Ranchi : सरकारी योजनाओं में कई ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं, जो आम लोगों के हित में है. इसके लिए बकायदा कानून बने हुए हैं. लोग जानकारी रख कर इसका लाभ उठा सकते हैं. ऐसा ही मनरेगा के तहत काम मांगने पर भी है. यदि काम नहीं मिला तो वह व्यक्ति बेरोजगारी भत्ता का हकदार होता है. राज्य सरकार भत्ता देने से इंकार नहीं कर सकती है. इसके लिए मनरेगा कानून के तहत लोगों के हित में व्यवस्था की गयी है.
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100 दिन काम की गारंटी
मनरेगा के तहत मजदूर को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन रोजगार देने का नियम है. यह केंद्रीय योजना है. ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के उद्देश्य से इसे शुरू किया गया है. जिसके लिए प्रत्येक परिवार के वयस्क सदस्यों को रोजगार मिल सके. मनरेगा के तहत काम मांगने वाले लोगों को काम उपलब्ध कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है.
राज्य सरकार को काम मांगने वाले व्यक्ति के घर से पांच किलोमीटर के दायरे में योजना सृजित कर काम देना होगा. काम होने के बाद उन्हें तय मजदूरी का भुगतान भी सुनिश्चित करना होगा.
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15 दिन के अंदर काम देना जरूरी
मनरेगा नियम के तहत काम मांगने वाले व्यक्ति को 15 दिन के अंदर विभाग द्वारा काम देना आवश्यक है. अगर 15 दिन के अंदर उसे काम नहीं मिलता है, तो वह व्यक्ति बेरोजगारी भत्ता का दावा कर सकता है. नियम के अनुसार, पहले 30 दिनों के लिए बेरोजगारी भत्ता मनरेगा के तहत तय मजदूरी का 25 फीसदी मिलेगा. इसके बाद शेष दिनों के लिए मनरेगा मजदूरी का 50 फीसदी भुगतान किया जायेगा.
धारा 7 की उपधारा-1 के अधीन बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान
मनरेगा अधिनियम की धारा 7 की उपधारा 1 के अधीन बेरोजगारी भत्ता लेने का प्रावधान किया गया है. काम नहीं मिलने की स्थिति में पंचायत सचिव को बेरोजगारी भत्ता के लिए मजदूर आवेदन कर सकते हैं. बेरोजगारी भत्ता का भुगतान राज्य सरकार को करना पड़ता है. इसलिए कई राज्यों ने इस पर सख्त कदम उठाया है.
राज्यों ने नियम बनाया है कि अगर किसी मजदूर को बेरोजगारी भत्ता देने पड़ जाता है, तो इस मामले में संबंधित लोगों पर कार्रवाई होगी. झारखंड में भी इस तरह का नियम है. ग्रामीण विकास विभाग ने नियम बना रखा है कि अगर किसी को बेरोजगारी भत्ता देना पड़ा, तो जिम्मेदार अधिकारी के वेतन से राशि काटी जायेगी.
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