Faisal Anurag
26 नबंवर भारतीय इतिहास के लिए एक विस्मरणीय दिवस है. लोकतंत्र,स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व का उद्घोष करने वाले भारतीय संविधान को इसी दिन संविधान सभा ने आत्मसात किया था. 26 नवंबर 2020 संविधान दिवस के साथ दुनिया के सबसे बड़े मजदूर किसान आंदोलन का गवाह बन रहा है. इस दिन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मजदूर और किसान पहली बार एक साथ केंद्र की नीतियों के खिलाफ आंदोलनरत हैं.
इस दिन की एक बड़ी विशेषता यह भी है मजदूर और किसान संविधान की हिफाजत के साथ उन नीतियों का विरोध कर रहे हैं, जिससे कॉरपारेट के लिए कृषि और सरकारी प्रतिष्ठानों के दरवाजे खोल दिये गये हैं.
लगभग 25 करोड़ संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक हडताल पर हैं और लाखों की संख्या में किसान दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. किसानों के कूच को रोकने के लिए भाजपा शासित राज्यों में बाधाएं खड़ी की गयी हैं.
किसानों पर इस ठंढ़ में वाटर केनन और अश्रु गैस का प्रयोग अनेक स्थानों पर हुआ है. खासकर उत्तर प्रदेश और हरियाण में. किसान ट्रैक्टर और ट्रॉलियों में राशन पानी लेकर दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. किसान आंदोलन के इतिहास में महेंद्र सिंह टिकैत ने एक बार जरूर दिल्ली में डेरा डाला था, लेकिन इस घटना के तीस साल गुजर चुके हैं. दुनिया के मजदूर इतिहास में भी ऐसा नहीं देखा गया है, जब इतनी बड़ी संख्या में देश की आर्थिक गतिविधियों प्रभावित हुई हो. पंजाब,हरियाण, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र के किसान सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ उबल रहे हैं.
एक और महत्वपूर्ण तथ्य रेखांकित करने लायक हैं कि युवा बेरोजगार भी किसानों और मजदूरों के आंदोलन के साथ हैं. संसद से कृषि विधेयक परित होने के बाद से ही पंजाब,हरियाणा और कर्नाटक के किसान आंदोलनरत हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का भी यही हाल है. 200 से अधिक किसान संगठन इस आंदोलन में शामिल है. किसान नेताओं का कहना है कि जब तक सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी, दिल्ली में उनका डेरा जमा रहेगा.
किसानों के दिल्ली प्रवेश को रोकने का यह कोई पहला अवसर भी नहीं है. 2019 में भी दिल्ली कूच करने वाले किसानों पर बेरहम लाठी हुआ था और उन्हें नोयडा और गाजियाबाद में ही रोकने का प्रयास किया गया था.
भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर देशभर के तमाम मजदूर संगठनों ने हड़ताल का आह्वान किया. केंद्र सरकार इकोनॉमी को ओपन करने के नाम पर एयरपोर्ट से लेकर अनेक मुनाफे वाले सरकारी प्रतिष्ठानों के शेयर बेच रही है. यह धारणा प्रबल हो चुकी है कि सरकार के इस कदम से केवल दो कॉरपारेट घराने लाभान्वित किये जा रहे हैं. अडाणी और अंबानी के खिलाफ मजदूर और किसानों में गुस्सा है. मुनाफे वाले आधे दर्जन एयरपोर्ट अडाणी समूह को सौपे जो चुके हैं. केरल के तिरूअनंतपुरम एयरपोर्ट के निजीकरण के खिलाफ केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट जा चुकी है. इस एयरपोर्ट के अधिग्रहण के लिए भी अडाणी समूह का ही चयन किया गया है.
भारत के इतिहास में यह पहली बार ही दिख रहा है. मजदूर और किसानों के बीच स्वत:स्फूर्त उबाल है. ट्रेड यूनियनों के बीच इस तरह की एकजुटता भी पहले कभी नहीं देखी गयी है. बीएमएस भी मजूदरों और किसानों के सवाल को खारिज करने की स्थिति में नहीं है. नरेंद्र मोदी की सरकार का दावा है कि वह भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कदम उठा रही है. लेकिन किसान और मजूदर संगठनों का दावा है कि सरकार की नीतियों का लाभ केवल चंद कॉरपारेट घराने को ही होगा. सरकार के कदम से न केवल खेती किसानी की तबाही तय है, बल्कि संगठित क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में बेरोजगारी पैदा होगी. वैसे भी बेरोजगारी दर में भारत दुनिया के पांच देशों में शामिल है, जहां बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है और बेरोजगारों के लिए किसी तरह के भत्ते का भी प्रावधान नहीं है. अमेरिका में 1900 में 54 प्रतिशत लोगों की निर्भरता कृषि पर थी. लेकिन भारत जिस तरह की नीतियां अपना रहा है, उन्हीं नीतियों के कारण कृषि निर्भरता घटकर दो प्रतिशत से भी कम हो गयी है. लेकिन शेष बचे किसानों के आर्थिक हालात चिंताजनक हैं. कृषि निर्भरता से बाहर किये गये शेष लोगों की जिन्दगी भी अमेरिका में बेहतर नहीं हुई है.
भारत उस समय आर्थिक सुधारों पर जोर दे रहा है, जब दुनिया भर में वैश्विक ग्लोबलाइजेशन को लेकर सवाल उठ रहे हैं. भारतीय किसान चाहते हैं कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी प्रावधान करे और कॉरपोरेट के हमलों से कृषि को बाहर करे.