Surjeet Singh
यह ठीक है कि कांग्रेसी सांसद धीरज प्रसाद साहू खानदानी कारोबारी हैं. यह भी ठीक है कि जितनी रकम (अब तक 300 करोड़) बरामद हुई है, वह सिर्फ सांसद होने की वजह से नहीं हो सकती. पर सवाल यह है कि इस बात को आम जनमानस को समझायेगा कौन. आयकर विभाग की इस छापेमारी को लेकर भाजपा जिस तरह हमलावर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम भाजपा नेता-कार्यकर्ता इसको लेकर सवाल उठा रहे हैं, जिसका जवाब देना कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा. कांग्रेस की मजबूरी है कि वह यह भी नहीं कह सकती कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर फंसा रही है. सारा पैसा धीरज साहू या उनके परिवार के ठिकानों से मिला है. कुछ लोग कह रहे हैं कि बरामदगी की राशि 1000 करोड़ रुपये तक की हो सकती है. वैसे 300 करोड़ भी कम नहीं हैं. हर तरफ थू-थू हो रही है और सवाल उठाये जा रहे हैं.
कुल मिलाकर धीरज साहू का मामला कांग्रेस को मिली तीन राज्यों में हार से भी अधिक नुकसान पहुंचाने वाला है. क्योंकि भाजपा इस मामले को अब लोकसभा चुनाव तक छोड़ने नहीं वाली. एक सांसद, जो कारोबारी भी है, उसकी वजह से कांग्रेस पार्टी को पूरे चुनाव में बैकफुट पर रहना होगा. जो दूसरा रास्ता है, उस पर कांग्रेस कभी चली ही नहीं. वह यह कि पार्टी खुद धीरज साहू पर कार्रवाई करे. पार्टी से बाहर करे और उससे सारे नाते तोड़ ले. लेकिन संकट यह है कि कांग्रेस पार्टी अपने धनकुबेर नेताओं पर कार्रवाई करने में हमेशा संकोच करती रही है. इसलिए यह उम्मीद ही बेमानी है.
सांसद धीरज साहू चुप हैं. आयकर विभाग ने भी अभी तक जानकारियों को सार्वजनिक नहीं किया है. पर भाजपा इस मामले को कांग्रेस पार्टी से जोड़ रही है. कह रही है कि इस पैसे का इस्तेमाल मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में विधायकों की जोड़-तोड़ में करने की योजना के तहत रखा गया था. इसके साथ ही भाजपा झारखंड की सरकार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर भी निशाना साध रही है. अगर यह मामला और तूल पकड़ता है और भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बनाने में सफल हो जाती है, तो हिंदी पट्टी के राज्यों में कांग्रेस को सहयोगी तलाशने में भी मुश्किल हो सकती है.