RANCHI : 30 नवंबर को लगने वाला उपछाया चंद्रग्रहण साल का आखिरी चंद्रग्रहण है. यह 2020 का चौथा चंद्रग्रहण है. इससे पहले 10 जनवरी, 5 जून ,5 जुलाई को चंद्रग्रहण देखा गया था. इस बार उपछाया चंद्रग्रहण कार्तिक पूर्णिमा के दिन लग रहा है.
इसे भी पढ़ें – 1 दिसंबर से बदल जायेंगे आरटीजीएस मनी ट्रांसफर से जुड़े नियम
कहां-कहां दिखेगा आखिरी चंद्रग्रहण ?
उपछाया चंद्रग्रहण को एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अटलांटिक, उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में देखा जा सकेगा. भारत में रांची, पटना, लखनऊ जैसे पूर्वी राज्यों में आसमान साफ होने पर ग्रहण दिखने की उम्मीद है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरू जैसे प्रमुख शहरों में नहीं दिखाई देगा ग्रहण.
उपछाया ग्रहण का समय
पहला स्पर्श- दोपहर 1:04 मिनट पर
परमग्रास- दोपहर 3:13 मिनट पर
अंतिम स्पर्श- शाम 5:22 मिनट पर
क्या है उपछाया चंद्रग्रहण ?
जब चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया न पड़कर उसकी उपच्छाया मात्र पड़ती है तो उसे उपछाया चंद्रग्रहण कहते है. इसमें चंद्रमा पर एक धुंधली छाया नजर आती है. इस घटना में पृथ्वी की उपच्छाया में प्रवेश करने से चंद्रमा की छवि धूमिल दिखायी देती है. ग्रहण लगने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करती है जिसे चंद्र मालिन्य या अंग्रेजी में Penumbra कहते हैं. जिससे उसकी छवि कुछ हल्की पड़ जाती है. इस धुंधलापन को सामान्य रूप से देखा भी नहीं जा सकता है. इसलिए चंद्र मलिन मात्र होने की वजह से ही इसे उपछाया चंद्र ग्रहण कहते हैं.
इसे भी पढ़ें – 2024 तक हर घर को नल से नहीं मिल पायेगा पानी, 20 साल में मात्र 8 प्रतिशत की ही हुई बढोतरी
नही लगेगा सूतक काल
भारतीय सभ्यता में ग्रहण की एक सूतक अवधि होती है. सूतक काल ग्रहण लगने के 9 घंटे पहले प्रारंभ होकर ग्रहण खत्म होने पर समाप्त होता है. ग्रहण के दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है. इस दौरान मंत्रो का जाप और ध्यान करना उचित माना जाता है. 30 नवंबर को लगने वाला चंद्रग्रहण में सूतक अवधि मान्य नहीं होगी. उपछाया चंद्रग्रहण होने के कारण, ग्रहण का सूतक काल नहीं माना जायेगा.
चंद्रग्रहण का प्रभाव
ज्योतिष विज्ञान में ग्रहण को एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है. किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रहणों का महत्वपूर्ण स्थान होता है. उपछाया चंद्रग्रहण होने के कारण, 30 नवंबर का ग्रहण किसी भी राशि पर महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं डालेगा. हालांकि, ग्रहण का प्रभाव वृषभ राशि पर पड़ता नजर आयेगा. इस दिन अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है.
ग्रहण की पौराणिक मान्यता
पुराणों और शास्त्रानुसार सूर्य और चंद्र पर लगने वाले ग्रहण का सीधा सम्बंध राहु और केतु से है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवताओं और दानवों के बीच अमृत पाने को लेकर युद्ध चल रहा था. इस बात की खबर जब राहु को हुई तो वह छिपकर देवता की पंक्ति में जाकर बैठ गया. लेकिन इस बात की भनक भगवान सूर्य और चंद्र को लगी. और उन्होंनें यह बात भगवान विष्णु को बतायी. इससे क्रोधित भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया. मगर अमृतपान करने के कारणवश राहू की मृत्यु नहीं हुई और राहू का सिर और धड़ राहू और केतु के नाम से जाना जाने लगा. ब्रम्हा जी ने राहु को चंद्रमा की छाया और दूसरे केतु को पृथ्वी की छाया में स्थान दिया है. इसलिए ग्रहण के समय राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा के समीप रहता है.
इसे भी पढ़ें – चीन की करतूत: सैटेलाइट इमेज में दिखा डोकलाम में बसा गांव, 9KM लंबी सड़क भी बनकर तैयार