Ranchi: सोमवार को आंदोलनरत सहायक पुलिसकर्मी राजभवन घेराव करने जा रहे थे, जिन्हें पुलिस ने मोरहाबादी मैदान में ही रोक दिया है. अपनी मांगों के समर्थन में सहायक पुलिसकर्मी मोरहाबादी मैदान में आंदोलन कर रहे हैं. सोमवार को तय कार्यक्रम के तहत में मोरहाबादी मैदान से राजभवन घेराव के लिए निकले थे. लेकिन भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच उन्हें मोरहाबादी मैदान में ही रोक दिया गया है. सहायक पुलिस कर्मियों को जब यहां रोका गया तो विरोध में सभी सरकार और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. सहायक पुलिसकर्मियों ने कई बार बैरिकेडिंग को धकेलते हुए आगे बढ़ाने की कोशिश भी किया, लेकिन प्रशासन ने उन्हें रोक दिया. सिटी एसपी राजकुमार मेहता सहायक पुलिस कर्मियों को काफी समझाने का प्रयास किया लेकिन सहायक पुलिसकर्मी राजभवन घेराव के लिए अड़े रहे. बता दें सहायक पुलिस के जवानों का आंदोलन मोरहाबादी मैदान में बीते दो जुलाई से शुरू हुआ है, जो 13वें दिन भी जारी है. बारिश होने के बाद भी कई जिलों से आए सहायक पुलिसकर्मी मोरहाबादी मैदान में टेंट बना कर आंदोलन कर रहे हैं.
लंबे समय से आंदोलनरत है
सहायक पुलिसकर्मियों ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि हमलोग लंबे समय से आंदोलनरत हैं. लेकिन सरकार के कान में अभी तक जू भी नहीं रेंग रही है. फिलहाल सभी अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए हैं. इससे पहले सहायक पुलिस कर्मियों ने आठ जुलाई को विशेष सत्र के दौरान विधानसभा के बाहर अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया था. सहायक पुलिस कर्मियों का कहना है रघुवर दास की सरकार के दौरान 2017 में राज्य के 12 नक्सल प्रभावित जिलों में विधि व्यवस्था दुरुस्त रखने में सहायता के लिए इन सहायक पुलिस की नियुक्ति हुई थी. तब उन्हें दस हजार रुपये मासिक दिया जाता था. सहायक पुलिसकर्मियों की मानें तो आज भी उन्हें दस हजार रुपये ही मिलता है.
नौकरी परमानेंट करने की मांग
मोरहाबादी मैदान में आंदोलन के लिए जुटे सहायक पुलिसकर्मियों ने बताया कि वो लोग पिछले सात वर्षों से दस हजार रुपए के मासिक मानदेय पर नौकरी कर रहे हैं. दस हजार रुपये में परिवार का पालन पोषण करना बेहद ही मुश्किल है. झारखंड में पुलिस जवानों की कमी है. उनकी मांग है, कि उनकी सेवा को पुलिस सेवा में समायोजित किया जाए. उन्होंने बताया कि सेवा को परमानेंट करने की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत कर रहे हैं. उनका कहना है कि अनुबंध के खत्म हो जाने के बाद उनके पास कुछ करने को नहीं बचेगा. पूर्व की सरकार ने आश्वासन दिया था कि तीन साल तक की ड्यूटी के बाद उन्हें परमानेंट कर दिया जाएगा. लेकिन इस संबंध में सरकार ने कोई प्रक्रिया नहीं शुरू की है इसलिए उनका आंदोलन जारी है.
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