Ashish Tagore
Latehar: कहना गलत नहीं होगा कि लातेहार जिला को प्रकृति ने फुर्सत से सजाया व संवारा है. जिले के गर्भ में अकूत खनिज संपदा और धरती के उपर वन संपदा भरी पड़ी है. बावजूद इसके जिले में पलायन एक मजबूरी बन गयी है. जिले में आवश्यकता है रोजगार आधारित उद्योग स्थापित करने की. लातेहार जिले में कोयला व बॉक्साईट की प्रचुरता है. कहते हैं कि लातेहार जिले की धरती में इतना कोयला है कि अगले एक सौ वर्ष भी निकाली जाये तो कम नहीं पड़ेगी. यहां के कोयला से दूसरे प्रदेशों के शहर रौशन हो रहे हैं. चंदवा में अभिजीत ग्रुप का पावर प्लांट तकरीबन 90 प्रतिशत तक बन गया था. लेकिन इसके बाद कोल आंवटन स्केम में फंस जाने के कारण कारखाना बंद हो गया.
आज इस कारखाना के स्क्रेप चोरों के आय का जरिया हैं. वर्ष 2003-4 में लातेहार मे एल्युमिनियम कारखाना लगाने के लिए सरकार एवं हिंडाल्को के बीच एमओयू किया गया था. लेकिन बाद मे लातेहार में पानी नहीं रहने का बहाना बना कर यहां कारखाना को अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया गया था. विगत 20 वर्षों से जिले में धान की प्रचुर मात्रा में उपज हो रही है. लेकिन जिले में एक भी चावल मिल नहीं होने के कारण किसानों को अपनी उपज को औने पौने दर पर बिक्री करना पड़ता है.
जिले के बालुमाथ व बारियातू प्रखंड क्षेत्र में टमाटर की खेती वृहद रूप से की जाती है. लेकिन इससे संबंधित उद्योग नहीं रहने के कारण किसानों को अपनी उपज काफी कम मूल्य पर बिक्री करना मजबूरी बन गयी है. कई बार बारियातू मे टमाटर प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की कवायदत शुरू की गयी, लेकिन आज तक नहीं लग सका. जिले में सबसे अधिक वनोत्पज उद्योग लगाने की जरूरत है.
यहां काफी मात्रा में महुआ, साल, करंज, हर्रे व बहेरा इत्यादी के वृक्ष हैं. इस पर आधारित उद्योग नहीं होने के कारण ग्रामीण इनके बीजों को एकत्र नहीं करते हैं और ये बेकार जंगलों में ही पड़े रह जाते हैं. हालांकि 90 के दशक में लातेहार में वनोत्पज पर आधारित सोल्वेंट व टैनिन प्लांट लगाया गया था. लेकिन बाद में झारखंड बनने के बाद बिहार से परिसंपतियों के बंटवारा के चक्कर फंस कर कारखना बंद हो गया. कहना गलत नहीं होगा कि लातेहार में खनित व वनोत्पज पर आधारित कारखना लगाना आवश्यक है, तभी जिले में न सिर्फ समृद्धि आयेगी, वरन यहां मजदूरों का पलायन भी रूकेगा.
चंदवा में अभिजीत ग्रुप का पावर प्लांट तकरीबन 90 प्रतिशत तक बन गया था. लेकिन इसके बाद कोल आंवटन स्केम में फंस जाने के कारण कारखाना बंद हो गया. आज इस कारखाना के स्क्रेप चोरों के आय का जरिया हैं. वर्ष 2003-4 में लातेहार मे एल्युमिनियम कारखाना लगाने के लिए सरकार एवं हिंडाल्को के बीच एमओयू किया गया था. लेकिन बाद मे लातेहार में पानी नहीं रहने का बहाना बना कर यहां कारखाना को अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया गया था.
विगत 20 वर्षों से जिले में धान की प्रचुर मात्रा में उपज हो रही है. लेकिन जिले में एक भी चावल मिल नहीं होने के कारण किसानों को अपनी उपज को औने पौने दर पर बिक्री करना पड़ता है. जिले के बालुमाथ व बारियातू प्रखंड क्षेत्र में टमाटर की खेती वृहद रूप से की जाती है. लेकिन इससे संबंधित उद्योग नहीं रहने के कारण किसानों को अपनी उपज काफी कम मूल्य पर बिक्री करना मजबूरी बन गयी है. कई बार बारियातू मे टमाटर प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की कवायदत शुरू की गयी, लेकिन आज तक नहीं लग सका. जिले में सबसे अधिक वनोत्पज उद्योग लगाने की जरूरत है.यहां काफी मात्रा में महुआ, साल, करंज, हर्रे व बहेरा इत्यादी के वृक्ष हैं.
इस पर आधारित उद्योग नहीं होने के कारण ग्रामीण इनके बीजो को एकत्र नहीं करते हैं और ये बेकार जंगलों में ही पड़े रह जाते हैं. हालांकि 90 के दशक में लातेहार में वनोत्पज पर आधारित सोल्वेंट व टैनिन प्लांट लगाया गया था. लेकिन बाद में झारखंड बनने के बाद बिहार से परिसंपतियों के बंटवारा के चक्कर फंस कर कारखना बंद हो गया. कहना गलत नहीं होगा कि लातेहार में खनित व वनोत्पज पर आधारित कारखना लगाना आवश्यक है, तभी जिले में न सिर्फ समृद्धि आयेगी, वरन यहां मजदूरों का पलायन भी रूकेगा.