Ranchi : डॉ रामदयाल मुंडा शोध संस्थान में आदिवासी महोत्सव 2023 के अंतिम पड़ाव के तहत तीन दिवसीय ट्राइबल इकोनॉमी और वैकल्पिक इकोनॉमिक सेमिनार में शुक्रवार को दूसरे दिन अर्थशास्त्री व विनोबा भावे यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति रमेश शरण ने लोगों को संबोधित किया. कहा कि आदिवासियों ने संघर्ष कर अपनी जमीर को बचाया है. देश- दुनिया को आदिवासी संस्कृति ही बचा सकती है. कहा कि नेहरू मोडिल्जिम में एचईसी के लिए 1960 में सैकड़ों आदिवासियों की जमीन ली गयी. 1950 में जहां 2 लाख 57 हजार हेक्टेयर खेत में सिंचाई होती थी, बिहार से अलग झारखंड बनने के बाद 75 प्रतिशत ही डैम बचा. झारखंड के पास 40 प्रतिशत खनिज संपदा है. 80 के दशक के बाद झारखंड से विस्थापन शुरू हो गया. आदिवासी इलाकों में संघर्ष से आदिवासियों की स्वतंत्रता और खुशी खत्म हो गयी. ब्रिटिश काल में भी आदिवासियों पर बुरा प्रभाव पड़ा. रेलवे के विकास के लिए जंगल काट दिये गये.
आदिवासी समाज को अर्थव्यवस्था से अलग कर दिया गया
उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज को अर्थव्यवस्था से अलग कर दिया गया. स्वतंत्र भारत में शिक्षा को असमान कर दिया गया. राज्य में विस्थापन, भूमि का हस्तांतरण, फॉरेस्ट लाइन बनाकर जंगल को तीन भाग में बांट दिया गया. जंगल में रहने वाले आदिवासियों के कारण जंगल को बचाया गया. पिछड़े इलाकों में औद्योगीकरण से विकास शुरू किया गया. डैम के पानी बड़े औद्योगिक क्षेत्र में चला गया. झारखंड के खेतों में पानी कम हो गया. झारखंड खनिज संपदा के मामले में अन्य राज्यों से काफी आगे है. दूसरे राज्यों की अपेक्षा झारखंड में 40 प्रतिशत खनिज संपदा है. इसका नियंत्रण केंद्र सरकार और राज्य सरकार के पास है.
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