- अधिवक्ता बसंत प्रसाद ने गांव के बच्चों का जज्बा देख खेल मैदान के लिए दान की थी जमीन, देखरेख के अभाव में मैदान की हालत जर्जर
Simdega: जापान के टोक्यो में आयोजित होने वाले ओलंपिक के चयनित सिमडेगा की सलीमा टेटे का परिवार आज भी गांव में साधारण जीवन बीता रहा है. सिमडेगा हॉकी की नर्सरी है. गांव की माटी से सलीमा के हॉकी की शुरुआत हुई. पूरा परिवार आज भी जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर बढ़कीछापर में साधारण से मिट्टी के मकान में रहता है. पिता सुल्क्सन टेटे एवं भाई अनमोल टेटे खेती करते हैं. बैल से खेतों की जुताई करते हैं. मां सुबानी टेटे गृहणी है.
सलीमा की चार बहनों में इलिसन, अनिमा, सुमंती और महिमा टेटे. महिमा भी राज्य स्तरीय हॉकी प्रतियोगिता खेल चुकी हैं. सलीमा का चयन ओलंपिक में होने के बाद उसके परिवार के साथ-साथ गांव के लोग भी गौरवान्वित हैं. और हो भी क्यों नहीं, जिले से पहली बार किसी महिला खिलाड़ी ओलंपिक के लिए चयनित हुई है. 40 वर्ष पहले 1980 में पुरुष वर्ग में सिल्वानुस डुंगडुंग का चयन हुआ था.
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सलीमा के पिता ने बताया कि काफी संघर्ष के बाद सलीमा इस मुकाम तक पहुंची है. आरंभ के दिनों में वह उनके साथ हॉकी मैदान जाती और उनके साथ हॉकी सीखती थी. बाद में स्कूल के आवासीय प्रशिक्षण के माध्यम से अपना प्रतिभा निखरती गई. कई अंतरराष्ट्रीय मैचों में भी बेहतरीन प्रदर्शन की आखिर कर वह ओलंपिक के लिए अपनी जगह बनाने में कामयाब हुई. पलायन का दर्द झेल चुके सलीमा के पिता ने यह भी बताया कि उनकी एक बेटी सुमंती मुंबई में रहकर काम करती है.
सलीमा की मां ने कहा कच्चे घर में बरसात में बहुत दिक्कत होती है. सरकार सबको आवास दे रही है. हमने अपनी बेटी देश सेवा में दी मगर सरकार का हमारे पर कोई ध्यान नहीं है. आज इस घर का हर बच्चा हॉकी स्टीक को हीं अपना खिलौना समझता है. तभी तो यहां की माटी अभाव में पली बढी सलीमा को ओलंपिक तक पंहुचाया.
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गांव में एक छोटा सा मैदान भी है. जिसे अधिवक्ता बसंत प्रसाद ने गांव के बच्चों का जज्बा देख दान किया था. लेकिन आज वह मैदान मिट्टी कटाव के कारण उबड खाबड हो गया है. गांव के युवा हर वर्ष उसे सुधारते हैं. लेकिन हर बरसात यही हाल हो जाता है.
आरसी मध्य विद्यालय तुमडेगी के प्राचार्य पीटर मिंज एवम शिक्षक सिकंदर तिर्की ने भी सलीमा को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि वह कभी उनके स्कूल मैदान में अभ्यास करती थी. उन्होंने कहा कि यहां स्कूल में तीन छोटे ग्राउंड हैं. उन्हे अगर एक भी एस्ट्रोटर्फ मिल जाए तो यह स्कूल अनेकों सलीमा जैसी प्रतिभावान खिलाड़ियों को ओलंपिक तक सफर कराने का जज्बा रखता है. उन्होंने कहा सलीमा ने आज ओलंपिक में जगह बनाने उसने स्कूल परिवार को भी गौरवान्वित किया है.