Amit Singh
Ranchi : झारखंड की स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना का काम बंद हो गया है. तीन माह से एक भी टेंडर नहीं हुआ है. सभी साइट पर काम ठप हो गया है. परियोजना अब केंद्रीय जल आयोग द्वारा तय समय दिसंबर 2020 तक पूरी नहीं हो पाएगी. इसके लिए जल संसाधन विभाग के घोटालेबाज अफसर और इंजीनियर दोनों दोषी है. जिनकी गड़बडियों की जांच सरकार करवा रही है.
सरकार ने आदेश दिया है, जबतक जांच पूरी नहीं होगी, तबतक कोई टेंडर नहीं होगा. किसी भी काम के लिए प्रशासनिक स्वीकृति को अनिवार्य कर दिया गया है. वर्ष 2020-21 में 68 करोड़ से ज्यादा खर्च होने पर जल संसाधन विभाग के दोनों मुख्य अभियंता पर कार्रवाई करने का आदेश सरकार ने दिए हैं.
राज्य सरकार का मानना है कि घोटालेबाज अफसरों और इंजीनियरों की वजह से 129 करोड़ की लागत से शुरू हुई योजना पर 14 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च हो गया. सरकार स्वर्णरेखा परियोजना में पिछले पांच माह में हुए सभी टेंडर की जांच करा रही है. जबतक जांच पूरी नहीं होगी परियोजना का काम ठप पडा रहेगा. परियोजना का 75 फीसदी काम हो चुका है. इस पर अब तक करीब 6 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. वहीं 25 फीसदी बचे काम पर नौ हजार करोड़ रुपये खर्च होना बाकी है.
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तीन दिनों में किया 40 करोड़ का भुगतान
वर्ष 2020 – 21 में सरकार ने चांडिल व ईचा डैम के लिए 380 करोड़ में महज 70 करोड़ की राशि दी. इसमें से 40 करोड़ रुपये का मार्च में ही एक सप्ताह के अंदर काम के बदले भुगतान कर दिया गया. सितम्बर 2020 में रिटायर होने से पहले स्वर्णरेखा परियोजना के एमडी ने करोड़ों रूपए का काम और भुगतान गलत ढंग से किया. जिसकी जांच चल रही है. अब विभागीय अभियंता कह रहे हैं कि बचे हुए 30 करोड़ रुपये से बाकी काम कैसे होगा. इस कारण विभाग में लगभग सारा काम ठप पड़ा है.
सरकार ने बजट में 60 प्रतिशत की कटौती की
स्वर्णरेखा परियोजना योजना 14,000 करोड़ रुपये की हो गई है. इसकी स्वीकृति भी केंद्र सरकार से मिल चुकी है. इसमें से अब तक 6600 करोड़ रुपये का काम हुआ है. उसके बाद भी इस योजना को पूरा करने के लिए लगभग 5500 करोड़ रुपये का काम बचा हुआ है. इस वर्ष विभाग ने 3500 करोड़ के बजट का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन विभाग ने पहले 800 करोड़, उसके बाद घटाकर 380 करोड़ के बजट की स्वीकृति दी.
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प्रशासनिक स्वीकृति की वजह विभाग को नहीं मिल रही है राशि
जल संसाधन विभाग ने प्रशासनिक स्वीकृति के लिए सरकार को एक दर्जन से ज्यादा प्रस्ताव भेजे, लेकिन आज तक उसकी स्वीकृति नहीं मिली. स्वीकृति के अभाव में विभाग को केंद्र व राज्य सरकार से राशि भी नहीं मिल रही है. इस परियोजना में केंद्र सरकार 60 और राज्य सरकार 40 फीसद राशि देती है.
41 वर्षों से अधर में परियोजना
कोल्हान प्रमंडल क्षेत्र में आने वाली इस परियोजना की नींव 1978 में रखी गई थी. जिसका मकसद था बिहार के साथ ओडिशा और पश्चिम बंगाल में सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था हो सके. जिसके माध्यम से किसानों के जीवन स्तर में सुधार हो सके और बांध से विद्युत उत्पादन कर देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाया जा सके, लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण लगभग 41 साल बीत जाने के बाद भी यह परियोजना अधर में है.
बिहार सरकार ने साल 1978 से 1980 तक इस परियोजना के तहत बनाए जा रहे इचा खरकई बांध का 30 फीसदी तक काम पूरा कर लिया गया था. लेकिन कुछ साल बाद उन्होंने इस परियोजना से अपना हाथ खींच लिया. बिहार विभाजन के बाद यह परियोजना झारखंड के हिस्से में आ गई. झारखंड की नई सरकार ने इस परियोजना को महत्वाकांक्षी बताते हुए काम तो शुरू किया, लेकिन दशकों बीत जाने के बाद भी यह परियोजना अभी तक अधूरी है.
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