Shyam Kishore Choubey
संकल्प यात्रा से कहीं आप वह वाली यात्रा न समझ बैठें, जिसे झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने निकाली थी. उनकी यात्रा तो पिछले साल अक्टूबर में ही पूरी हो गई थी. उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 नवंबर 2023 से विकसित भारत संकल्प यात्रा प्रारंभ करायी, जिसका समापन 25 जनवरी को होगा. संयोग ही है कि यह यात्रा झारखंड से प्रारंभ की गई थी. उसके 40 घंटे बाद मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों और छत्तीसगढ़ में मतदान होनेवाला था. उस चुनाव में भाजपा विजयी रही थी. मोदी महोदय बिरसा मुंडा के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में उनके गांव उलिहातू गये थे और वहीं से यात्रा की शुरुआत हुई थी. जबतक यह यात्रा समाप्त होगी, अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर का लोकार्पण, जैसा माहौल बन रहा है, अपने चारों शंकराचार्यों के बगैर भी हो चुका रहेगा. उसके बाद तो खैर, जैसे मौसम में गर्मी की दस्तक होने लगेगी, वैसे ही देश भर में लोकसभा का चुनावी माहौल गर्म होने लगेगा. दूसरी तरफ कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ऐन मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को मणिपुर से भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण भारत न्याय यात्रा प्रारंभ करनेवाले हैं. पदयात्रा का पहला चरण उन्होंने 07 सितंबर 2022 को प्रारंभ किया था.
वह यात्रा कन्याकुमारी से श्रीनगर- कश्मीर तक यानी दक्षिण से उत्तर तक प्रायः 4080 किलोमीटर की थी. वह पदयात्रा देश के 12 राज्यों के 75 जिलों को कवर करते हुए 136 दिनों तक चली थी. इस यात्रा के दौरान कांग्रेस ने हिमाचल विजय की थी और इसके बाद कर्नाटक में भी उसको जीत मिली थी. अबकी बार की यात्रा के डेढ़ महीने पहले कांग्रेस छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में पराजित रही, जबकि इस यात्रा की कालावधि में लोकसभा चुनाव पड़ेगा. ये तीनों चुनाव बताते हैं कि हश्र कौन जानता है लेकिन मोदी वक्त की नब्ज पकड़ना जानते हैं. चुनावों के विषय में परिस्थितियां भांपकर अंदाज ही तो लगाया जाता है. इस बार राहुल पूरब से पश्चिम मणिपुर से मुंबई-महाराष्ट्र तक लगभग साढ़े छह हजार किलोमीटर की दूरी नापेंगे. इस दौरान देश के 14 राज्यों के 85 जिले कवर किये जाने का लक्ष्य है. इसमें झारखंड भी आएगा. जैसा कि कहा जा रहा है, राहुल पदयात्रा के दौरान झारखंड में आठ दिन गुजारेंगे. वे चार साल पहले इधर देखे-सुने गये थे. पहली पदयात्रा से उनकी छवि में निखार आया था. इस बार और निखरते हैं तो और अच्छा.
विकसित भारत संकल्प यात्रा हो कि भारत न्याय यात्रा, दोनों का अघोषित उद्देश्य राजनीतिक ही है. अपनी-अपनी राजनीति साधने लिए महिमामंडित कर ये यात्रा कांड अंजाम दिये जा रहे हैं. राजनीति करनेवाले आखिरकार राजनीति ही करेंगे. आज की तारीख में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी है. गांव-गांव तक उसने पहुंच बना ली है. उसके पास कार्यकर्ताओं की टोलियां हैं और कुछ अन्य संगठनों के समर्पित सक्रिय सहयोग है. इसके बावजूद केंद्र सरकार द्वारा किये गये कार्यों से जनमानस को अवगत कराने और जो लोग लोकभावन योजनाओं से वंचित रह गये हैं, उनको जोड़ने के लिए विकसित भारत संकल्प यात्रा निकलवानी पड़ रही है. इसमें बताया जा रहा है कि 2047 तक भारत विकसित देश हो जाएगा. वह दिन देखने के लिए मेरे जैसे करोड़ों लोग शायद जीवित नहीं रहेंगे. बुढ़ापा अपने आप में बड़ा गंभीर मर्ज है. जितना जल्द गुजर जाय, उतना ही अच्छा. धीर, गंभीर, अमीर और नामी-गिरामी कई हस्तियों का भी अधिक काल तक चला बुढ़ापा मृत्यु से कहीं अधिक दुखदायी और कष्टप्रद गुजरा/गुजर रहा है.
2047 तक जो जीवित रहेंगे और सुख भोगने लायक रहेंगे, उनके लिए निश्चय ही वह काल ‘अति आनंद उमगि अनुरागा’ वाला होगा. यूं, आज का युवा, खासकर मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर रहा युवा फौरन से पेश्तर सबकुछ पा लेने के मंसूबे पाले रहता है. मल्टीनेशनल वाले ही क्यों, यूपीएससी या पीसीएस कम्पीट कर सरकारी नौकरियों में आये कई युवा भी ऐसी ही चाहत रखते हैं. उमड़ती-घुमड़ती इतराती यह चाहत उनको कई बार मुसीबतों में धकेल देती है. कई लोग बदनाम होकर भी मुसीबतों में नहीं पड़ते. यही कारण है कि इन प्रतिष्ठित सेवाओं पर ऊंगलियां उठने लगी हैं. वे राजनीतिक आकाओं के चक्कर लगाना शायद बेहतर और अधिक सुगम रास्ता समझ बैठते हैं. अब की राजनीति का तो खैर कहना ही क्या! जैसे-तैसे पहली बार चुनाव जीतने वाले या जिता दिये जानेवाले भी कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री का सपना पाल लेते हैं. कई का सपना सच भी हो जाता है. यह देख-भाल कर युवा वर्ग उधर की ओर अधिक सम्मोहित रहता है और धरना-प्रदर्शनों में जिंदाबाद-मुर्दाबाद के भंवरजाल में फंसा रहता है. मोदी और राहुल की यात्राओं में काफी फर्क है, जबकि दोनों का लक्ष्य एक ही है.
मोदी अपने दस साल के कार्यकाल में किये कार्यों को दिखाने-जताने के लिए सरकारी एजेंसियों का उपयोग करने की स्थिति में हैं. वे इसे बखूबी दिखा रहे हैं. राहुल के पास इस गुजरे वक्त की नाकामियां गिनाने के अलावा कुछ खास नहीं है. मोदी 2047 के भी सपने दिखा रहे हैं, जबकि राहुल 2024 पाने को उत्सुक हैं और कुछ महीनों बाद के सपने दिखा रहे हैं. मोदी के हिस्से में पाने को बहुत कुछ नहीं है. जो है उसे वे बड़े जतन से बचाये रखने और उसमें कुछ-कुछ जोड़ने के प्रयास में लगे हुए हैं. राहुल के हिस्से में पाने को बहुत कुछ है. दोनों के लिए दाता आम अवाम है. देखिए, वह किसको देती है. यूं, ये साक्षात अमृत काल की यात्राएं हैं. इनका आनंद लीजिए.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.