Washington: धरती के एक और ‘मिनी चांद’ की खोज की गयी है. इसकी खास बात यह है कि यह मिनी मून कुछ हफ्तों के लिए धरती के चक्कर लगायेगा. इसके बाद यह वापस जहां से आया था, वहीं चला जायेगा. वैज्ञानिकों ने इसे सितंबर में ही आते हुए देख लिया था, लेकिन 8 नवंबर को यह धरती हिल स्फीयर में प्रवेश कर गया है. 1 दिसंबर को यह धरती के सबसे नजदीक होगा. 6 मीटर की इस अंतरिक्षीय वस्तु को पहली बार 17 सितंबर 2020 को देखा गया था. वैज्ञानिकों ने इसे पैनोरमिक सर्वे टेलिस्कोप एंड रैपिड रेस्पॉन्स सिस्टम-1 (Panoramic Survey Telescope and Rapid Response System-1) से देखा था. तब यह पाइसेस और सेटस नक्षत्रों के बीच था. यह टेलीस्कोप जिसे लोग PanSTARRS कहते हैं, वह हवाई के माउई में है.
पहले इसे समझा गया था एस्टेरॉयड
मैसाच्यूसेट्स के कैंब्रिज स्थित माइनर प्लैनेट सेंटर ने पहले इसे एस्टेरॉयड समझा और इसका नाम 2020SO रख दिया था. लेकिन बाद में जब साइंटिफिक गणना की गई तो पता चला कि कुछ समय के लिए धरती अपने लिए एक मिनी मून ला रही है. या यूं कहें कि यह मिनी मून धरती की ओर आ रहा है.
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धरती के हिल स्फीयर एरिया में प्रवेश कर चुका है
8 नवंबर को यह धरती के हिल स्फीयर एरिया में प्रवेश कर चुका था. हिल स्फीयर यानी धरती से 30 लाख किलोमीटर की दूरी पर. इसी हिल एरिया में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति काम करने लगती है. ताकि दूसरे ग्रहों की ताकत से कोई वस्तु उनकी तरफ न चली जाए. वैज्ञानिकों का मानना है कि 1 दिसंबर को यह मिनी मून धरती के सबसे नजदीक होगा. यानी धरती से मात्र 43,000 किलोमीटर की दूरी पर.
आखिर ये “मिनी मून” चीज क्या है?
जिस चीज को वैज्ञानिक एस्टेरॉयड समझ रहे थे आखिर में वो अपना ही भेजा हुआ एक सैटेलाइट लग रहा है. यह कोई मजबूत पत्थर नहीं बल्कि एल्युमिनियम की खाली सिलेंडर जैसी आकृति है. जिसे सोलर रेडिएशन तेजी से धरती की ओर भेज रहा है. इस बात को पुख्ता करने के लिए वैज्ञानिकों ने 170 बार इस वस्तु का अलग-अलग जगहों से ऑब्जरवेशन किया. तब जाकर ये पता चला कि यह सर्वेयर लूनर लैंडर का एक हिस्सा है.
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नासा के सर्वेयर लूनर लैंडर का हिस्सा है “मिनी चांद”
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा-जेपीएल के डेविड फार्नोचिया ने बताया कि जब हमने इस वस्तु के आकार और वजन का अध्ययन किया तो ऐसा लगा कि ये हमारा ही बनाया हुआ कोई सैटेलाइट है. यह बेहद छोटा, हल्का और कम घनत्व वाली वस्तु है. ऐसा माना जा रहा है कि 1960 से 70 के बीच नासा द्वारा भेजे गए सर्वेयर लूनर लैंडर के अपोलो रॉकेट का बूस्टर लग रहा है. क्योंकि इसके ऊपर टाइटेनियम डाइऑक्साइड का पेंट लगा है. यह बात उसके स्पेक्ट्रोस्कोपिक एनालिसिस से पता चली.
1966 में नासा ने सर्वेयर-2 भेजा था, जो चांद से टकरा गया
साल 1966 में नासा ने चांद के लिए सर्वेयर-2 नाम का सैटेलाइट अपोलो रॉकेट से भेजा था. जो फेल हो गया था. क्योंकि धरती की तरफ आ रही इस वस्तु का रास्ता वही है जिस रास्ते पर सर्वेयर-2 मिशन नष्ट हो गया था. ऐसा खराब बूस्टर्स की वजह से हुआ था. बूस्टर यानी रॉकेट का वो हिस्सा जिसमें ईंधन भरा होता है और ये रॉकेट और सैटेलाइट को आगे की तरफ लेकर जाता है. सर्वेयर-2 मिशन के रॉकेट का बूस्टर खराब होने से वह पूरा मिशन 23 सिंतबर 1966 को चांद के कॉपरनिकस क्रेटर के टकरा गया लेकिन इससे ठीक पहले रॉकेट का अपर स्टेज द सेंटोर (The Centaur) सूर्य की कक्षा में गायब हो गया. अब यहीं घूमता हुआ धरती की ओर आ रहा है. जो 1 दिसंबर से अगले कुछ हफ्तों तक धरती के दो चक्कर लगाएगा. इसके बाद अगले साल यह वापस सूर्य की कक्षा में यानी अंतरिक्ष में चला जाएगा.
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1 दिसंबर की सुबह 3.57 बजे धरती के बगल से निकलेगा
वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार द सेंटोर 1 दिसंबर को सुबह 3.57 बजे धरती के बगल से निकलेगा. यानी भारतीय समयानुसार दोपहर 2.27 बजे यह धरती के बगल से गुजरेगी. तब इसकी धरती से दूरी करीब 43 हजार किलोमीटर होगी. यानी हमारे जियोसिनक्रोनस ऑर्बिट से मात्र 8000 किलोमीटर दूर से. अमेरिका के लोग इसे सुबह रोशनी होने से पहले देख पाएंगे.
लोगों को नहीं दिखेगा “मिनी चांद”
भारत या किसी अन्य देश में यह दिखाई नहीं देगा. इसके बाद यह धरती के पास 74 साल बाद यानी साल 2074 में वापस आएगा. तब यह धरती से करीब 14.96 लाख किलोमीटर की दूरी से निकलेगा. इसके धरते के पास से गुजरने से किसी प्रकार का खतरा नहीं है. आपको बता दें कि 1960 से 70 के बीच अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष और चांद में पहले पहुंचने की होड़ लगी थी. उस समय कई मिशन असफल भी हुए थे.
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