NewDelhi : भारतीय लोगों में अपने धर्म के प्रति समर्पण और प्यार की भावना बहुत अधिक है. चाहे शहर हो या गांव, 60 प्रतिशत लोग रोज पूजा-पाठ या प्रार्थना करते हैं. भारतीय शैली की धर्मनिरपेक्षता के लिए वास्तव में अच्छी खबर यह है कि धार्मिक सहिष्णुता को बल मिलता है. जान लें कि प्यू रिसर्च सेंटर ने भारत में धर्म: सहिष्णुता और अलगाव शीर्षक से सर्वे पेश किया है,
उसमें यह बात सामने आयी है. सर्वे में देश के सभी बड़े छह धार्मिक समूहों में सभी धर्मों के सम्मान की बात सामने आयी है. सर्वे में शामिल सभी लोगों ने माना कि उन्हें अपने धर्म और मत का पालन करने के लिए स्वतंत्रता हैं.
इसे भी पढे़ं : 2 माह में 32 बार बढ़े पेट्रोल-डीजल के दाम, सरकार पेट्रोल पर 55.70 और डीजल पर 54.60 रुपये वसूल रही टैक्स
17 भाषाओं में 30 हजार लोगों से की गयी बातचीत
प्यू रिसर्च सेंटर ने 2019 के अंत और 2020 की शुरुआत के बीच 17 भाषाओं में सर्वे किया. इसमें लगभग 30,000 लोगों से आमने-सामने बातचीत की गयी. सर्वे में शामिल अधिकतर लोगों ने कहा क सभी धर्मों के लोगों के लिए सच्चा भारतीय होना सबसे जरूरी है. लोगों का मानना है कि सहनशीलता धार्मिक और नागरिक सिद्धांत है. भारतीय लोग इस बात को लेकर एकमत थे कि एक दूसरे के धर्मों का सम्मान बहुत जरूरी है
इसे भी पढे़ं : भारत ने यूरोपीय संघ को चेताया, कहा, Covishield और Covaxin को ग्रीन पास में शामिल करें
2019 के संसदीय चुनावों में भाजपा को वोट दिया था
64 प्रतिशत हिंदुओं ने कहा कि हिंदू होने के साथ सच्चा भारतीय होना भी बहुत महत्वपूर्ण है. 59 प्रतिशत हिंदू हिंदी बोलने को राष्ट्रीय पहचान से जोड़ते हैं. जो लोग ये दो बातें कहते हैं, उन्होंने 2019 के संसदीय चुनावों में भाजपा को वोट दिया था. ऐसे लोगों की संख्या कुल हिंदुओं का 30 प्रतिशत है.
इसे भी पढे़ं : आईटी मामलों की संसदीय समिति के समक्ष ट्विटर की पेशी आज, मनमानी पर जवाब तलब किया जायेगा
धर्म में राजनीतिक हस्तक्षेप से सहमत
ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो कहते हैं कि राजनेताओं का धार्मिक मामलों पर प्रभाव होना चाहिए. 2014 के बाद से भारतीय राजनीति ने भी इस दिशा में निश्चित कदम उठाये हैं.राम मंदिर निर्माण, अंतरधार्मिक विवाहों को अपराध घोषित करने वाले राज्य के कानून और गौ रक्षा नारे ने दिखाया कि भाजपा इन भावनाओं को पहचान रही है.
यहां तक कि शिक्षित भारतीय भी धर्म में राज्य के हस्तक्षेप से सहमत हैं. लेकिन अगर वे रूढ़िवादी भी हैं, तो समान नागरिक संहिता के लोकप्रिय स्वागत के लिए इसका क्या अर्थ है? यह विवाह, उत्तराधिकार और तलाक जैसे मामलों को पर्सनल लॉ के दायरे से बाहर ले जाने वाला प्रगतिशील राजनीतिक हस्तक्षेप होगा.
इसे भी पढे़ं : सीजेआई ने कहा, शासक को बदल देने से ही अत्याचारों से मुक्ति नहीं मिल सकती
69 प्रतिशत लोगों में एससी / एसटी/ओबीसी-एमबीसी शामिल
मुसलमानों और ईसाइयों सहित भारतीयों में जाति को लेकर बहुत अधिक सजगता है. सर्वे में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो खुद को ओबीसी, एससी और एसटी बताते हैं. यह ओबीसी से जुड़े उन नेताओं की मांग का समर्थन करते है जो दसवी जनगणना में ओबीसी से जुड़े आंकड़े को अलग से पेश किये जाने की मांग करते हैं. प्यू सर्वेक्षण में 69 प्रतिशत लोगों ने खुद को एससी / एसटी/ओबीसी-एमबीसी बताया. इनमें से कॉलेज ग्रेजुएट्स की संख्या 56 प्रतिशत थी. जातीय पहचान के बावजूद पूरा भारत आर्थिक सुधार चाहता है.
दूसरे धर्म में शादी के खिलाफ हैं हिंदू, मुस्लिम
सर्वे में भारतीयों के बीच अन्य समुदायों के लोगों से दोस्ती को लेकर अलगाव साफ दिखता है. साथ ही विवाहित वयस्कों में, 99 प्रतिशत हिंदू, 97 प्रतिशत मुस्लिम और 95 प्रतिशत ईसाई ने अपने ही धर्म में शादी की हुई है. 67 प्रतिशत हिंदुओं, 80 प्रतिशत मुसलमानों और 54 प्रतिशत कॉलेज स्नातकों ने कहा कि अपने समुदाय की महिलाओं को दूसरे धर्म में शादी करने से रोकना बहुत महत्वपूर्ण है. महिलाओं या पुरुषों द्वारा अंतर्जातीय विवाह को रोकने के लिए सभी समूह काफी हद तक सहमत थे. हिंदुओं की तरह, 77 प्रतिशत मुसलमान कर्म में विश्वास करते दिखे.
77 प्रतिशत हिंदू और इतने ही मुस्लिम कर्म के फल में यकीन रखते हैं
36 प्रतिशत भारतीय नहीं चाहते हैं कि उनका पड़ोसी मुसलमान हो. जैन धर्म के लोगों में यह संख्या 54 प्रतिशत है जो मुसलमान पड़ोसी नहीं चाहते. 81 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि गंगाजल में पवित्र करने की शक्ति है. जबकि ऐसा मानने वाले ईसाइयों की संख्या 33 प्रतिशत है. 66 प्रतिशत हिंदू कहते हैं कि उनका धर्म इस्लाम से एकदम अलग है. वहीं, 64 प्रतिशत मुसलमान भी ऐसा ही मानते हैं.
77 प्रतिशत हिंदू और लगभग इतने ही मुस्लिम कर्म के फल में यकीन रखते हैं. उत्तर भारत में 12 प्रतिशत हिंदू, 10 प्रतिशत सिख और 37 प्रतिशत मुस्लिम सूफीवाद में यकीन करते हैं. 74 प्रतिशत मुस्लिमों ने पारिवारिक विवाद, तलाक जैसे मामलों में अपने लिए अलग धार्मिक अदालत की बात कही. 48 प्रतिशत मुस्लिमों के अनुसार उपमहाद्वीप में विभाजन सांप्रदायिक संबंधों में तनाव के लिए खराब चीज है.
24 प्रतिशत मुस्लिमों ने कहा कि उन्हें भारत में भेदभाव का सामना करना पड़ा
इस्लाम को मानने वाले 95 प्रतिशत लोग कहते हैं कि उन्हें भारतीय होने पर बेहद गर्व है. 85 प्रतिशत इस बात को मानते हैं कि भारतीय संस्कृति बाकी सबसे अच्छी है. 24 प्रतिशत मुस्लिमों ने कहा कि उन्हें भारत में काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा. 21 प्रतिशत हिंदू भी मानते हैं कि उन्हें भारत में धार्मिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है.