Baharagoda (Himangshu karan) : बहरागोड़ा प्रखंड झारखंड ओडिशा और पश्चिम बंगाल का त्रिवेणी संगम है तो राष्ट्रीय उच्च पथ 18 और 49 का मिलन स्थल भी है. जब से फोरलेन का निर्माण हुआ है, तब से एनएच पर दुर्घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है. परंतु यहां की चिकित्सा व्यवस्था लचर है और माटिहाना में एनएच 49 के किनारे लाखों की लागत से बना ट्रामा सेंटर बंद पड़ा है. ऐसे में एनएच पर हो रही दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायलों का एक मात्र इलाज यहां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से ओडिशा और बंगाल में रेफर करना ही है. ऐसे में स्थानीय लोगों में एक अनुत्तरित सवाल खड़ा है कि स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के गृह जिला में स्वास्थ्य सेवा की ऐसी बदहाली क्यों? आखिर ट्रामा सेंटर में चिकित्सा की व्यवस्था क्यों नहीं हो रही है? यहां के मरीज और दुर्घटनाओं में घायल लोग ओडिशा और बंगाल के भरोसे क्यों हैं?
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रास्ते में ही हो जाती है कई घायलों की मौत
पिछले मार्च माह की बात की जाए तो विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं में 16 लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए. इन्हें इलाज के लिए 108 एंबुलेंस से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तो लाया गया. परंतु इनमें 13 लोगों का प्राथमिक उपचार कर 108 एंबुलेंस से ओडिशा के पंडित रघुनाथ मुर्मू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया गया. वहीं तीन घायलों को जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल रेफर किया गया. यहां उल्लेखनीय है कि बहरागोड़ा से बारीपदा की दूरी लगभग 45 किलोमीटर है जबकि जमशेदपुर की दूरी 90 किलोमीटर है. वहीं पश्चिम बंगाल के अस्पताल की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है. इस परिस्थिति में रेफर करने के बाद घायलों को अस्पताल पहुंचने में विलंब हो जाती है और रास्ते में ही कई घायलों की मौत हो जाती है. ऐसा कई मौकों पर हुआ है.
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ट्रामा सेंटर दर्शन की वस्तु बनकर रह गया
बहरागोड़ा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में संसाधनों और चिकित्सकों की कमी है. एनएच पर हो रही दुर्घटनाओं में घायलों के इलाज के लिए ही तत्कालीन विधायक डॉ. दिनेश कुमार षाड़ंगी की पहल से माटिहाना के पास निर्मित ट्रामा सेंटर दर्शन की वस्तु बनकर रह गया. इस ट्रामा सेंटर का उद्घाटन वर्ष 2013 में हुआ था. तब से लेकर आज तक इस ट्रामा सेंटर में चिकित्सा की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं की जा सकी. फिलहाल ट्रामा सेंटर में ताला बंद है. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ उत्पल मुर्मू इस मसले पर कहा कि सीएचसी में चिकित्सकों और संसाधनों की कमी है. जांच के लिए कई आवश्यक उपकरण नहीं हैं. इसलिए गंभीर रूप से घायलों को बेहतर इलाज के लिए रेफर करना पड़ता है.
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