Dr. Kaushalendra Batohi
अभी हो रहे आम चुनाव में एक खबर अक्सर ध्यान खींचती है, जिसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण कृत्रिम बुद्धिमत्ता की तकनीक पर आधारित टूल के माध्यम से आठ विभिन्न भाषाओ में वास्तविक काल में प्रचारित एवं प्रसारित हो रहे हैं. ये भाषाएं हैं कन्नड़, तमिल, तेलगु, मलयालम, बंगाली, ओडिशा, पंजाबी एवं मराठी. चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं तक अपनी बातों को पहुंचाने का यह एक सर्वोत्तम माध्यम बना हुआ है. ऐसा नहीं है कि प्रचार में केवल भारतीय जनता पार्टी ही इस तरह की उन्नत तकनीक का प्रयोग कर रही है, बल्कि विभिन्न राजनैतिक दल अपने क्षमता के अनुसार इस आमचुनाव में तकनीक के प्रयोग से मतदाताओं तक पहुंच रहे हैं. डीएमके एवं एआईडीएमके भी तामिलनाडु में एआई एवं डिपफेक के माध्यम से प्रचार कर रहे हैं. ये दोनों तकनीक के मदद से एक वीडियो संदेश में करुणानिधि की आवाज एवं तस्वीर का प्रयोग कर वर्तमान स्टालिन सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं एवं यह संदेश बहुत प्रभावशाली है. इसी तरह एआईडीएमके भी जयललिता की आवाज एवं तस्वीर के साथ वीडियो संदेश के माध्यम से मतदाताओं से मत की अपील कर रहे हैं. ये सब तकनीक की उन्नत किस्म के प्रयोग का उदाहरण है, जो पहली नजर में वास्तविकता का एहसास करता है और मतदाताओं पर गहरा प्रभाव डालता है. ऐसा नहीं है कि तकनीक का प्रयोग पहली बार भारत के चुनावो में हो रहा है.
हर दौर में उपलब्ध तकनीकी संसाधनों का प्रयोग अपनी क्षमता के अनुसार राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है. 1990 के दौर के चुनावों में फोन का प्रयोग धड़ल्ले से हुआ और कॉल के माध्यम से प्रत्याशी मतदाताओं तक पहुंचने लगे. 2007 के उत्तरप्रदेश के विधान सभा चुनाव में बहुतायत मात्रा में पहली बार मोबाइल फोन का प्रयोग एवं सामूहिक संदेशों के द्वारा मतदाताओं तक पहुंचना प्रारंभ हुआ. इसी तरह 2014 के आमचुनाव में होलोग्राम का प्रयोग हुआ एवं 3-डी इमेज के माध्यम से उस समय के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के भाषणों का प्रसार हुआ एवं चाय पर चर्चा नामक अभियान का आयोजन हुआ. इसी तरह 2019 के आम चुनाव में वाट्सअप का प्रयोग बडे पैमाने पर शुरू हुआ. संदेशों का प्रसार आसानी से इसके ग्रुपों के द्वारा होने लगा.
प्रत्याशीगण ज्यादा व्यक्तिगत रूप से मतदाताओं तक पहुंचने लगे. वैसे ही वर्तमान चुनाव में एआई का प्रयोग बहुतायत स्तर पर हो रहा है. एआई आधारित तकनीक के प्रयोग से प्रचार आसान हुआ है, लोगो तक अपने मुद्दे जल्दी से जल्दी पहुंचाने में मदद मिल रही है, भाषाई बाधा या चुनौतियों को आसानी से निपटा जा रहा है, साथ ही साथ हर मतदाता से उसके नाम के साथ वीडियो संदेश या ऑडियो संदेश आसानी से पहुंचाये जा सकते हैं, जो प्रत्याशी के साथ मतदाता का व्यक्तिगत लगाव का एहसास कराने में सक्षम होंगे. ऐसे ही एआई आधारित चैटवोट लगातार ऑटो मैटिक कॉल का प्रत्याशी के आवाज मे ऑटोमेटिक कॉल कर सकता है और यह इतना उत्तम स्तर का होता है कि आभाषी होने का एहसास भी नहीं कराता है.
इसी प्रकार सोशल मीडिया का धड़ल्ले से प्रयोग भी अपने विचारों को आम आदमी तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है, परन्तु तकनीक आधारित प्रचार की अपनी चुनौतियां भी हैं. अपने देश में कोई प्रभावशाली एवं सक्षम नियामक प्राधिकरण नहीं होने के कारण दुरुपयोग की संभावना भी बहुत ज्यादा है. एआई आधारित तकनीक एवं डीपफेक आसानी से उपलब्ध एवं जनसुलभ तकनीक हैं और इस कारण दुरुपयोग की संभावना भी बहुत है. जिस तेजी से संदेशों का प्रभाव होता है, इसके माध्यम से उसी रफ्त्तार से गलत संदेश, डीपफेक आधारित गलत तस्वीरें ऑडियो संदेश के साथ कुछ सेकेंड में लाखों लोगों तक पहुंच जाती हैं और जब-तक उसे रेगुलेट करेंगे, तबतक वह संदेश, उम्मीदवार के लिए नुकसान पहुंचा चुका रहेगा.
डीपफेक एवं एआई तकनीक का उपयोग करके किसी भी समय किसी का नकली ऑडियो एवं वीडियो बना कर वायरल किया जा सकता है और वह प्रत्याशी, उस पार्टी या व्यक्ति के लिए नुकसानदेह साबित होगा. चुनाव में तकनीक के प्रयोग से फायदे के साथ-साथ नुकसान एवं लोकतंत्र के लिए चुनौती भी है. प्रमुख नेताओं की आवाज की क्लोनिंग एवं उसके अवतार का विकास आसानी से एआई तकनीक द्वारा हो जाता है. इसके त्वरित विस्तार के कारण वास्तविक एवं नकली संदेशों में विभेद करना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जो कि मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा करेगा और लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं रहेगा. अभी हाल में ही ऐसा ही वीडियो अमीर खान का वायरल हुआ था, जो डिपफेक द्वारा निर्मित हुआ था एवं एक राजनैतिक दल के बारे में वह चर्चा कर रहे थे. इस एकीकृत तकनीक की पहुंच के कारण वास्तिक मुद्दों एवं नकली संदेशों के माध्यम से प्रसारित मुद्दों में विभेद करना मुश्किल होगा.
दूसरा एक महत्वपूर्ण एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था के नकारात्मक पहलू है, वह यह कि तकनीक के कारण उम्मीदवारों का, राजनैतिक पार्टियों का आम आदमी से व्यक्तिगत संपर्क का अभाव हो जाता है. हर उम्मीदवार सोशल मीडिया, एआई तकनीक, फोन कॉल, चैटवोट के माध्यम से संपर्क करने लगेगा तो लोकतंत्र की जीवंतता कम हो जाएगी. मानवीय पहलू गौण हो जाएगा. लोगों से लोगों का जुड़ाव कम हो जाएगा और यही जुडाव लोकतंत्र की सफलता का मूल है. वर्तमान चुनाव के प्रथम दो फेजों में कम मत प्रतिशत का एक यह भी कारण हो सकता है, क्योंकि अधिकांश चुनाव प्रचार तकनीक आधारित हो रहा है और उम्मीदवार घर-घर नहीं जाकर तकनीक के सहारे या बडे नेताओं की बडी-बडी सभाओं पर निर्भर हो रहे हैं, इसलिए मतदाताओ में भी चुनाव के प्रति रुझान कम हो रहा है. जरूरत इस बात की है कि नियंत्रित रूप से चुनावो में तकनीक का प्रयोग करते हुए चुनाव प्रचार की पारंपरिक अवधारणा को जिंदा रखते हुए इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाया जाए.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.