J.P. Narayan
17 दिसंबर 2010 को ट्यूनीशिया में बादशाहियत के तानाशाही तंत्र के उत्पीड़न से परेशान होकर एक फल विक्रेता मोहम्मद बाऊजीजी ने हताशा में आत्महत्या कर ली थी. यह घटना एक छोटे शहर में घटी, जिसकी आबादी 40 हजार के करीब थी. बाऊजीजी के जनाजे में करीब 200 लोगों ने भाग लिया था. पूरा शहर फल विक्रेता की आत्महत्या से शोक और आक्रोश में डूब गया.यहां से शुरू हुआ जन विक्षोभ सड़कों पर जन सैलाब बनकर उतर आया. एक-एक कर इस्लामी मुल्क इसकी गिरफ्त में आते गए. जिसे अरब बसंत के नाम से जाना गया. जन सैलाब का सड़कों पर उतरना अरब जगत के लिए सर्वथा नई परिघटना थी. बादशाहियत के स्थायी तानाशाही के जुल्मों से पीड़ित अवाम में आजादी, स्वतंत्रता और न्याय की जन चेतना की उठती लहरों ने बसंत की शीतल हवा के झोंके की तरह अरब जगत को अपने आगोश में खींच लिया, जिसमें लाखों-करोड़ों लोग सड़कों पर उतर आए थे. आजादी की हवा के तेज झोंके अल्जीरिया होते हुए मोरक्को, सूडान, जॉर्डन, लेबनान, कुवैत, ओमान, इराक और संपूर्ण इस्लामिक राष्ट्रों (अरब मुल्कों) में फैलते गये. सभी देशों में बड़े-बड़े जन प्रदर्शन होने लगे. इससे इस्लाम के नाम पर खड़ी तानाशाहियों के खंभे हिलने लगे. पहली बार सल्तनतों के खिलाफ और स्थायी तानाशाही के विरुद्ध अलग-अलग देशों के लाखों लोग सड़कों पर उतरे.
ऐसे कई देश जो अरब जगत में अमेरिकी साम्राज्यवादी रणनीति के अनुकूल नहीं बैठते थे. वहां जन उभार का फायदा उठाकर तख्ता पलट कराया गया. इस श्रेणी में लीबिया, लेबनान, मिस्र, अल्जीरिया जैसे देश थे. लंबे समय से सीरिया पर शासन कर रहे सोवियत कालीन दौर के असद-अल-बसर सरकार के खिलाफ अमेरिका और इजराइल के सहयोग से इस्लामी संगठन आईएसआईएस को खड़ा कर तख्ता पलट करने की कोशिश हुई. तब से सीरिया गृह युद्ध में फंसा हुआ है. लेकिन रूस के सहयोग से असद अभी तक सत्ता पर काबिज हैं.
अरब जनता की राजनीतिक चेतना में गुणात्मक बदलाव आने लगा. जिस कारण से कट्टरपंथी आतंकी संगठनों की पकड़ अब इस्लामी देशों में घटने लगी है. यही कारण है कि अरब जनता में आई लोकतांत्रिक चेतना ने आईएसआईएस के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वह सीरिया में असद सरकार को पलटने में कामयाब नहीं हो सका. अंत में सिमट कर अब अमेरिकी दया पर जिंदा है, लेकिन ट्यूनीशिया से उठी अब बसंत की लहर का फायदा उठाकर मिस्र और लीबिया में अमेरिकी षड्यंत्र कामयाब हो गए. लीबिया में गद्दाफी की लंबे समय से चल रही स्थायी तानाशाही की सरकार को पलट दिया गया. गद्दाफी खुद मारे गए. मिस्र में भी यही हालत हुई और वहां के विद्रोही संगठनों के बल पर सत्ता पलट कराया गया. अब अल सीसी की तानाशाह सरकार मिस्र पर थोप दी गई है, जो पश्चिम उत्तर एशिया में अमेरिकी लठैत के रूप में इस समय काम कर रही है.
अतीत में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि गमाल यूसुफ नासिर के द्वारा गढ़ा गया इजिप्ट जो कभी गुटनिरपेक्ष देशों का नेता हुआ करता था, जिसने अरब राष्ट्रवाद को प्रगतिशील दिशा में मोड़ने की अथक कोशिश की, अंततोगत्वा अमेरिकी विश्व प्रभुत्व रणनीति का शिकार बन जाएगा. अमेरिका इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों खासकर पेट्रोलियम पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. इसके लिए वह अलकायदा, बोको हरम, आईएसआईएस जैसे न जाने कितने आतंकी संगठनों और तानाशाहियों द्वारा लोकतांत्रिक आंदोलनों को कमजोर कर शेखों, बादशाहों की सरकारों को मदद पहुंचता रहा है. इन संगठनों की मदद से यूएस ने अरब देशों में इस्लामी रूढ़िवादी माहौल बनाने का प्रयास किया, जिससे पूरी दुनिया में इस्लाम को बदनाम करने में अमेरिका सहित अन्य नस्लवादी ताकतों को कामयाबी मिली. पिछड़े रूढि़वादी विचारों और मजहबी संस्थाओं को मजबूत करने के लिए अमेरिका ने अरबों डॉलर इन देशों में उड़ेलना जारी रखा है.
प्राचीन इस्लामी व्यवस्था के नाम पर राजशाही को ईश्वरीय प्रतीक के रूप में पेश करते हुए पिछड़े, मध्यकालीन सामाजिक-राजनीतिक ढांचे को बनाए रखा गया है. जिस कारण से इन मुल्कों में आधुनिक लोकतांत्रिक संगठनों-संस्थाओं और यहां तक की प्रशासनिक ढांचे का भी विकास नहीं हो सका है. अजेय इजराइली मिथक को तोड़ते हुए हमास ने जो कदम उठाया, उससे अरब जगत की जनता के स्वाभिमान को नई शक्ति मिली है. इस घटना के बाद उत्पन्न स्थिति ने अरब जगत के जनमानस में नए तरह का आलोड़न पैदा कर दिया है. दसियों हजार निर्दोष बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं और नागरिकों के जनसंहार से उपजे जन आक्रोश ने अरब जगत की जनता की दृष्टि और घटनाओं को देखने के तरीके को बदला है. एशिया और उत्तरी अफ्रीका के सभी 22 इस्लामिक मुल्कों में लगातार जन विरोध देखने को मिल रहे हैं.
हमास का हमला फिलिस्तीनी प्रतिरोध और इजराइली क्रूर नरसंहार आने वाले समय में संभवतः अरब राष्ट्रवाद के उभार के तीसरे दौर का गवाह बनने जा रहा है. उम्मीद है कि अरब जगत में आए जन उभार की तीसरी लहर नए बसंत की सुखद हवाओं को साथ लेकर आएगी.दुनिया के सबसे क्रूर अमानवीय नरसंहार जो जायनिस्ट इजराइली सरकार द्वारा किया जा रहा है. संभवतः इसी के बीच से लोकतंत्र और सार्वभौम राष्ट्रों के निर्माण का नया युग शुरू होगा. फिलिस्तीन और इजराइल के बीच चल रहे महाविनाशकारी युद्ध में यह संभावना निहित है कि युद्धोत्तर दुनिया में अरब जगत के साथ ही पूरे विश्व का शक्ति संतुलन बदला जा सकता है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.