Akshay Kumar Jha
Ranchi: झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और राजद की सरकार है. ठीक उसके उलट केंद्र में बीजेपी की सरकार है. केंद्र और राज्य दोनों अपने राजनीतिक मौकों को एक-दूसरे के खिलाफ भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. जहां लाख चाहने के बाद भी हेमंत सरकार सूबे में टीएसी (ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी) का गठन नहीं कर पा रही है तो वहीं सदन में बीजेपी विधायक दल के नेता को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं मिल पा रही है. लड़ाई में दोनों तरफ से बराबर की ठनी है. लगातार न्यूज नेटवर्क ने नेता प्रतिपक्ष मामले को लेकर पूर्व विधानसभा अध्यक्षों से बात की. उनसे सवाल किया कि नेता प्रतिपक्ष का ना होना, झारखंड के लिए क्या मायने रखता है. अपनी बात रखने वालों में दिग्गज नेता इंदर सिंह नामधारी, सीपी सिंह और आलमगीर आलम शामिल हैं. जानिए क्या है उनका नजरिया नेता प्रतिपक्ष के मामले में –
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नेता प्रतिपक्ष पर दोनों तरफ से हठ हो रहा हैः नामधारी
ऐसे तो लोकसभा में दो बार से कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है. वहां नेता प्रतिपक्ष के लिए कुल सीटों का 10 फीसदी सीट होना अवश्यक है. लेकिन दो बार से किसी विपक्षी दल को उतनी सीटें नहीं आ रही हैं. लेकिन झारखंड में संसद की तरह ऐसी कोई नियम नहीं है. सदन में मुख्यमंत्री के ठीक दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष के बैठने की व्यवस्था है. झारखंड में स्पीकर ने तीन विधायकों बंधु तिर्की, प्रदीप यादव और बाबूलाल मरांडी को दल बदल का आरोपी बना दिया है. मेरा मानना है कि ऐसा काफी सोच समझ कर किया गया है. बाबूलाल ने पहले दोनों विधायकों को जेवीएम से निकाल दिया. अकेले बचने के बाद वो बीजेपी में चले गए. ऐसे में दोनो पक्ष फंस रहे हैं. अगर न्यायपूर्ण फैसला किया जाए तो तीनों की सदस्यता खत्म हो जाएगी. लोकसभा हो या विधानसभा, नेता प्रतिपक्ष का होना जरूरी है. बीजेपी चाहती तो लोकसभा में कांग्रेस के किसी नेता को नेता प्रतिपक्ष बना सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब आदमी लोकतांत्रिक मूल्यों से हट जाता है, तब हठयुग आ जाता है. अभी झारखंड में भी दोनों तरफ से हठ हो रहा है. जब लड़ाई छिड़ जाती है, तो फिर राजनीति में नहले पर दहला मारा जाता है. यही हो रहा है, लोकसभा और विधानसभा में भी.
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फैसला विपक्ष ले कि उसके दल का नेता कौन हैः आलमगीर आलम
निश्चित तौर पर सदन में नेता प्रतिपक्ष का नेता होना चाहिए. लेकिन यह फैसला तो विपक्ष की पार्टी को ही लेना चाहिए कि दल का नेता कौन होगा. झारखंड विधानसभा की बात की जाए तो जब वहां 10वीं अनुसूची का मामला चल रहा था, तो पार्टी को दूसरे विकल्प के बारे सोचना चाहिए था. नेता प्रतिपक्ष का होना विधानसभा के लिए काफी अहम होता है. वो अपनी पार्टी की बात को सदन में रखते हैं. लेकिन झारखंड में नेता प्रतिपक्ष नहीं रहने के बावजूद भी विपक्ष के विधायक अपनी बातों को रख रहे हैं.
स्पीकर पर निर्भर करता है कि वो कितनी ईमानदारी बरतता हैः सीपी सिंह
संसदीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों होता है. विपक्ष को भी सत्ता का ही अंग माना गया है. विपक्ष का काम है कि सरकार की गलतियों को उजागर करना, ध्यान आकर्षित कराना, ताकि कोई सरकार निरंकुश ना हो जाए. स्वाभाविक रूप से संसदीय लोकतंत्र में ऐसा कानून भी है और परंपरा भी है. इस मामले में विधानसभा के स्पीकर पर निर्भर करता है कि वो कितनी ईमानदारी बरतता है. अगर ब्रिटेन का उदाहरण लेंगे तो वहां स्पीकर के खिलाफ कोई चुनाव लड़ता ही नहीं था. ऐसे में स्पीकर निर्भीक होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता था. लेकिन अब तो स्पीकर को भी डर रहता है कि अगर वो सत्ता पक्ष को मदद ना करे तो विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिलेगा. नेता प्रतिपक्ष के ना होने से सदन कार्यवाही ठीक तरीके से नहीं चल रही है.
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