामान्य होने पर भी किराया घटाया नहीं गया है. जब बढ़ाया तो ठीक था, लेकिन जब हालात सुधरे तो किराया भी बदलना चाहिए था, जो नहीं किया. इससे अभिभावकों पर काफी बोझ पड़ा है. दो बच्चों को स्कूल तक पहुंचने के लिए ही तीन हज़ार रुपये लग जाते हैं.
फीस भरने में आर्थिक स्थिति हो गई खराब: संदीप कुमार रवानी
बेटा डीएवी स्कूल कुसुंडा में कक्षा दो में पढ़ता है. जब हमने स्कूल में नाम लिखवाया था तो बहुत कुछ कहा गया था. बताया गया थि फीस में मामूली बढ़ोतरी होगी. हम भी खुश थे. शुरू में तो सबकुछ ठीक रहा. बाद में इनका रवैया बदलता गया. इसी दौरान कोराना महामारी हुई. इसमें बहुत अधिक फीस बढ़ा दिया. जब सवाल किया तो टीचर को सैलरी की बात कही. फिर सिलेबस चेंज होने के नाम पर प्रतिवर्ष पुस्तकें बदल दी जा रही हैं. स्कूल ड्रेस को भी बदल दिया जाता है, जिससे मध्य वर्गीय परिवार के लिए एक बच्चे को पढ़ाना काफी मुश्किल हो गया है. इस वर्ष एक और बच्चे का नामांकन कराना है. फीस भरते भरते ही घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी है.
जिला प्रशासन को सख्त कदम उठाना चाहिए : कैप्टन प्रदीप मोहन सहाय
झारखंड अभिभावक संघ के जिलाध्यक्ष कैप्टन प्रदीप ने बताया कि जिले के प्राइवेट स्कूलों द्वारा अभिभावकों का आर्थिक दोहन वर्षों से किया जा है. इस वर्ष भी बच्चों के एडमिशन के एवज में भारी-भरकम राशि वसूलने की तैयारी में स्कूल लग चुका है. इस सत्र में स्कूल फीस में भी बढ़ोतरी की तैयारी है. यदि अभी से जिला प्रशासन ने सख्त कदम नहीं उठाया तो अभिभावक भुक्तभोगी बनेंगे. इसका कारगर उपाय जिला शिक्षण शुल्क समिति का सही ढंग से गठन होना था, लेकिन वहां भी मनमानी चली और वह आज निष्क्रिय है. अगर इस समिति का गठन सही तरीके से होगा तो, अभिभावकों की समस्याओं को उठाने के लिए कोई तो होगा. इससे फीस नियम के तहत बढ़ेगा.
डीएसडब्ल्यूओ व डीएसई से कार्रवाई की मांग करेंगे: कुमार मधुरेंद्र
झारखंड अभिभावक महासंघ के उपाध्यक्ष कुमार मधुरेंद्र ने बताया कि जिले के लगभग सभी स्कूलों के अभिभावक मंथली ट्यूशन फीस बढ़ने से परेशानी में है. एडमिशन शुरू नहीं हुआ और लोगों को फीस का डर सताने लगा. लगभग सभी स्कूलों द्वारा इस वर्ष फिर से मंथली ट्यूशन फीस बढ़ाने की तैयारी चल रही है. एनुअल फीस के नाम पर भी मोटी रकम वसूली जा रही है. सरकार को भी इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए. उन्हें अभिभावकों के बारे में सोचना चाहिए. इसके साथ ही ऐसे नियम बनाने चाहिए, ताकि सभी को एक अच्चे माहौल में रह सकें. कहावह इस संबंध में जल्द ही डीएसडब्ल्यूओ और डीएसइ से मिलकर कार्रवाई करने की मांग करेंगे.
गिरिडीह : प्राइवेट स्कूलों पर नकेल कसे सरकारः निरंजन पंडित
सदर प्रखंड के झरियागादी निवासी निरंजन पंडित ने बताया कि सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई नहीं होने के कारण अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों का नामांकन करवाते हैं. यहां उन्हें बढ़ती फीस का सामना करना पड़ता है. यह हर साल होता है. शहर के कार्मेल, सलूजा गोल्ड इंटरनेशनल स्कूल, हन्नी होली, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर, सुभाष पब्लिक स्कूल और दिल्ली पब्लिक स्कूल समेत अन्य विद्यालयों में नामांकन के लिए मोटी रकम ली जा रही है. सभी अभिभावकों की आर्थिक स्थिति एक जैसी नहीं है. कुछ आर्थिक दृष्टि से संपन्न हैं तो कुछ कमजोर. आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावक फीस नहीं भर पाते हैं. सरकार से अनुरोध है कि प्राइवेट स्कूलों पर नकेल कसे.
मध्यम वर्गीय परिवार को होती है परेशानीः चंद्र प्रकाश
बेंगाबाद के अभिभावक चंद्र प्रकाश भी फीस बढ़ने से परेशान हैं. उन्होंने बताया कि एलकेजी में एडमिशन के लिए 21 हजार रुपए जमा करना होता है. इसके अलावा स्कूल आने-जाने के लिए वाहन खर्च अलग से भरना पड़ता है. इतना ही नहीं. इसके अलावा सालभर स्कूल में कई तरह के कार्यक्रम भी होते हैं. इसमें कुछ पैसे खर्च होते हैं. सारा बोझ तो अभिभावक पर ही पड़ता है. इसे देखनेवाला कोई नहीं है. यह ठीक नहीं है. आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग को इससे परेशानी नहीं होती, लेकिन मध्यम वर्गीय परिवार को इससे परेशानी होती है. सरकार प्राइवेट स्कूल की इस करतूत पर प्रतिबंध लगाए. आखिर में हमलोग कहां से इतनी फीस भरेंगे. नहीं तो पढ़ाई बंद करनी होगी.
स्कूल फीस में मनमाना बढ़ोतरी हो रही है, यह पूरी तरह से गलत है: रंजीत सिंह
कोल्डीहा निवासी रंजीत सिंह ने बताया कि एलकेजी में नामांकन के लिए वार्षिक फीस के नाम पर ली जाने वाली राशि को लेकर प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फिर सामने आई है. नामांकन फीस में मनमाना बढ़ोतरी गलत है. इससे अभिभावकों को परेशानी होती है. अब फिर से हमलोगों को घर का बजट देखना होगा. कहीं पर कटौती करनी होगी तब जाकर खर्च पूरे होंगे. देखा जाय तो पहले ऐसी स्थिति नहीं थी. फीस बढ़ती थी, लेकिन इतनी नहीं बढ़ती थी. कोरोना काल के बाद तो काफी तेजी से बढ़ी. सभी स्कूलों ने बस किराया समेत स्कूल की फीस बढ़ा दी. इसके लिए उसमें कई तरह के चार्ज जोड़ दिये. कई ऐसे चार्ज थे, जिसकी जरूरत नहीं थी. प्रबंधन नहीं सुनती है.
फीस बढ़ने से परेशानी बढ़ जाती है, जिला प्रशासन को ध्यान देना चाहिए: अरुण राय
सिरसिया निवासी अरुण राय ने कहा कि नामांकन फीस और मासिक ट्यूशन फीस में बढ़ोतरी कर प्राइवेट स्कूलों ने मनमानी की है. यह कब तक चलेगा, पता नहीं. लेकिन हमें तो पढ़ाना है. इसलिए पैसे तो देने होंगे. कोरोना के समय भी स्कूल संचालकों ने अभिभावकों को नहीं बख्शा. सरकार को भी अनसुना कर दिया. फीस बढ़ने से हमलोगों की परेशानी बढ़ जाती है. जिला प्रशासन इस पर ध्यान दे. इस बीच अभिभावकों के लिए राहत भरी खबर भी है. एलएनपी पब्लिक स्कूल के निदेशक अवधेश सिन्हा ने अपने स्कूल में 26 जनवरी तक नर्सरी से कक्षा दो तक नामांकन निःशुल्क कर दिया है. 26 जनवरी के बाद केवल 1500 रुपए जमाकर नामांकन लिया जाएगा.
प्रशासन को भी संज्ञान लेने की जरूरत- संदीप कुमार सिन्हा
नुरा निवासी संदीप कुमार सिन्हा कहते हैं कि उन्होंने आज ही अपनी बच्ची का नामांकन एक प्राइवेट स्कूल में कराया है. नर्सरी में नामांकन फीस के नाम पर करीब 22,000 रुपए लगे. समझा जा सकता है कि जब नर्सरी मेें इतने पैसे लगे तो बाद में क्या होगा. क्लास बढ़ते के साथही फीस बढ़ती ही जाएगी. नामांकन फीस के साथ ही स्कूल के बताई दुकान से ही यूनिफॉर्म और पुस्तकें लेने की बाध्यता है. यह बाध्यता खत्म होनी चाहिए. नियम ऐसे होने चाहिए कि किसी को कोई परेशानी नहीं हो. इससे स्कूल और अभिभावक दोनों का भला होगा. बच्चे भी पढ़ेंगे और स्कूल भी चलेगा. सरकार के साथ स्थानीय प्रशासन को भी इस मामले में संज्ञान लेने की जरूरत है.
हर कक्षा में नामांकन की फीस तय होनी चाहिए : निधि सिन्हा
नुरा निवासी निधि सिन्हा का कहना है कि सरकार के स्तर से हर कक्षा में नामांकन की फीस तय होनी चाहिए. जब फीस तय होगी तो इस पर किसी को परेशानी नहीं होगी. सभी नियम का पालन करते हुए फीस लेंगे और देंगे. लेकिन आज स्थिति कुछ और है. स्कूल एनुअल चार्ज के नाम पर फीस हर साल बढ़ाती जाती है. हमलोगों के पास कोई उपाय नहीं होता है. थक हार कर स्कूल की बात माननी पड़ती है. स्कूल देना पड़ता है. विरोध का भी कोई मतलब नहीं होता है. नियम होगा तो इससे प्राइवेट स्कूल नामांकन के नाम पर अनाप-शनाप फीस नहीं ले पाएंगे. वहीं यह बाध्यता भी खत्म होनी चाहिए कि स्कूल से ही यूनिफॉर्म और पुस्तकें खरीदें या फिर उनकी बताई दुकानों से. हर साल फीस भी नहीं बढ़ानी चाहिए. ट्यूशन फीस हटना चाहिए.
प्राइवेट स्कूलों ने बहाल कर रखा है एजेंट : प्रतिमा कुमारी
नुरा की प्रतिमा कुमारी कहती हैं कि अब तो प्राइवेट स्कूलों ने बच्चों के नामांकन के लिए एजेंट बहाल कर रखा है. वे एजेंट इलाकों में घूमकर बच्चों को दाखिले की सलाह देते हैं. इसे लेकर स्कूलों में नामांकन के लिए खींचातानी हो रही है. सभी अपने-अपने स्कूलों को ब्रांडेड बताने में लगे हैं. सभी अच्छी बातें कहते हैं. फीस पर सभी मौन हैं. लेकिन जब एक बार एडमिशन हुआ, तो फिर स्कूल प्रशासन के जाल में फंस गए. कदम-कदम पर फीस, यूनिफॉर्म और पुस्तकों के नाम पर मोटी रकम वसूली जाने लगती है. फिर इस पर कोई सुनवाई नहीं होती है. लोग चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते हैं. बीच में दूसरे स्कूल में नहीं जा सकते हैं. इस पर सरकार और प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए.
एडमिशन चार्ज एक बार ही होना चाहिए : इंजीनियर अमन कुमार
यशवंतनगर निवासी इंजीनियर अमन कुमार कहते हैं कि यह सही है कि प्राइवेट स्कूल थोड़े महंगे होते हैं. लेकिन एडमिशन चार्ज एक बार ही होना चाहिए. बार-बार फीस बढ़ाने से मध्यमवर्गीय परिवार पर बोझ बढ़ता है. जब फीस बढ़ता है तो उसे पूरा करना चुनौती बन जाता है. कई बार उन्हें उधार लेकर फीस चुकाना पड़ता है. लेकिन ऐसी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता है. लोग किसी तरह फीस भर ही देते हैं. इसके बाद उनके घर का बजट प्रभावित होता है. यह एक गंभीर विषय है. इस पर सरकार को निर्णय लेने चाहिए. नियम बनाना चाहिए. इसके लिए फीस निर्धारित करना चाहिए ताकि बेहतर तरीके से अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे विद्यालयों में शिक्षा दिला सकें. इससे किसी को कोई परेशानी नहीं होगी. सभी को अच्छी शिक्षा मिलेगी.
फीस एडवांस में जमा करनी पड़ती हैः रवि सिंह चंदेल
प्राइवेट स्कूलों की स्थिति यह है कि वे अभिभावकों से वसूली का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं. जनवरी आते ही मार्च तक की फीस एडवांस में जमा करनी पड़ती है. उसके बाद बढ़ी हुई दर के साथ रीएडमिशन फीस, फीस वृद्धि, नयी किताबों और स्कूल ड्रेस की खरीदारी का बोझ झेलना पड़ता है. किताब और स्कूल ड्रेस के लिए किसी न किसी एजेंसी के साथ स्कूलों की सांठगांठ होती है. वहीं से खरीदारी करनी पड़ती है. ऐसे में मध्यमवर्गीय लोगों की परेशानी को समझा जा सकता है. कुल मिला कर स्कूलों की मनमानी पर रोक लगनी चाहिए. इसके लिए हमारी सरकार और जिला प्रशासन को आगे आना चाहिए.
स्कूलों की मोनोपोली पर अंकुश लगेः रेणु सिंह
शिक्षा के क्षेत्र में प्राइवेट स्कूलों ने अपनी मोनोपोली कायम कर रखी है. जैसा चाहते हैं, वैसा ही करते हैं. इससे अभिभावकों की जेब पर बोझ बढ़ता है. यदि हर साल किताबों को नहीं बदला जाये, तो एक ही घर या आसपास के अन्य बच्चे भी दूसरे साल में उन किताबों से पढ़ सकते हैं. लेकिन यहां तो हर साल किताबें ही बदल दी जाती हैं. इस कारण अभिभावकों को हर साल नयी किताबें खरीदनी पड़ती हैं. वह भी उसी दुकान या एजेंसी से जहां स्कूल की ओर से बताया जाता है. स्कूल ड्रेस की भी कमोबेश यही स्थिति है. रही फीस वृद्धि की बात, तो इससे अभिभावक खासे परेशान हैं. अब नये सत्र आरंभ होने वाला है. अब चिंता बढ़ने लगी है.
सबसे बड़े सामंत प्राइवेट स्कूल हैंः संतोष कुमार चौबे
बच्चों के अभिभावक यदि सबसे अधिक परेशान हैं, तो प्राइवेट स्कूलों से. आज के दौर में प्राइवेट स्कूल सबसे बड़े सामंत हैं. वे अभिभावकों की जेब काटने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं. कोरोना काल के बाद अभिभावकों की स्थिति अभी सुधरी नहीं है, लेकिन स्कूलों ने उन पर फीस वृद्धि आदि को लेकर बोझ डालने की तैयारी शुरू कर दी है. हर साल फीस वृद्धि अभिभावकों की परेशानी का सबसे बड़ा कारण है. केंद्र की मोदी सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ पर जोर दे रही है. लेकिन स्थिति यह है कि मुझे फीस के अभाव में बेटी को प्राइवेट स्कूल से हटा कर सरकारी स्कूल में नामांकन कराना पड़ा. इस परध्यान देना चाहिए.
जिला प्रशासन कारगर कदम उठायेः चतुर्भुज सिंह
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर तभी अंकुश लगेगा, जब सरकार और जिला प्रशासन सख्त व कारगर कदम उठाये. सरकार की ओर से नियम बनाये जाते हैं, लेकिन उसे सख्ती से लागू नहीं किया जाता है. इस कारण स्कूल अपनी मनमानी करते रहते हैं. प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों के स्थान पर सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें लागू कर देनी चाहिए, चाहें कोई स्कूल किसी भी बोर्ड से संबद्ध क्यों न हो. इससे फायदा यह होगा कि हर जगह किताबें उपलब्ध होंगी. किताबें किफायती दरों पर भी उपलब्ध होंगी. इससे अभिभावकों को महंगी और हर साल नयी-नयी किताबें खरीदने का बोझ नहीं झेलना पड़ेगा.
रेगुलरिटी कमेटी का गठन बगैर फीस वृद्धिः डॉ उमेश
डॉ उमेश कुमार, अध्यक्ष, जमशेदपुर अभिभावक संघ कहते हैं कि यहां ही नहीं, बल्कि पूरे झारखंड में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी किसी से छुपी नहीं है. राज्य सरकार की ओर से फीस वृद्धि को लेकर फीस रेगुलरिटी कमेटी का गठन किया गया है. इस कमेटी का गठन स्कूल स्तर पर भी किया जाना है. लेकिन स्कूलों में संभवतः ऐसा नहीं हो सका है. बावजूद इस वर्ष 15-20 प्रतिशत तक फीस बढ़ा दी गयी है. इसे सरकार को देखना चाहिए. सरकार और जिला प्रशासन को इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए, लेकिन स्कूलों को बोलने वाला कोई नहीं है.
दो वर्ष के बाद फीस वृद्धि की गयी हैः स्वर्णा मिश्रा
दयानंद पब्लिक स्कूल की प्राचार्या स्वर्णा मिश्रा ने कहा कि हर साल फीस वृद्धि नहीं की जा रही है. इस बार दो वर्ष के बाद फीस वृद्धि की गयी है. सर्वोच्च न्यायालय ने 15 प्रतिशत तक फीस बढ़ाने की अनुमति दी है, लेकिन राज्य सरकार के निर्देश के अनुसार 10 प्रतिशत ही फीस वृद्धि की गयी है. इसकी वजह से है कि साल में कागज वगैरह का मूल्य बढ़ जाता है. हर साल शिक्षक-शिक्षिकाओं के वेतन में भी इंक्रीमेंट करना पड़ता है. रही बात स्कूल ड्रेस और किताबें बदलने की, तो इस वर्ष एनईपी-2020 को ध्यान में रखते हुए किताबें बदली जा सकती हैं. वहीं स्कूल ड्रेस 10-15 साल पर बदले जाते हैं.
एडमिशन के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती हैः फरहा
फरहा यास्मीन कहती है कि प्राइवेट स्कूल की मनमानी के कारण गरीब घर के लोग प्राइवेट स्कूल में नही पढ़ पाते है. प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन के नाम पर मोटी रकम की वसूली और एनुवल फीस के नाम पर वसूली को लेकर स्कूलों में इन दिनों महीने की फीस में भी बढ़ोतरी की गई है. प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना अब आम लोगों के लिए बहुत ही मुश्किल हो गया है. स्कूल में नए नए इवेंट के नाम पर कई ड्रेस की डिमांड होती है. बहुत मुश्किल से बच्चे को पढ़ा रहे हैं. सरकार को प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने की आवश्कता है, ताकि आम तबके के लोग भी आसानी से अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सकें.
प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना मुश्किल: अरुण पासवान
अरुण पासवान कहते है कि प्राइवेट स्कूल की मनमानी से परेशान हो चुके हैं. आए दिन किसी न किसी फंड से स्कूल प्रबंधक अभिभावकों से मनमाने ढंग से पैसे की वसूली करता है. एनुअल चार्ज, फीस में बढ़ोतरी और ना जाने कितने ऐसे चीजों के नाम पर प्रबंधक मनमाने ढंग से पैसे की डिमांड करता है. जिससे मध्यम वर्ग के लोगों के लिए प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है. दैनिक मजदूरी करने वाले हम जैसे लोग इतना पैसा आखिर कहां से लाएंगे. हर अभिभावक का सपना होता है कि उनका बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़े, लेकिन इसके लिए बहुत पैसे खर्च करने होते हैं.
फीस मामले में सरकार को कदम उठाना चाहिएः पंचदेव
पंचदेव करमाली कहते है कि मनमाने ढंग से वसूल किए जाने वाले फीस को लेकर परेशान हो जाते हैं. प्रत्येक वर्ष एनुअल फीस और स्कूल फीस में बढ़ोतरी के साथ-साथ अन्य कई चीजों के नाम पर स्कूल प्रबंधक अपनी मनमानी करता है. बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए इन सबके अलावा किताब कॉपी ड्रेस और इवेंट के लिए कई तरह की ड्रेस की आवश्यकता होती है. हम जैसे लोगों के लिए प्राइवेट स्कूल नहीं रह गया है. हम दैनिक मजदूरी करने वाले लोग हैं. आखिर मासिक या सालाना इतना पैसा जुटा पाना हमलोगों के लिए आसान नहीं है. इन सब चीजों में कमी होनी चाहिए, ताकि हमलोगों को सहूलिय हो.