New Delhi : कांग्रेस ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा चुनावी बॉन्ड का ब्यौरा देने के लिए उच्चतम न्यायालय से और समय की मांग किये जाने को लेकर गुरुवार को आरोप लगाया कि न्यू इंडिया (नये भारत) में लुका-छिपी का खेल चल रहा है, जिसमें देश ढूंढ़ रहा है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी छिपा रहे हैं. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा की बात करने वाले प्रधानमंत्री अब ना बताऊंगा, ना दिखाऊंगा… पर अड़े हुए हैं. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
न्यू इंडिया में हाइड एंड सीक (लुका-छिपी) का खेल: देश ढूंढ रहा है, मोदी छिपा रहे हैं।
एसबीआई की ‘प्रधानमंत्री चंदा छिपाओ योजना’ झूठ पर आधारित है। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से तीन सप्ताह के भीतर इलेक्टोरल बांड देने वालों और प्राप्त करने वालों का विवरण उपलब्ध कराने को कहा था। एसबीआई… https://t.co/evUL0ypKIU
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) March 7, 2024
एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से 30 जून तक का समय मांगा
एसबीआई ने चार मार्च को सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि चुनावी बॉन्ड का ब्योरा देने के लिए समय 30 जून तक बढ़ाया जाये. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने अपने एक फैसले में एसबीआई को इस संबंध में विवरण छह मार्च तक निर्वाचन आयोग को देने का निर्देश दिया था. रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया, न्यू इंडिया में हाइड एंड सीक (लुका-छिपी) का खेल : देश ढूंढ़ रहा है, मोदी छिपा रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि एसबीआई की प्रधानमंत्री चंदा छिपाओ योजना झूठ पर आधारित है. कांग्रेस नेता का कहना है, उच्चतम न्यायालय ने एसबीआई से तीन सप्ताह के भीतर चुनावी बॉन्ड देने वालों और प्राप्त करने वालों का विवरण उपलब्ध कराने को कहा था.
एसबीआई ने बहाना बनाया, ताकि लोकसभा चुनाव आसानी से निकल जाये
रमेश ने कहा, एसबीआई ने उच्चतम न्यायालय से 30 जून तक का समय मांगा है ताकि आगामी लोकसभा चुनाव आसानी से निकल जाये. रमेश के अनुसार, एसबीआई का बहाना यह था कि चुनावी बॉन्ड की बिक्री और नकदीकरण (इनकैशमेंट) से संबंधित उसके डेटा को अज्ञात रखने के लिए अलग कर दिया गया है. एसबीआई के अनुसार, 2019 के बाद से जारी किये गये 22,217 चुनावी बॉन्ड के खरीदारों का लाभार्थी पक्षों से मिलान करने में कई महीने लगेंगे.
प्रत्येक चुनावी बॉन्ड दो शर्तों के साथ बेचा जाता था
उन्होंने कहा, हम जानते हैं कि प्रत्येक चुनावी बॉन्ड दो शर्तों के साथ बेचा जाता था- खरीदार की पहचान करने के लिए एसबीआई शाखाओं द्वारा नो योर कस्टमर’ (केवाईसी) की विस्तृत प्रक्रिया और बॉन्ड पर छिपे सीरियल नंबर. इसलिए एसबीआई के पास निश्चित रूप से देने वाले और प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों, दोनों का डेटा है.
वित्त मंत्रालय ने कहा था, खरीदार के रिकॉर्ड बैंकिंग चैनल में उपलब्ध होते हैं
रमेश ने कहा, वास्तव में वित्त मंत्रालय ने 2017 में कहा भी था कि खरीदार के रिकॉर्ड हमेशा बैंकिंग चैनल में उपलब्ध होते हैं और प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें प्राप्त किया जा सकता है. तब और अब के बीच क्या बदलाव आया है? रमेश का कहना है, हम यह भी जानते हैं कि 2018 में, जब एक राजनीतिक दल ने मियाद खत्म होने वाले कुछ चुनावी बॉण्ड को भुनाने की कोशिश की थी तो एसबीआई ने वित्त मंत्रालय से अनुमति मांगी और इन बॉन्ड को भुनाने के लिए तत्परता के साथ काम किया.
एसबीआई एकदम घटिया बहाना लेकर आया है…
बहुत कम समय में ही, बैंक इन बॉन्ड की संख्या और ख़रीद की तारीख़ की पहचान करने में सक्षम हो गया था. उन्होंने दावा किया, जैसा कि मोदी सरकार के एक सेनानिवृत्त वित्त और आर्थिक सचिव ने कहा है – चुनाव से पहले बॉन्ड दाताओं के विवरण प्रकाशित करने से बचने के लिए एसबीआई एकदम घटिया बहाना’ लेकर आया है. सच तो यह है कि प्रधानमंत्री भारत की जनता के सामने अपने कॉरपोरेट चंदादाताओं का खुलासा करने से डरते हैं.
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