Munna Jha
शहर को जब आप बंद कर देंगे और उसका चौतरफा पत्थरीकरण कर देंगे, तो हर साल आपका ड्रेनेज फेल करेगा चाहे कितना ही आप तैयारी क्यों न कर ले. पटना में बेतरतीब शहरी फैलाव होने की वजह से पुराने कुछ बचे हुए वेटलैंड लुप्त हो गए हैं और हरे भरे स्थान खत्म कर दिए गए तो ऐसे में थोड़ी सी बारिश के बाद बाढ़ का आना स्वाभाविक है, इसमें आश्चर्य करने जैसी कोई बात नहीं है.
मानसून की बारिश जल संकट को दूर करने और मरती हुई नदियों को पुनर्जीवित करने में मदद करती है, पर खराब तरीके से हुए शहरों की विकास योजना ने सबकुछ बर्बाद कर दिया है.
जून मध्य से सितंबर का मौसम देश की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए एक जीवन रेखा की तरह है, लेकिन मानसूनी बारिश की वजह से ज्यादातर भारतीय शहरों में बाढ़ करोड़ों जीवन को प्रभावित करता है और कॉन्क्रीट से बने शहर के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाती है, कई मौकों पर लोगों की जान भी लेती है.
जब आप बाढ़ के मैदानों, झीलों, दलदली भूमि और आर्द्रभूमि का बड़े पैमाने पर कंक्रीटीकरण करेंगे तो विनाश तो तय है. शहर, सड़क बनाते हुए आपने बेलगाम पेड़ की कटाई की है, हरियाली हटाई है तो जलवायु संकट का सामना आपको करना ही पड़ेगा.
पटना जैसे शहरी क्षेत्रों को वर्षा और अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिए अपनी क्षमता में भारी वृद्धि करने की आवश्यकता है. जरूरी है कि पटना के खुले स्थानों, नदियों, जल निकायों और बाढ़ के मैदानों का स्पष्ट सीमांकन व संरक्षण हो. हम भूल जाते हैं कि प्रकृति ने सृष्टि की रचना की है कि पानी जमीन या जलाशय में चला जाए पर हम इसे शहरी विकास के नाम पर बंद कर देते हैं, तो बाढ़ कहर बरपाएगा ही.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.