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देश के आंदोलनजीवी यानी परजीवी एक हो गये, तो सरकार के लिये खतरे की घंटी होगी

Surjit Singh प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में आंदोलन करने वालों को आंदोलनजीवी यानी परजीवी कहा. आंदोलन करने वालों के लिये प्रधानमंत्री के इस संबोधन की आलोचना हो रही है. हर सेक्टर के यूनियनों ने आलोचना की है. चाहे वह सरकारी सेक्टर हो, निजी सेक्टर या पीएसयू. भले ही भाजपा और उसके समर्थक डंके की चोट पर प्रधानमंत्री के वक्तव्य के साथ खुद को खड़ा बता रहा है. हाल के आंदोलनों को देखें, तो मोदी सरकार के लिये एक बड़ा खतरा सामने नजर आ रहा है. अगर सभी आंदोलनजीवी यानी परजीवी एक हो गये, तो भाजपा और मोदी को सरकार चलाना मुश्किल हो सकता है. कहीं ऐसा ना हो कि देश में एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो जाये. इसकी सुगबुगाहट शुरु हो चुकी है. आइये, देखते हैं, वे कौन-कौन सेक्टर और संगठन हैं, जो मोदी सरकार की नीतियों से नाराज हैं. जो या तो आंदोलन कर चुके हैं या आंदोलन का आह्वान कर चुके हैं या फिर आंदोलन शुरु करने की तैयारी में हैं. - बैंक यूनियनों की संस्था युनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (UFBU) ने 15 मार्च से दो दिन की बैंक हड़ताल का आह्वान किया है. - ऑल इंडिया बैंक इंप्लॉइज यूनियन (AIBEA) ने बैंकों के निजीकरण के मोदी सरकार के फैसले का विरोध करना शुरु कर दिया है. - विभिन्न तरह के कारोबार से जुड़े देशभर के चार हजार से भी अधिक संगठनों की संस्था कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने GST के खिलाफ 26 फरवरी को भारत बंद का आह्वान किया है. - श्रम कानूनों में बदलाव लाने, सरकारी कंपनियों को बेचने और कई सेक्टरों में 100 प्रतिशत FDI के खिलाफ कुछ महीने पहले 10 राष्ट्रीय संगठनों ने आंदोलन की चेतावनी दी थी. उनमें UTUC, INTUC, TUCC, AITUC, LPF, SEWA, HMS, AICCTU, CITU, AIUTUC शामिल हैं. - विद्युत सुधार अधिनियम के विरोध में मध्य प्रदेश की बिजली कंपनियों के कर्मचारी एकजुट हो गये हैं. आंदोलन के लिये 19 कर्मचारी संगठनों ने संयुक्त मोर्चा बनाया है. - पिछले साल अक्टूबर माह में यूपी पावर डिस्कॉम के 15 लाख कर्मचारी हड़ताल पर चले गये थे. - कुछ दिन पहले देशभर के विद्युतकर्मियों ने हड़ताल की थी. - कोयला क्षेत्र के कर्मचारी भी निजीकरण व कॉमर्शियल माइनिंग के खिलाफ आंदोलन की तैयारी में हैं. - रेलवे के कर्मचारी कुछ दिन पहले ही हड़ताल कर चुके हैं. - इसके अलावा हर राज्य में अलग-अलग वजहों से कई संगठन मांगों को लेकर लगातार">https://lagatar.in/">लगातार

 आंदोलन कर रहे हैं.
इन सबके बीच गैस सिलेंडर के बढ़ते दामों, गैस सब्सिडी खत्म होने, केंद्रीय टैक्स के कारण पेट्रोल-डीजल के दामों में हो रही बढ़ोतरी और बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों का जीना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसी स्थिति में अगर तमाम आंदोलन करने वाले एकजुट हो गये, तो मोदी सरकार की दिक्कतें बढ़नी तय है.

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