Kiriburu (Shailesh Singh) : चिड़िया खादान का लीज सबसे पहले वर्ष 1901 में बंगाल आयरन एंड स्टील कम्पनी को मिला था. जिसके प्रोस्पेक्टिंग का काम तब कर रही मेसर्स मार्टिन बंग एंड कम्पनी के दो अधिकारी पी एन बोस एंव आर सौबेल ने सर्व प्रथम चिड़िया में लौह अयस्क की भंडार की खोज की थी. चिड़िया खादान से लौह अयस्क का उत्पादन वर्ष 1907 में हैंड माइनिंग के रुप में प्रारम्भ हुआ. सारंडा के चिड़िया व दोदारी गांव के समीप पंसिराबुरू पहाड़ से लौह अयस्क की ढुलाई हेतु रेल लाइन बिछाने का कार्य चिड़िया से मनोहरपुर के बीच वर्ष 1908 में प्रारम्भ हुआ जो 1910 में बनकर तैयार हुआ था. इसी दौरान दोदारी की उक्त पहाड़ी से एक अलग रेल लाईन बिछाया गया था जो चिड़िया वाला लाइन में अंकुआ गांव के समीप मिलाया गया था. खनिज सम्पदा की ढुलाई में आने वाली दिक्कतों की वजह से उक्त रेल लाईन बिछाया गया था एवं सारंडा की खूबसूरती व पर्यावरण को बचाते हुये सारा कार्य व्यवस्थित तरीके से किया गया था. बाद में इस खादान को इस्को एवं अभी सेल के अधीन है. वर्ष 1974 में दोदारी के समीप खादान व रेलवे से माल ढुलाई का कार्य बंद कर दिया गया, तथा वर्ष 1999 में चिड़िया से उक्त रेलवे लाइन व लाइट रेलवे से अयस्क ढुलाई को बंद कर दिया गया.
इसे भी पढ़ें : Baharagoda : बहरागोड़ा में धूमधाम से पूजे गए सिद्धि विनायक
चिड़िया खदान में हैंड माइनिंग प्रारम्भ करने का मुख्य उद्देश्य सारंडा के वनों में निवास करने वाले आर्थिक रुप से कमजोर आदिवासियों व वनवासियों को बडे़ पैमाने पर रोजगार देकर उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर करना तथा सारंडा जंगल की कटाई व तस्करी से रोकना था. लगभग 20 वर्ष पहले ओर्स इंडिया एवं एनएसआईपीएल (दोनों कंपनी एक) ने चिड़िया खदान में खनन का ठेका लिया तब से यहां खनिज, वन व पर्यावरण, मजदूरों का शोषण बडे़ पैमाने पर प्रारम्भ हुआ. चिड़िया खदान आज भले हीं सेल के अधीन है लेकिन इसका अघोषित मालिक एक प्रकार से एनएसआईपीएल है. चिड़िया खदान में आज की तिथि में स्थायी सेलकर्मी 43 एवं सेल अधिकारियों की संख्या मात्र 12 है. इन सेलकर्मियों व अधिकारियों की एनएसआईपीएल के सामने तनिक भी नहीं चलती. कहने को हैं सेल अधिकारी लेकिन वास्तव में एनएसआईपीएल के गुलाम बनकर रह गये हैं. कोई उच्च अधिकारी अपनी मर्जी चलाने की कोशिश करता है तो उसका तबादला करा दिया जाता है.
इसे भी पढ़ें : Jamshedpur : टीएसएफ इंप्लाइज यूनियन की बैठक में रिक्त पदों पर हुआ मनोनयन
चिड़िया खदान में पहले 1200 ग्रामीण मजदूर थैला में खाने का टिफिन लेकर पैदल ऊंची पहाड़ चढ़कर खदान में लौह पत्थर तोड़ने का काम करते थे. लेकिन जब से यह कंपनी खदान में कदम रखा, उसके कुछ वर्षों बाद मजदूरों की संख्या घटकर 600 पहुंच गई. एनएसआईपीएल ने अंग्रेजों की तरह खदान के मजदूरों में पैसे व पावर के बल पर फूट डालो-राज करो का खेल प्रारम्भ किया. खदान में ब्लास्टिंग के बाद टुकड़ा हुये तमाम छोटे लौह पत्थरों को वह स्वंय समेट लेता अथवा अपने कुछ दलाल मजदूरों को तोड़ने हेतु देता था. बडे़ बडे़ चट्टानों को अन्य मजदूरों को मैनुअल तोड़ने देता. बाद में एक साजिश के तहत मजदूरों को छोटा आकार में पत्थर तोड़ने कहा गया.
इसे भी पढ़ें : Jamshedpur : बंगाल क्लब में तीन दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन
बड़ा आकार का पत्थर होने पर वह उसे वजन करने हेतु नहीं भेजता. जिससे मजदूरों का मेहनत अनुसार पैसा मिलना कम हो गया. इसके बाद भी मजदूर खुशहाल थे. बाद में वह मजदूरों को पत्थर देना बंद करने लगा. मजदूर पहाड़ चढ़ आते और काम नहीं मिलने पर वापस लौट जाते. ऐसे में धीरे-धीरे मजदूर कम होकर 400-500 के बीच पहुंच गये. एनएसआईपीएल ने अपने कुछ दलाल मजदूर नेताओं के साथ मिलकर बड़ी साजिश रच हैंड माइनिंग के बजाय डेली वेजेज पर समझौता कराने में सफल रहा. खदान में हैंड माइनिंग से उत्खनन कार्य बंद कर मशीन, क्रेसर, स्क्रीन आदि तमाम मशीन घुसाया गया. बाकी बचे मजदूरों का छंटनी कर 378 मजदूरों को रखने पर आरएलसी कार्यालय में समझौता कराया गया. इस समझौता को भी ताक पर रखकर वर्तमान में 252 मजदूरों को हीं काम पर रखा गया है. इस ठेका कंपनी के विरोध में जो भी उतरा, उसके खिलाफ अपने प्रभाव के बदौलत दर्जनों पर फर्जी मुकदमा किया गया. कई मजदूर आज भी न्यायालय का चक्कर लगा रहे हैं.
इसे भी पढ़ें : Kiriburu : एक साल बाद भी मानकी-मुंडा को नहीं मिली बाइक
चिड़िया खदान के प्राईवेट चालकों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया की एनएसआईपीएल डीजीएमएस के नियम के विरुद्ध हम चालकों और ऑपरेटर का पीएफ नहीं काटता है तथा वेतन पर्ची भी नहीं देता है. चालक को गेटपास व सेफ्टी उपकरण नहीं दिया जाता है. मेडिकल नहीं कराया जाता है. चालकों के पास कोई प्रमाण नहीं है कि वह किस कंपनी में काम करता है. दुर्घटना होने पर आश्रित को कोई मुआवजा नहीं मिलेगा. खदान में 30-50 टन क्षमता वाला कई अनफीट वाहन चल रहा है. डीजीएमएस के अधिकारी आने की सूचना पर ऐसे अनफीट वाहनों पर ब्रेकडाउन का लेबल लगा किनारे खड़ा कर दिया जाता है.
Leave a Reply