Kabul : अफगानिस्तान से अमेरिका की रवानगी जारी है. आकलन करें तो अमेरिका अफगानिस्तान में 20 साल से लड़ रहा है. उसने फौजी अभियान पर 149 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च किये. उसके हजारों सैनिक मारे गये. साथ ही हजारों अफगानियों की मौत हो गयी.
जानकारों का कहना है कि इतने लंबे अभियान के बाद भी अमेरिका की झोली खाली है. बदलते घटनाक्रम के बीच अफगानिस्तान में तालिबान के खौफनाक लड़ाकों की वापसी हो रही है. उन्होंने लगभग आधे देश पर कब्जा जमा लिया है. अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने खुफिया एजेंसियों के हवाले से कहा है कि अफगानिस्तान की गनी सरकार छह माह के भीतर गिर जायेगी.
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अलकायदा का अब देश में प्रभाव नहीं है
हालांकि अमेरिका पर 9/11 का हमला करने वाले अलकायदा का अब देश में प्रभाव नहीं है. लेकिन, इस्लामिक स्टेट की एक शाखा सहित कई अन्य अमेरिका विरोधी आतंकवादी गुट अफगानिस्तान में सक्रिय है. इस बीच खबर है कि तालिबान और अमेरिका समर्थक सरकार के बीच शांति समझौते पर चर्चा चल रही है.
कहा जा रहा है कि पाकिस्तान जैसे मित्रों के दबाव से तालिबान सत्ता में बंटवारे के समझौते पर मान जायेगा. लेकिन इसकी संभावना बहुत कम बतायी जा रही है. जानकारों के अनुसार तालिबान अपने पूर्व शासन के पुराने कट्टर और निर्मम तौर-तरीके लागू करने पर जोर देगा. किसी समझौते की बजाय तालिबान द्वारा सरकार को बलपूर्वक हटाने की संभावना अधिक है. वह धीरे-धीरे शिकंजा कसने की नीति अपनायेगा. इससे देश में गृहयुद्ध का विस्तार होगा.
संभावना व्यक्त की गयी है कि अमेरिका द्वारा छोड़ी गयी खाली जगह को चीन, भारत, रूस और पाकिस्तान भरने की कोशिश करेंगे. कुछ देश उन फौजी गुटों को पैसा और हथियार देंगे जिनसे उनके दोस्ताना संबंध हैं.
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छह महीने में सरकार गिरने की संभावना
तालिबान का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. दूसरी ओर राष्ट्रपति अशरफ गनी प्राइवेट फौजी गुटों को एकजुट करने में लगे हैं. लड़ाकू गुटों की सक्रियता से सेना को संभलने का मौका मिल सकता है. अफगान सेना के कमजोर पड़ने की वजह से तालिबान अशरफ गनी सरकार से गंभीरता से चर्चा नहीं कर रहा है.
खबर है कि पिछले सप्ताह तालिबानी लड़ाके मजार-ए-शरीफ के पास पहुंच गये थे. बाल्ख प्रांत के कई जिलों पर तालिबान का कब्जा है. बाल्ख में तालिबान विरोधी कमांडर अता मोहम्मद नूर ने कहा. चाहे कुछ भी हो हम अपने शहरों की रक्षा करेंगे. लेकिन अब तक बड़े शहरों पर तालिबान का कब्जा नहीं है. वह ग्रामीण इलाकों में प्रभाव बढ़ाकर शहरों पर दबाव डालना चाहता है. तालिबानियों के पास बड़े शहरों पर कब्जा करने और शासन चलाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं.
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कमांडरों ने अफगान सैनिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया है
अमेरिका और नाटो देशों ने अफगान सुरक्षा बलों की ट्रेनिंग और हथियारों पर अरबों रुपए इस उम्मीद में खर्च किये थे कि एक दिन वे अपने पांव पर खड़े हो सकेंगे, लेकिन अमेरिका के जाने से पहले ही उन्होंने मैदान छोड़ना शुरू कर दिया. अफगान सैनिक बताते हैं कि कमांडरों ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है. उन्हें वेतन नहीं मिलता. खाने-पीने के लाले पड़ गये हैं. गोला-बारुद खत्म हो चुका है. बता दें कि तालिबान के आततायी शासन के भय से बहुत लोग देश छोड़ना चाहते हैं.