NewDelhi : उच्चतम न्यायालय ने माओवादियों से संबंध के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को बुधवार को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने बंबई उच्च न्यायालय को चार महीने के भीतर मामले पर गुण-दोष के आधार पर नये सिरे से विचार करने का निर्देश भी दिया.
Supreme Court sets aside the order of Bombay High Court that discharged former Delhi University professor GN Saibaba and other accused in a case under the Unlawful Activities (Prevention) Act for alleged Maoist links. pic.twitter.com/omD068OnSQ
— ANI (@ANI) April 19, 2023
इसे भी पढ़ें : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जादू फीका पड़ रहा है : अधीर रंजन चौधरी
मामले की सुनवाई किसी अन्य पीठ द्वारा कराने को कहा
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को साईबाबा की अपील और अन्य अभियुक्तों की अपील उसी पीठ के समक्ष नहीं भेजने का निर्देश दिया, जिसने उन्हें आरोपमुक्त किया था और मामले की सुनवाई किसी अन्य पीठ द्वारा कराने को कहा.
इसे भी पढ़ें : अतीक-अशरफ की हत्या के तीनों आरोपियों की पेशी, अदालत ने चार दिनों की पुलिस रिमांड पर भेजा
सुप्रीम कोर्ट ने 15 अक्टूबर को बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी
न्यायालय ने कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रतिबंधों को मंजूरी देने सहित कानून से संबंधित सभी प्रश्नों पर उच्च न्यायालय द्वारा फैसले किये जाने का विकल्प खुला रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 15 अक्टूबर को इस मामले में साईबाबा और अन्य को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी. उच्चतम न्यायालय में महाराष्ट्र सरकार का पक्ष वकील अभिकल्प प्रताप सिंह ने रखा और साईबाबा की ओर से वकील आर बसंत पेश हुए.
उच्च न्यायालय ने 14 अक्टूबर, 2022 को जेल से रिहा करने का निर्देश दिया था
साईबाबा की 2014 में गिरफ्तारी के बाद उच्च न्यायालय ने पिछले साल 14 अक्टूबर को उन्हें व अन्य को मामले में बरी कर जेल से रिहा करने का निर्देश दिया था. उच्च न्यायालय ने कहा कि गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने का आदेश कानून की दृष्टि से गलत एवं अवैध था. अदालत ने साईबाबा के अलावा महेश करीमन तिर्की, पांडु पोरा नरोते (दोनों किसान), हेम केशवदत्त मिश्रा (छात्र), प्रशांत सांगलीकर (पत्रकार) और विजय तिर्की (मजदूर) को भी बरी कर दिया था. विजय तिर्की को 10 साल की जेल की सजा सुनायी गयी, जबकि बाकी लोगों को उम्रकैद की सजा दी गयी थी. नरोते का निधन हो चुका है.
[wpse_comments_template]